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सुशांत सिंह राजपूत पर बनी फिल्म पर रोक लगाने से दिल्ली HC का इनकार

Delhi High Court ने कहा- फिल्म सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध जानकारी पर आधारित है

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भारत
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दिवंगत बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) के पिता को दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) से झटका लगा है. कोर्ट ने सुशांत की लाइफ पर आधारित फिल्म 'Nyay: The Justice' की स्ट्रीमिंग को रोकने की उनकी याचिका खारिज कर दी. जस्टिस सी. हरिशंकर की एकल-न्यायाधीश पीठ ने ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म लैपलैप ओरिजिनल पर प्रसारित होने वाली फिल्म के खिलाफ निषेधाज्ञा आदेश पारित करने से इस आधार पर इनकार कर दिया कि राजपूत के व्यक्तित्व, गोपनीयता और प्रचार अधिकार उनकी मृत्यु के साथ खत्‍म हो गए और नहीं हो सकते.

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इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि फिल्म का कंटेंट समाचार रिपोर्टों और प्रसारित समाचारों पर आधारित है और इसलिए जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है.

जस्टिस शंकर ने कहा कि इसलिए, उसके आधार पर एक फिल्म बनाने में यह नहीं कहा जा सकता कि प्रतिवादियों ने एसएसआर के किसी भी अधिकार का उल्लंघन किया है, वादी के तो बिल्कुल भी नहीं, खासकर तब, जब जानकारी सामने आने पर उस पर सवाल नहीं उठाया गया था या उसे चुनौती नहीं दी गई थी और न ही प्रतिवादियों को फिल्म बनाने से पहले वादी की सहमति प्राप्त करने की जरूरत थी.

कोर्ट ने कहा कि भले ही यह मान लिया जाए कि फिल्म सुशांत के प्रचार अधिकारों का हनन करती है या उन्हें बदनाम करती है, उल्लंघन किया गया अधिकार उनका व्यक्तिगत है और यह नहीं कहा जा सकता है कि यह उनके पिता कृष्ण किशोर सिंह को विरासत में मिला है.

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अदालत ने कहा कि इसके अलावा, फिल्म सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध जानकारी पर आधारित है, जिसे इसके मूल प्रसार के समय कभी चुनौती नहीं दी गई थी या सवाल नहीं उठाया गया था, इस समय की दूरी पर निषेध की मांग नहीं की जा सकती है, खासकर जब यह पहले ही रिलीज हो चुकी है, लैपालैप प्लेटफॉर्म कुछ समय पहले देखा गया होगा और अब तक हजारों लोगों ने देखा होगा.

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि वह जून 2021 में रिलीज हुई फिल्म की स्ट्रीमिंग को रोकने का आदेश पारित नहीं कर सकती है. खासकर जब यह पहले ही रिलीज हो चुकी है और हजारों लोगों ने देखी होगी.

कोर्ट ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि फिल्म भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(2) का उल्लंघन कर रही है. इसलिए, फिल्म के आगे प्रसार पर रोक लगाने से अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्रतिवादियों के अधिकारों का हनन होगा.

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