राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता सुशील कुमार मोदी (Sushil Modi) ने सोमवार, 19 दिसंबर को संसद में कहा कि भारत में समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriage) को कानूनी मान्यता "देश में पर्सनल लॉ के नाजुक संतुलन में पूरी तरह तबाही मचा देगी."
बड़ी बात क्या कही गई? शून्यकाल के दौरान उन्होंने कहा, "भारत में विवाह एक पवित्र संस्था है, और एक बायोलॉजिकल मेल और एक बायोलॉजिकल फीमेल के बीच का संबंध है. यह सदियों पुरानी रस्म है और हमारे सामाजिक ताने-बाने का हिस्सा है. भारत में, सेम-सेक्स मैरिज को किसी भी असंहिताबद्ध व्यक्तिगत कानूनों... या किसी भी संहिताबद्ध वैधानिक कानूनों में न तो मान्यता प्राप्त है और न ही स्वीकार किया जाता है."
यह महत्वपूर्ण क्यों है? सुप्रीम कोर्ट ने 25 नवंबर को विशेष विवाह कानून के तहत मान्यता की मांग करने वाले समलैंगिक जोड़ों की दो याचिकाओं पर केंद्र और अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी को नोटिस जारी किया. केंद्र को जवाब देने के लिए चार हफ्तों का समय दिया गया था.
दिल्ली हाई कोर्ट और केरल हाई कोर्ट में विशेष विवाह अधिनियम (स्पेशल मैरिज एक्ट), विदेशी विवाह अधिनियम और हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग करने वाली कम से कम नौ याचिकाओं पर वर्तमान में सुनवाई की जा रही है.
इससे पहले, नवंबर में, केंद्र ने केरल हाई कोर्ट को बताया कि वह सभी रिट याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने के लिए कदम उठा रहा है.
सुशील मोदी ने और क्या कहा? "वाम-उदारवादी लोकतांत्रिक लोगों और एक्टिविस्टों" पर "पश्चिमी देशों को लुभाने के लिए" समलैंगिक विवाह (सेम-सेक्स मैरिज) को मान्यता दिलाने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए, बीजेपी सांसद ने कहा:
"सेम-सेक्स मैरिज देश में व्यक्तिगत कानूनों के नाजुक संतुलन के साथ पूर्ण विनाश पैदा करेगा. परिवार, बच्चे, गोद लेने, घरेलू हिंसा, तलाक, वैवाहिक घर में रहने का पत्नी का अधिकार - ये सभी शादी की संस्था से जुड़े हुए हैं."सुशिल मोदी, राज्यसभा सांसद, BJP
निष्कर्ष क्या है? सुशील मोदी ने तर्क दिया कि समलैंगिक विवाह की मान्यता केवल दो न्यायाधीशों के निर्णय पर निर्भर नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा, "संसद और सार्वजनिक क्षेत्र में इस पर एक बहस होनी चाहिए...भारत सरकार से सेम-सेक्स मैरिज का कड़ा विरोध करने का आग्रह करता हूं. मैं न्यायपालिका से भी ऐसा निर्णय नहीं लेने का आग्रह करता हूं जो भारत के सांस्कृतिक लोकाचार और सामाजिक मान्यताओं के खिलाफ हो."
बता दें कि, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में यौन स्वायत्तता को एक बेसिक राइट मानते हुए धारा 377 को गैर-आपराधिक घोषित कर दिया था.
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