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स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण की क्यों होती है चर्चा? जानिए क्या कहा था?

Swami Vivekananda का जन्म 12 जुलाई,1863 को कोलकाता में हुआ था.

Published
भारत
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12 जुलाई, 1863 को कोलकाता में जन्में नगेंद्र नाथ आगे चलकर स्वामी विवेकानंद नाम से विश्व भर में प्रसिद्ध हुए. स्वामी विवेकानंद की बात जब-जब होती है, तब-तब साल 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में दिए गए उनके भाषण की चर्चा होने लगती है. यह वो भाषण है जिसने भारत को विश्व भर में मजबूत छवि के रूप में प्रदर्शित किया. लेकिन सवाल ये कि आखिर उन्होंने इस भाषण में ऐसा क्या कहा था, जिसकी चर्चा आज तक होती है?

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'दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं'

अमेरिकी भाइयों और बहनों, आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है उससे मेरा दिल भर आया है. मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं. सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं.
स्वामी विवेकानंद, शिकागो धर्म संसद

'सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है'

मैं इस मंच पर बोलने वाले कुछ वक्ताओं का भी धन्यवाद करना चाहता हूं, जिन्होंने यह जाहिर किया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है.
स्वामी विवेकानंद, शिकागो धर्म संसद

'भारत ने दुनिया को सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया है'

मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं.
स्वामी विवेकानंद, शिकागो धर्म संसद

'भारत ने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी'

मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं, जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी. मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इजराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली.
स्वामी विवेकानंद, शिकागो धर्म संसद

'मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी'

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है.
स्वामी विवेकानंद, शिकागो धर्म संसद

'मैं वह श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया'

मैं इस मौके पर वह श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे रोज करोड़ों लोग दोहराते हैं. ''जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है. ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं.
स्वामी विवेकानंद, शिकागो धर्म संसद

'मौजूदा सम्मेलन आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है'

मौजूदा सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, वह अपने आप में गीता में कहे गए इस उपदेश इसका प्रमाण है: ''जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, परेशानियां झेलते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं."
स्वामी विवेकानंद, शिकागो धर्म संसद

'सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है'

सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है. उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है. न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए.
स्वामी विवेकानंद, शिकागो धर्म संसद

'यदि ये खौफनाक राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज्यादा बेहतर होता'

यदि ये खौफनाक राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है. लेकिन उनका वक्त अब पूरा हो चुका है. मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा. चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से.
स्वामी विवेकानंद, शिकागो धर्म संसद

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