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‘डेमोक्रेसी रिपोर्ट’ शेयर कर बोले राहुल-‘देश लोकतांत्रिक नहीं रहा’

रिपोर्ट में कहा गया- मोदी सरकार ने राजनीतिक विरोधियों को चुप कराने के लिए किया कानूनों का इस्तेमाल

Published
भारत
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स्वीडन के वी-डेम इंस्टीट्यूट की साल 2020 की डेमोक्रेसी रिपोर्ट जारी की गई है. जिसमें भारत को एक चुनावी तानाशाही वाला देश बताया गया है. भारत को इस लिस्ट में हंगरी और तुर्की के साथ रखा गया है. क्योंकि रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लोकतंत्र के कई पहलुओं पर पाबंदियां लगाई जा रही हैं. जिनमें सामाजिक संगठन और अभिव्यक्ति की आजादी जैसे पहलू शामिल हैं. सिर्फ इतना ही नहीं रिपोर्ट में भारत को सेंसरशिप मामले में पाकिस्तान के बराबर बताया गया है और बांग्लादेश से बुरी रैंकिंग दी गई है.

इस रिपोर्ट को लेकर एक हेडलाइन को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी ट्वीट किया है. उन्होंने इसे शेयर करते हुए लिखा कि भारत अब एक लोकतांत्रिक देश नहीं है.

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2013 के बाद रैंकिंग में लगातार गिरावट

इस रिपोर्ट के मुताबिक जब 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने सरकार बनाई तो इसके बाद भारत की रैंकिंग में तेजी से गिरावट देखी गई. बीजेपी की जीत और उनके हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडा के बाद ऐसा हुआ. एक आदर्श लोकतंत्र के तौर पर भारत साल 2020 के अंत तक लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स में 0.34 पर था, लेकिन 2013 में ये ग्राफ 0.57 था. इसके बाद से ही भारत के ग्राफ में लगातार गिरावट देखी गई. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स में कुल 23 पर्सेंटेज प्वाइंट की गिरावट आई है.

रैंकिंग में गिरावट के बाद भारत अब ब्राजील, हंगरी और तुर्की जैसे देशों की लिस्ट में शामिल हो चुका है. रिपोर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी के आने से पहले सेंसरशिप के मामले में भारत का स्कोर 4 में से 3.5 था, लेकिन इसके बाद अब ये स्कोर घटकर 1.5 के करीब है. जिसका मतलब है कि सेंसरशिप काफी ज्यादा बढ़ रही है. अब भारत इस मामले में पाकिस्तान के साथ खड़ा है और पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल से भी बदतर है.

रिपोर्ट में इसके उदाहरण भी दिए गए हैं. जिसमें बताया गया कि पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने देशद्रोह, मानहानि और आतंकवाद रोधी कानूनों का काफी ज्यादा इस्तेमाल किया है. बीजेपी के सत्ता संभालने के बाद 7 हजार से भी ज्यादा लोगों पर आरोप लगाए गए हैं और इसमें से अधिकांश वो आरोपी हैं, जो सत्ताधारी बीजेपी के आलोचक थे.
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कानूनों से राजनीतिक विरोधियों को डराने की कोशिश

रिपोर्ट में बताया गया है कि मानहानि के कानून का इस्तेमाल लगातार पत्रकारों और न्यूज आउटलेट्स को चुप कराने के लिए किया जा रहा है. ऐसे ऐसे मीडिया आउटलेट हैं, जो मोदी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हैं. आलोचना करने वाले लेखों और मैसेज के लिए दो साल से लेकर आजीवन कारावास तक सजा दी जाती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएम मोदी और उनकी पार्टी ने सिविल सोसायटी पर पहरा डालने की कोशिश भी की, जो संविधान के मूल के खिलाफ चले गए हैं.

रिपोर्ट में यूएपीए का जिक्र भी किया गया है. कहा गया है कि, हाल ही में साल 2019 में अनलॉफुल एक्टिविटीज एक्ट 1967 को संशोधित किया गया. इसका इस्तेमाल अब राजनीतिक विरोधियों को प्रताड़ित करने, डराने और जेल में डालने के लिए किया जा रहा है. साथ ही सरकार की नीतियों के खिलाफ लगातार बोलने वालों पर भी इसका इस्तेमाल हो रहा है. शैक्षणिक संस्थानों, यूनिवर्सिटीज में भी विरोध को शांत कराने की कोशिश की गई. नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले छात्रों को भी इस कानून के तहत सजा दी गई.
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क्या है इसका पैटर्न?

स्वीडन के वी-डेम इंस्टीट्यूट ने अपनी स्टडी में ये भी बताया है कि कैसे किसी देश में तानाशाही अधिनायकवाद की शुरुआत होती है और इसका क्या पैटर्न होता है. रिपोर्ट में बताया गया है कि ऐसा करने के लिए सबसे पहले मीडिया को कंट्रोल किया जाता है. साथ ही एकेडिमक दुनिया पर भी लगाम लगाई जाती है. इसके अलावा विपक्षी नेताओं से गलत लहजे में बात की जाती है, जिससे धुव्रीकरण बढ़े. तमाम सरकारी तंत्रों का भी गलत इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा होन के बाद तमाम संस्थाओं और लोकतंत्र की बुनियाद पर हमला किया जाता है.

बता दें कि इस रिपोर्ट में भारत के अलावा भी कई ऐसे देश शामिल हैं, जिन्होंने पिछले 10 साल में लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन नहीं किया है और ये निरंकुशता की ओर बढ़ रहे हैं.

अमेरिकी संस्था ने भी भारत को बताया था कम आजाद

इससे पहले अमेरिका की फ्रीडम हाउस नाम की एक संस्था ने एक रिपोर्ट जारी कर यही बात कही थी, जिसमें बताया गया था कि भारत एक स्वतंत्र देश से 'आंशिक रूप से स्वतंत्र' देश में बदल चुका है. पॉलिटिकल फ्रीडम और ह्यूमन राइट्स को लेकर जारी इस रिपोर्ट का नाम ‘डेमोक्रेसी अंडर सीज ’रखा गया था. इसमें भारत की रैंकिंग 71 से घटकर 67 हो गई और 211 देशों में 83 से फिसलकर 88वें पोजिशन पर आ गई है.

अमेरिकी संस्था की इस रिपोर्ट में भी डेमोक्रेसी को कम करने का एक पैटर्न बताया गया था. इसमें कहा गया था कि सरकार बढ़ती हिंसा और मुस्लिम आबादी के प्रति भेदभाव की नीतियों के प्रति चुप है. आलोचना करने वाले मीडिया, एकेडीमिया और सिविल सोसाइटी पर कड़ा एक्शन लिया जा रहा है. रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि मोदी सरकार में भारत ने वैश्विक स्तर पर एक लोकतांत्रिक लीडर के तौर पर काम करना छोड़ दिया.

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