तमिलनाडु (Tamilnadu) में दही के पैकेट पर हिंदी में 'दही' लिखे जाने के निर्देश को लेकर विवाद बढ़ने के बाद भारत के खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण (FSSAI) ने गुरुवार को अपना आदेश वापस ले लिया है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री, तमाम रजनीतिक दलों से लेकर दुग्ध उत्पादकों ने इस निर्देश को गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर 'हिंदी' थोपना बताया था. राज्य के दुग्ध उत्पादन संघ आविन की ओर से कहा गया कि वह अपने पैकेट पर हिंदी शब्द ‘दही' के बजाय पहले की तरह तमिल शब्द ‘तायिर' का ही इस्तेमाल करेगा.
क्या है पूरा मामला?
The Hindu की एक रिपोर्ट के अनुसार FSSAI (Food Safety and Standards Authority of India) ने बुधवार को कर्नाटक के 'नंदिनी' ब्रांड के उत्पादक मिल्क फेडरेशन (KMF) और 'आविन' ब्रांड के उत्पादक को निर्देश दिया है कि दही के पाउच पर हिंदी में 'दही' शब्द का प्रयोग किया जाए.
FSSAI निर्देश में कहा गया था कि 'कर्ड' (अंग्रेजी) या 'तायिर' (तमिल) की जगह अब 'दही' (हिंदी) में लेबल किया जाएगा. FSSAI ने यह भी कहा कि तमिल के "tair" या "tayir" जैसे शब्दों को कोष्ठक में इस्तेमाल किया जा सकता है.
FSSAI के इस आदेश के बाद तमिलनाडु में विवाद खड़ा हो गया. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस फैसले को "हिंदी थोपना" बताया. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि हिंदी थोपने की बेहिचक जिद हमें एक दही के पैकेट पर भी हिंदी में लेबल लगाने के लिए निर्देश दे दिया गया है. हमारी मातृभाषाओं के प्रति इस तरह की बेशर्मी से यह सुनिश्चित हो जाएगा कि जिम्मेदार लोगों को दक्षिण से हमेशा के लिए बाहर कर दिया जाएगा.
बीजेपी ने भी किया विरोध
तमिलनाडु के बीजेपी अध्यक्ष अन्नामलाई ने भी एफएसएसएआई के निर्देश को वापस लेने की मांग की. उन्होंने एक ट्वीट में कहा कि एफएसएसएआई द्वारा राज्य संचालित सहकारी समितियों द्वारा उत्पादित दही पाउच में "दही" लिखने के लिए जारी अधिसूचना क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए हमारे माननीय पीएम नरेंद्र मोदी की नीति के अनुरूप नहीं है. हम अधिसूचना की तत्काल वापसी चाहते हैं.
FSSAI ने वापस लिया फैसला
विवाद बढ़ने के बाद FSSAI ने अपने ट्विटर हैंडल पर प्रेस रिलीज की कॉपी शेयर करते हुए कहा कि 'दही' शब्द को हटाने पर हाल ही में कई आवेदन प्राप्त हुए हैं. यह फैसला लिया गया है कि FBOs (Food Business Operators) किसी अन्य नाम (प्रचलित क्षेत्रीय) के साथ दही शब्द का उपयोग किया जा सकता है.
सरकारी निकाय ने ब्रैकेट में कई क्षेत्रीय भाषाओं से संबंधित नाम भी सुझाए.
पहली बार नहीं हुआ है 'हिंदी थोपने' का विरोध
बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब तमिलनाडु ने केंद्र सरकार द्वारा "हिंदी थोपने" का विरोध किया है. 1930 के दशक से राज्य में हिंदी विरोधी आंदोलन का एक लंबा इतिहास रहा है. 1960 के दशक में हिंदी थोपने के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध ने स्टालिन की पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) को सत्ता में पहुंचा दिया था. तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आश्वासन दिया था कि जब तक गैर हिंदी भाषी राज्य हिंदी को स्वीकार करते हैं, तब तक संपर्क भाषा के रूप में अंग्रेजी जारी रहेगी.
तमिलनाडु राज्य, नई शिक्षा नीति के हिस्से के रूप में तीन-भाषा फॉर्मूले का भी पुरजोर विरोध कर रहा है, जिसके लिए छात्रों को तीसरी भाषा के रूप में हिंदी सीखनी जरूरी होगी.
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