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Teachers Day: ना बाथरूम, ना सहायक- 80% दिव्यांग शिक्षक अकेले चला रहे स्कूल

एटा में प्रशासन की लापरवाही के चलते न स्कूल की मरम्मत हो पा रही है, और न ही नए शिक्षक की भर्ती.

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Teachers Day Special: किसी शख्स के जीवन में अगर माता-पिता के बाद जिस व्यक्ति का सबसे ज्यादा महत्व होता है, तो वह शिक्षक का ही होता है. क्योंकि शिक्षक ही अपने विद्यार्थी के ज्ञान का एकमात्र सहारा होता है. आज भी समाज में ऐसे शिक्षक हैं, जिनकी कर्मठता, सदाचार और राष्ट्रनिर्माण के प्रति उनके कार्यों से शिक्षक समाज का मस्तक गर्व से ऊंचा करते हैं. हालांकि, उन्हें इस काम के लिए किसी शिक्षक दिवस की जरूरत नहीं है. हर दिन उनके लिए शिक्षक दिवस ही होता है.

क्विंट हिंदी आपके लिए एक ऐसे शिक्षक की कहानी लेकर के आया है, जिसने अपनी तमाम परेशानियों को पीछे छोड़ते हुए अपनी जिंदगी छात्रों की भलाई में लगा दी.

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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 300 किलोमीटर दूर एटा के तहसील विकासखंड अलीगंज क्षेत्र के ग्राम बिल्सड में शिक्षक संजीव कुमार पांडे रहते हैं, जो 80% दिव्यांग हैं. इसके बाद भी वह अपने कर्तव्य पथ पर निरंतर बढ़ते हुए चले जा रहे हैं और नया कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं.

लगभग 40 साल की उम्र पार कर चुके संजीव कुमार पांडे ग्राम बिल्सड के उच्च प्राथमिक विद्यालय में पिछले 10 सालों से शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.

उच्च प्राथमिक विद्यालय बिल्सड पछाया में अकेले ही 50 बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी दिव्यांग शिक्षक संजीव कुमार पांडेय के कंधों पर है. इतना ही नहीं, शिक्षा विभाग की उदासीनता और लापरवाही की बानगी भी इस स्कूल में नजर आती है. विभाग की अनदेखी के चलते दिव्यांग शिक्षक को एक बड़ी समस्या से जूझना पड़ रहा है.

इस विद्यालय में कुल छात्रों की संख्या लगभग 50 है. यह विद्यालय एक विकलांग अध्यापक के सहारे पर अपनी आगे की यात्रा को तय कर रहा है.

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एक साथ पढ़ते हैं सभी बच्चे

इस स्कूल में एक ही अध्यापक होने की वजह से स्कूल में संचालित कक्षा 6, 7 और 8 की कक्षाएं एक साथ संचालित की जाती हैं.

कक्षा 7 में पढ़ने वाली आकांक्षा बताती हैं कि, "हम सुबह 8 बजे स्कूल आते हैं और 2 बजे छुट्टी होती है, तब घर जाते हैं. स्कूल में हम सभी कक्षा 6,7और 8 के बच्चे सामूहिक रूप से बैठकर पढ़ाई करते हैं. सर को स्कूल में छोड़ने के लिए उनके साथ में एक व्यक्ति आता है, जो उन्हें रोज व्हीलचेयर से लेकर आता है और फिर वापस घर ले जाता है. स्कूल में हमें खाना भी मिलता है."

"हम बिल्सड के पास बसे गांव ताजपुर अड्डा से पढ़ने के लिए आते हैं. स्कूल का भवन टूटा-फूटा है और टाइल्स भी नहीं लगे हैं. हमको बारिश में डर लगता है."
किशन कुमार, कक्षा 7
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1979 में बनी थी स्कूल की इमारत

स्कूल के सहायक अध्यापक और हेडमास्टर संजीव कुमार पांडे कहते हैं, "हमारा ये स्कूल जर्जर अवस्था में है. छतों से प्लास्टर छूट रहा है, दीवारें दरक रही हैं. इस स्कूल में उत्तर प्रदेश सरकार की योजना कायाकल्प के तहत भी कोई कार्य नहीं हुआ है. इसलिए हमारे स्कूल में टाइल्स इत्यादि लगाने का काम नहीं हो पाया है. ये स्कूल 1979 में बनाया गया था. पुराना होने की वजह से स्कूल जर्जर अवस्था में तब्दील हो चुका है, जो बच्चों के लिए एक खतरा है. इसके बारे में हमने कई बार अपने उच्चाधिकारियों को पत्र लिखा है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है."

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शिक्षा विभाग की लापरवाही की वजह से संकट में भविष्य

शिक्षा विभाग की लापरवाही की एक अनूठी बानगी इस विद्यालय में देखने को मिलती है, जहां अव्यवस्थाओं का अंबार लगा हुआ है. स्कूल के हेडमास्टर ने बताया कि स्कूल में बिजली का कनेक्शन तक नहीं है. उन्होंने आगे कहा, "स्कूल के पास में बिजली विभाग का पोल लगा हुआ है. वहां से हमने एक तार को जोड़ लिया है. इस स्कूल में शौचालय की स्थिति बहुत ही खराब है. हमारे स्कूल में दिव्यांग शौचालय तक नहीं बना हुआ है. हमें भी बहुत दिक्कत होती है, लेकिन अब आदत सी पड़ गई है. सुबह 7 बजे घर से ही दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर के स्कूल आ जाते हैं और फिर 2 बजे के बाद ही घर जाते हैं."

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मिडडे मील का राशन जुटाना बन जाता है मील का पत्थर

"बच्चों के लिए मिडडे मील का राशन जुटाना एक मील का पत्थर साबित हो जाता है. हमारे इस स्कूल में इस समय कोई चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक नहीं है. 15 दिन पहले ही उसको यहां से हटा दिया गया है. हम 80 प्रतिशत दिव्यांग हैं. सरकारी कामों में जाने के लिए बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ता है. अगर हमारे यहां कोई दूसरा शिक्षक आ जाएगा, तो बच्चों की पढ़ाई भी अच्छे से चलेगी और सभी चीजें विधिवत रहेगी."
शिक्षक

जिम्मेदार अधिकारियों ने सफाई में कहा, "मैं सुरेंद्र सिंह, खण्ड शिक्षा अधिकारी जैथरा के पद पर हूं. अभी 22 अगस्त को मुझे अलीगंज खण्ड शिक्षा अधिकारी का दायित्व मिला है. महानिदेशक विजय किरण आनंद सर का आदेश है कि हम लोग बिना उच्चाधिकारियों के आदेश किसी शिक्षक का अनुबंध नहीं कर सकते हैं. जैसे ही अनुमति मिलती है अध्यापक की नियुक्ति करवा दी जाएगी."

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