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सिर्फ कोहिनूर ही नहीं, ये बेशकीमती चीजें भी भारत से बाहर हैं

सीआईसी ने कई पुरानी बेशकीमती चीजों को वापस लाने के लिए की गयी कोशिशों का खुलासा करने का निर्देश दिया है.

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भारत की शान कोहिनूर हीरे के बारे में तो हम सब जानते हैं, जो फिलहाल इंग्लैंड राजघराने के शाही मुकुट में जड़ा हुआ है. लेकिन इसके अलावा भी देश की कई बेशकीमती चीजें दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद हैं. केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने पीएमओ और विदेश मंत्रालय से कोहिनूर हीरा, महाराजा रणजीत सिंह का सोने का सिंहासन, शाहजहां का हरिताश्म का शराब का प्याला और टीपू सुल्तान की तलवार जैसी कई पुरानी बेशकीमती चीजों को वापस लाने के लिए की गयी कोशिशों का खुलासा करने का निर्देश दिया है.

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आरटीआई के तहत मांगी गई थी जानकारी

ये सारी ऐतिहासिक चीजें भारतीय शानोशौकत का हिस्सा हैं और ये औपनिवेशिक आकाओं और भारत पर हमला करने वाले शासकों की ओर से ले जाये जाने के बाद दुनिया भर में विभिन्न म्यूजियम्स की शोभा बढ़ा रही हैं. जब एक आरटीआई कार्यकर्ता ने इनके बारे में जानने के लिए विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क किया तब उसका आवेदन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के पास भेज दिया गया. एएसआई ने कहा कि इन सामानों को भारत वापस लाने की कोशिश करना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है.

ये बेशकीमती चीजें हैं देश से बाहर

आरटीआई आवेदक बी के एस आर आयंगर ने कोहिनूर हीरा, सुल्तानगंज बुद्ध, नस्साक हीरा, टीपू सुलतान की तलवार और अंगूठी, महाराजा रणजीत सिंह का सोने का सिंहासन, शाहजहां का हरिताश्म का शराब का प्याला, अमरावती रेलिंग और बुद्धपाडे, सरस्वती की संगमरमर की मूर्ति- वाग्देवी और टीपू सुलतान के मेकैनिकल बाघ को वापस लाने के लिए सरकार की ओर से किये गये कोशिशों से जुड़े रिकॉर्ड मांगे थे.

आरटीआई के जवाब में एएसआई ने कहा कि वह केवल उन्हीं पुरानी चीजों को फिर से हासिल करने की कोशिश करती है जो प्राचीन वस्तु और कला संपदा अधिनियम, 1972 का उल्लंघन कर अवैध रूप से विदेश निर्यात की गयी है.

क्या कहा सूचना आयुक्त ने

सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्यलु ने कहा कि ये चीजें भारत की हैं और अतीत, वर्तमान और भविष्य के लोगों को उन्हें फिर हासिल किये जाने में रुचि है. सरकार इन भावनाओं की अनदेखी नहीं कर सकती. उन्होंने कहा कि संस्कृति मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था कि वह कोशिश जारी रखेगा. ऐसे में की गयी कोशिशों या इस दिशा में अगर कोई प्रगति हुई है तो इस बात की जानकारी देना उसका काम था. लेकिन उसने यह पता होने के बाद भी, कि एएसआई को आजादी से पहले की कलाकृतियों को ब्रिटेन से हासिल करने का कानूनी हक नहीं है, तो ऐसे में कैसे पीएमओ और संस्कृति मंत्रालय इस निष्कर्ष पर पहुंच गये कि आरटीआई आवेदन एएसआई के कामों से जुड़ा हुआ है.

(इनपुट: भाषा)

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