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‘थप्पड़’ का विक्रम काफी नॉर्मल है और यही दिक्कत है

विक्रम संस्कारी भी है.... और सेक्सिस्ट भी!

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तापसी पन्नू की फिल्म ‘थप्पड़’ 28 फरवरी को रिलीज हो गई है. हालांकि फिल्म में तापसी का किरदार घरेलू हिंसा का मुहतोड़ जवाब दे रही महिला का है, लेकिन विक्रम (पावेल गुलाटी का निभाया किरदार) की भी उन बातों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जो संस्कारी भी है, लेकिन सेक्सिस्ट भी... हमारे आसपास के शायद ज्यादातर मर्दों की तरह.

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पूरी जिंदगी, हमारी मुलाकात ऐसे मर्दों से हुई है जिन्हें लगता है कि वो लिब्रल हैं, फेमिनिस्ट हैं और प्रोग्रेसिव हैं. लेकिन क्या वो वाकई हैं?

जब पावेल का किरदार विक्रम, शिवानी (दिया मिर्जा के निभाए किरदार) को नई गाड़ी चलाते हुए देखता है, तो -- कहता है, 'फिर से नई गाड़ी. ये करती क्या है?' विक्रम का रिएक्शन सिर्फ एक बयान नहीं था, ये एक जजमेंट था... जो वो शायद तब नहीं करता अगर कोई मर्द वो गाड़ी चला रहा होता तो. लेकिन अमृता (तापसी पन्नू का निभाया किरदार) ने भी सिर्फ एक शब्द में ऐसा जवाब दिया, जो काफी था- 'मेहनत'. उनकी प्रतिक्रिया अकसर उस सच को बताती है, जो अकसर ये समाज नजरअंदाज करता है. और वो सच ये है कि एक महिला भी उतनी ही मेहनत कर सकती है, जितना की एक मर्द करता है, और उस लग्जरी को अफॉर्ड कर सकती है.

जब समाज में एक 'अच्छे लड़के' की बात होती है, तो विक्रम सभी बॉक्स में फिट बैठता है. वो अपनी पत्नी को डिनर पर ले जाता है, जब वो उदास होती है तो उसे गिफ्ट देता है और उसके पेरेंट्स की इज्जत करता है. याद है, जब वो गुस्सा होता है, तो भी अपने ससुर के पैर छूना नहीं भूलता.

वहीं दूसरी ओर, उसने कभी इस बात की ओर ध्यान देने की कोशिश नहीं की कि उसकी जिंदगी इतनी आसान अमृता की वजह से चल रही है. वो रोज सुबह उठती है और सभी चीजों का खयाल रखती है. पति की मां का भी, ताकि वो आराम से अपने काम पर फोकस करे और पैसे कमाए. लेकिन उसे इसकी कद्र नहीं है, क्योंकि घर और परिवार का खयाल रखना तो एक औरत की जिम्मेदारी है, है ना?

वहीं, इन सभी के अलावा वो कहता है, ‘पहले पराठा बनाना तो सीख लो, ड्राइविंग तो भूल ही जाओ.’

रत्ना पाठक शाह और तन्वी आजमी के किरदार वो महिलाएं हैं जो आपको अपने ही फैसलों पर सवाल खड़े करने पर मजबूर करती हैं. रत्ना पाठक शाह का किरदार कहता है, 'अब लड़की डाइवॉर्स लेगी. यही रह गया था.' और तनवी आजमी तापसी के किरदार को कहती है, 'हर शादी में एडजस्ट तो करना पड़ता है.'

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'दिल धड़कने दो' याद है? जब फरहान अख्तर, राहुल बोस के उस डायलॉग पर सवाल उठाते हैं, जिसमें वो कहते हैं, 'मैं अपनी पत्नी को काम करने की आजादी दी है.' कुछ इसी तरह, जब विक्रम चीजों को ठीक करने और पत्नी को वापस लाने के लिए अमृता के घर जाता है, तो वो कैसी बातें करता है? उसके मुताबिक, उन दोनों के बीच रिश्ता बिना किसी कंडीशन के था. और फूडी होने के बावजूद उसने अमृता से शादी की, जो उसकी मां की तरह लजीज पराठे भी नहीं बना सकती.

विक्रम एक आम लड़का है, जिसे लगता है कि अपने सम्मान के लिए खड़े होकर उसकी पत्नी ने 'बखेड़ा' खड़ा कर दिया है. और वो अपने आप में ही इतना गुम है कि जब ऑफिस में उसे मनचाहा काम नहीं मिलता, तो उसे इसका गुस्सा पत्नी के ऊपर निकालना ठीक लगता है. उसके ऐसा करने के बाद भी, आपको 'सॉरी' शब्द सुनाई नहीं पड़ते. इसकी बजाय, वो कहता है, 'लोग क्या सोचेंगे, अगर तुम घर छोड़कर चली जाओगी तो?'

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लेकिन... ये एक ऐसा लड़का है जिससे हम सभी की मुलाकात हुई है. उसे लगता है कि वो जैसे चाहे वैसे अपनी पत्नी से बर्ताव कर सकता है. उसे लगता है कि पैसे कमाकर वो बहुत बड़ा एहसान कर रहा है. उसे लगता है कि दुनिया उसके इर्द-गिर्द घूमती है.

सिर्फ एक छोटी सी बात पर उसने अपनी पत्नी को थप्पड़ मार दिया, और इसके लिए माफी मांगने में उसे महीनों लग गए. वहीं दूसरी ओर, उसकी पत्नी ने पति के सपनों के लिए अपने सपने भी त्याग दिए थे.

'थप्पड़' एक उदाहरण है, कि एक समाज के तौर पर हमने मिसॉजिनी और सेक्सिस्म को इतना आम बना दिया है कि खुद को टिपिकल 'बैड बॉयज' नहीं समझने वाले लड़कों को महिलाओं को कमतर आंकने में बिल्कुल भी झिझक नहीं होती. और फिर ऐसी महिलाएं भी हैं, जो आपको सहने और एडजस्ट करने के लिए कहती हैं.

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