नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी पर मोदी सरकार के कदमों का देश भर में हो रहे विरोध ने बड़े पैमाने पर इंटरनेशनल मीडिया का ध्यान खींचा है. अब मशहूर इंटरनेशनल मैगजीन 'द इकोनॉमिस्ट' ने अपने एक ताजा लेख में सिटिजनशिप कानून को लेकर मोदी सरकार की कड़ी आलोचना की. मैगजीन ने इसे दशकों तक समाज में उकसावे को बढ़ावा देने वाला प्रोजेक्ट करार दिया है.
‘संवैधानिक मूल्यों को दरकिनार कर उठाया कदम’
‘द इकोनॉमिस्ट’ ने अपने लेख में लिखा है कि स्टू़डेंट्स, सेक्यूलर लोगों और यहां तक कि आमतौर पर चापलूस मीडिया का एक बड़े हिस्से ने भी नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया है,जो भारत को एक सहिष्णु और धार्मिक विविधता वाले देश के बजाय रूढ़िवादी हिंदू देश में बदल देना चाहते हैं. लगता है यह देश में दशकों तक तनाव भड़काए रखने वाला प्रोजेक्ट है.आर्टिकल में बाबरी मस्जिद और गुजरात दंगों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि इन दोनों घटनाओं से बीजेपी राजनीतिक शिखर पर पहुंच गई.
मैगजीन ने लिखा है कि सिटिजनशिप कानून को लागू करने के लिए नरेंद्र मोदी ने देश के संवैधानिक मूल्यों को दरकिनार कर जो कदम उठाया है, उससे इस लोकतंत्र को बरसों तक नुकसान पहुंच सकता है. लगता है यह कानून सरकार की नाकामियों खास कर इकनॉमी के मोर्चे पर नाकामी से ध्यान हटाने के लिए लाया गया है.
मैगजीन ने लिखा-‘आइडिया ऑफ इंडिया’ खतरे में
मोदी सरकार के कदम ने ‘आइडिया ऑफ इंडिया ’ को ही खतरे में ही डाल दिया है. मैगजीन के लेख में कश्मीर के हालात और मॉब लिंचिंग का जिक्र है. इसमें कहा कि लोग देखें कि बीजेपी की नीतियां किस तरह अल्पसंख्यकों के खिलाफ जा रही हैं.
हालांकि लेख में सीएए के खिलाफ देश भर में उठ रही विरोध की लहर का भी जायजा लिया गया है. इसे लोकतंत्र के लिए उम्मीद बताया गया है. आखिर में इसमें कहा गया है कि मोदी को दुनिया के दो महान धर्मों के बीच नफरत फैलाने के बजाय किसी और तरीके से वोटरों के दिल में जगह बनानी चाहिए.
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