रोमियो जूलियट, हीर रांझा, शाहजहां मुमताज की दास्तान- ए-मोहब्बत, इतिहास की जिस किताब में दर्ज हैं, उसमें एक पन्ना बूटा सिंह और जैनब के नाम का भी होना चाहिए.
बंटवारे के बाद की एक ऐसी दर्दनाक प्रेम कहानी जो इस बात की गवाह है कि सरहदें मुल्क बना सकती हैं, बदल सकती हैं, पर एहसास-ए-मोहब्बत नहीं.
बात है 1947 की. में हिंदुस्तान और पाकिस्तान के सरहदी इलाके, यानी दोनों तरफ के पंजाब मजहबी दंगों की आग में जल रहे थे.
जैनब, जिसे पाकिस्तान जाने वाले मुस्लिम काफिले ने अगवा कर लिया था. अपनी इज्जत और जान बचाने के लिए, अमृतसर के खेतों में भागती हुई बूटा सिंह से टकरा गई. जिसने जैनब की जान और आबरू बचाने के लिए, दंगाइयों से उसे पैसे देकर खरीद लिया. कुछ कहानियों के मुताबिक, बूटा सिंह 55 वर्षीय रिटायर्ड फौजी था और जैनब 20 साल की नवयुवती, जिनमें साथ रहते रहते नजदीकियां इतनी बढ़ गईं कि दोनों ने मजहब की दीवारें तोड़कर शादी कर ली. और दो खूबसूरत बेटियों के मां-बाप बने.
मगर विभाजन के बाद भी कई और बंटवारे होने बाकी थे. दिसंबर 1947 में हिंदुस्तान और पाकिस्तान ने एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ, जिसके अनुसार, सरहद पार, अगवा की गई हर औरत को स्वदेश लौटाया जाएगा. बूटा-जैनब के दुश्मन भी कम न थे, किसी ने सर्च स्क्वाड में खबर दी कि जैनब को भी बूटा के साथ जबरदस्ती रखा गया है.
नतीजा ये हुआ कि जैनब को, सरहद पार उसके गांव भेज दिया गया. एक बेटी बूटा के साथ हिंदुस्तान में, दूसरी जैनब के साथ पाकिस्तान में और दोनों तरफ विभाजित दिल.
वहां पाकिस्तान में जैनब के जबरन निकाह की खबर मिली. महीनों तक बूटा सिंह दिल्ली में पाकिस्तानी हाई कमीशन में वीजा की गुहार लगाता रहा. जैनब से मिलने के लिए, धर्म बदलकर बूटा सिंह से जमील अहमद बन गया, ताकि उसे पाकिस्तानी पासपोर्ट या पाकिस्तान में दाखिला मिल जाए.
बूटा को पाकिस्तान का शॉर्ट टर्म वीजा मिला तो सही, मगर बहुत देर कर दी मेहरबान आते-आते. पारिवारिक दबाव के चलते जैनब की शादी करवा दी गई थी. उसकी आंखें तो बूटा को देखकर रो पड़ीं पर, होंठ खामोश रहे.
जैनब से मिलने की जल्दी में बूटा सिंह, पाकिस्तान में अपने आने की जानकारी पुलिस स्टेशन में न दिए जाने की वजह से कोर्ट में मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया! उसने जैनब को अपनी पत्नी और इन 2 बच्चियों की मां बताया, रोया, गिड़गिड़ाया.
जब कोर्ट में मजिस्ट्रेट ने जैनब से उसका जवाब मांगा. तो जैनब ने कहा ''अब मैं यहां शादी करके पाकिस्तान में रहना चाहती हूं. इस आदमी से मेरा कोई लेना देना नहीं''
बूटा सिंह जानता था कि जैनब ने दबाव में ऐसा किया. मगर अपने दिल के टुकड़े- टुकड़े लेकर वो पीर बाबा की मजार पर रोता रहा.
हाथ में छोटी बच्ची और आंखों में भारी आंसू लिए वो स्टेशन पर इंतजार तो कर रहा था. मगर न जाने उस पल में उसने क्या सोचा कि सामने आती ट्रेन के सामने कूदकर.. बूटा ने अपनी जान दे दी.
साल 1957. बूटा की मौत की खबर अब मोहब्बत की मिसाल के तौर पे पाकिस्तान में गूंज रही थी. हर अखबार में जिक्र था कि बूटा सिंह ने अपनी आखिरी इच्छा यही रखी थी कि उसे जैनब के गांव में दफनाया जाए. हिंदुस्तानी जट की मोहब्बत के चर्चे अब पाकिस्तान में थे. मगर मोहब्बत के दुश्मनों ने बूटा के जनाजे को जैनब के गांव भी न आने दिया, आखिरकार, बूटा को लाहौर के सबसे बड़े कब्रिस्तान मियानी साहिब में दफनाया गया, जहां पर जैनब के घर वालों ने उस कब्र तक को खोदने की कोशिश की. मगर मोहब्बत पसंद लोगों ने कब्र को बरकरार रखा.
मोहब्बत की इस दास्तान को उर्वशी बुटालिया की किताब THE OTHER SIDE OF SILENCE :Voices from the Partition of India, हिंदी लेखक आलोक भाटिया के कलेक्शन “Partition Dialogues” और 1999 में आई गुरदास मान और दिव्या दत्ता की फिल्म शहीद-ए-मोहब्बत में भी दोहराया गया है.
75 साल होने वाले हैं. मगर कुछ सिसकियां, कुछ जख्म, अब भी वही हैं. हमसे पूछते हैं, बंटवारा.. कोई हल था , या खुद ही एक सवाल?
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