नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने हिमाचल प्रदेश के उना जिले की सोनभद्र नदी में हो रहे अवैध खनन को लेकर हिमाचल प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारियो की फटकार लगाई है. न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने 30 जुलाई को पारित एक रिपोर्ट में हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव और डीजीपी को कहा है कि जल्द से जल्द अवैध खनन पर रोक लगाई जाए, उन्होंने कहा कि इससे जुड़े सभी विभागों और अधिकारियों से विचार विमर्श कर कानून व्यवस्था को बनाए रख राज्य में जल्द से जल्द अवैध खनन पर रोक लगाने की जरूरत है.
आपराधिक मामले दर्ज करने की कही बात
एनजीटी ने खनन मे शामिल लोगों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करने के आदेश दिए, साथ ही कहा कि, अपराध में शामिल वाहनों को जब्त किया जाए और उल्लंघन पर मुआवजा भी वसूला जाए.
एनजीटी ने निर्देश दिया कि पर्यावरण आपराधिक और सेवा कानूनों के तहत मिली भगत करने वाले अधिकारियों की भी पहचान की जा सकती है और उन्हें जबाबदेह बनाया जा सकता है. स्थिति का जायजा लेने और सकारात्मक कारवाई की योजना बनाने के लिए ऐसी पहली बैठक 15 दिनों के भीतर आयोजित की जा सकती है. मुख्य सचिव और डीजीपी अपनी कार्रवाई की रिपोर्ट के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उपस्थित रह सकते हैं.
यह आश्चर्य की बात है कि राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण सभी नियामक प्राधिकरणों, जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस विभाग, खनन विभाग, पर्यावरण विभाग और वैधानिक नियामकों के नाक के नीचे इस तरह के बड़े पैमाने पर उल्लंघन हो रहें हैं.एनजीटी
एनजीटी ने आगे कहा कि, अधिकारियो के पास शक्ति की कोई कमी नहीं है , लेकिन उल्लंघन को दूर करने के लिए स्थिति को संभालने में असमर्थता की दलील देकर विफलता को कवर करने की मांग की जाती है. अवैध खनन न सिर्फ चोरी है बल्कि आईपीसी के धारा 14 के तहत अपराध भी है.
अवैध खनन को लेकर याचिका हुई थी दायर
एनजीटी ने ये दलील एक याचिका की सुनवाई के दौरान दी. जिसमें कहा गया है कि केन्द्र सरकार ने स्वान नदी के नहरीकरण के लिए 922 करोड़ रूपये मंजूर किए हैं. भारी जन खर्च कर चैनलाइजेशन का काम किया गया. लेकिन खनन लाइसेंस की आड़ में राजनीतिक आश्रय रखने वाले रेत माफिया बड़े पोकलैड और जेसीबी का उपयोग कर अवैज्ञानिक तरीके से नदी के तल से रेत और अन्य समाग्री उठा रहे हैं. जो कि नियमों का घोर उल्लंघन है. सरकार और स्थानीय प्रशासन के नाक के नीचे हो रहा यह अवैध खनन, नदी और चैनलीकरण के लिए खतरा साबित होगा.
एनजीटी ने कहा कि राज्य संविधान के तहत पर्यावरण सुरक्षा के लिए ट्रस्टी है. इसमें पब्लिक ट्रस्ट सिद्धांत लागू होता है. स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार नागरिकों का मौलिक अधिकार है, खनिजों के रूप में प्राकृतिक संपदा नागरिकों की है, जिन्हें राज्य द्वारा संरक्षित करने की आवश्यकता है. अवैज्ञानिक खनन पर नदियों और पर्यावरण पर गंभीर परिणाम होता है. जिसे सतत विकास सिद्धांत को प्रभावी बनाने के लिए जांचने की आवश्यकता है, जिसके लिए भारत प्रतिबद्ध है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)