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सड़कों पर उतरकर बार-बार आंदोलन करने से क्या हासिल होगा युवाओं को?

जिन राज्यों में किसान आंदोलन और युवाओं और छात्रों का आंदोलन चल रहा था वहां बीजेपी सत्ता से बाहर हो चुकी है.

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भारत
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राजधानी दिल्ली में हाल के दिनों में आंदोलनों में काफी तेजी आई है. लगातार किसी न किसी संगठन का, किसी न किसी मुद्दे पर आए दिन आंदोलन चलता रहता है. आखिर क्यों हो रहे हैं सड़कों पर आंदोलन? क्या इससे लोगों की मांगें पूरी हो जाती हैं? आखिर क्या मिलेगा इस तरह के प्रोटेस्ट से? इस तरह के कई सवाल हैं, जो हम अपने आप से पूछते हैं.

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इनमें से अधिकांश लोग अपनी परेशानी से इतने बेचैन नजर आते हैं कि और कोई भी दूसरा विकल्प नजर नहीं आता है. इन सभी सवालों को लेकर क्विंट हिंदी ने अलग-अलग विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर और छात्रों को संपर्क कर उनसे इस तरह के प्रोटेस्ट मार्च पर जवाब लेने का प्रयास किया गया.

मोदी सरकार के 2 करोड़ रोजगार का क्या हुआ?

राजधानी दिल्ली में अपनी विभिन्न मांग को लेकर देश के कई राज्यों से नौजवान प्रदर्शन कर रहे हैं. 7 फरवरी को, यंग इंडिया नेशनल को-ऑर्डिनेशन कमेटी के बैनर तले हजारों युवाओं ने लालकिला से संसद मार्ग तक प्रोटेस्ट मार्च निकाला. इस प्रोटेस्ट मार्च में शामिल नौजवानों ने सस्ती और अच्छी शिक्षा, सम्मानजनक रोजगार के मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद की.

बेरोजगारी के बढ़ते संकट को इस आंदोलन में प्रमुखता से उठाया जा रहा है. इससे जुड़े कई बैनर और पोस्टर में युवा मोदी सरकार से 2 करोड़ हर साल रोजगार के वादे पर उनसे जवाब मांगते हुए देखे जा सकते हैं.

जिन राज्यों में किसान आंदोलन और युवाओं और छात्रों का आंदोलन चल रहा था वहां बीजेपी सत्ता से बाहर हो चुकी है.
सबको शिक्षा सबको काम 
(फोटो-फेसबुक)

आयोजकों का दावा है कि देशभर से 70 से अधिक छात्र यूनियन,पैनल और तमाम संगठन इस प्रोटेस्ट मार्च में हिस्सा ले रहे हैं. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, पंजाब सेंट्रल यूनिवर्सिटी,हरियाणा सेंट्रल यूनिवर्सिटी, मोतिहारी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के अलावा गुजरात सेंट्रल यूनिवर्सिटी, जाधवपुर सेंट्रल यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र संगठन के प्रतिनिधि और नौजवान हुए शामिल.

जिन राज्यों में किसान आंदोलन और युवाओं और छात्रों का आंदोलन चल रहा था वहां बीजेपी सत्ता से बाहर हो चुकी है.
छात्रों की सुरक्षा भी प्रमुख मुद्दा
फोटो-फेसबुक
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नया नहीं है छात्रों का आंदोलन

राजधानी दिल्ली में लगातार छात्र, नौजवान और किसान अपने आंदोलन से सरकार तक अपनी मांग पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं. हाल के दिनों में ऐसे आंदोलनों में तेजी देखने को मिली है. NSSO के रोजगार डेटा ने भी इन आंदोलनों को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. मौजूदा सरकार के कार्यकाल में इसमें तेजी देखने को मिली है.

कई नौजवान ऐसे भी हैं, जो प्रति‍योगी परीक्षा पास करने के बरसों बाद भी नौकरी के लेटर का इंतजार कर रहे हैं.

खबरों के मुताबिक, बेरोजगारी दर पिछले 45 साल में सबसे अधिक हो चुकी है. नौकरियों में लगातार कटौती हो रही है. एक-एक सीट के लिए हजारों लोग आवेदन कर रहे हैं. चपरासी की नौकरी के लिए Ph.D तक की योग्यता वाले युवा अप्लाई कर रहे हैं. सरकार रोजगार के नए अवसर पैदा करने में नाकाम दिख रही है.

जिन राज्यों में किसान आंदोलन और युवाओं और छात्रों का आंदोलन चल रहा था वहां बीजेपी सत्ता से बाहर हो चुकी है.
North East के छात्र संगठन हुए शामिल 
फोटो-फेसबुक
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सड़क पर आंदोलन करना मजबूरी है

English and Foreign Language University, हैदराबाद के Assistant प्रोफेसर प्रशांत कुमार कैन ने क्विंट हिंदी को बताया कि इस तरह के आंदोलन का मुख्य कारण नौजवानों में बढ़ता असंतोष है. इस तरह के आंदोलन से क्या हल निकलेगा और क्यों हो रहे हैं, ऐसे सवाल के जवाब में उन्‍होंने कहा, "छात्र अपने स्‍कॉलरशिप को लेकर परेशान है. Ph.D कर चुके नौजवान लेक्‍चरशिप न मिल पाने से बेहद निराश हैं.

इनका जवाब है कि उच्च शिक्षा गरीब छात्रों की पहुंच से दूर हो रही है, इसलिए सड़कों पर उतरना मजबूरी बन रही है. जब सुनवाई के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, तभी मजबूरन सड़क पर उतरना पड़ता है.

जिन राज्यों में किसान आंदोलन और युवाओं और छात्रों का आंदोलन चल रहा था वहां बीजेपी सत्ता से बाहर हो चुकी है.
हैदराबाद के छात्रों ने दिया अपना समर्थन 
(फोटो-फेसबुक)
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हमारे विश्वविद्यालय में भी आरक्षण और रोस्टर मुद्दे पर लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं. कई छात्र और प्रोफेसर ने भी इस आंदोलन के समर्थन में अपनी उपस्थिति दिल्ली तक जाकर दर्ज करवाई है. भले ही सरकर से हमें तुरंत कोई समाधान न मिले, पर आनेवाले लोकसभा चुनाव परिणाम में इसका असर निश्चित ही देखा जायेगा.
प्रशांत कुमार कैन, असिस्‍टेंट प्रोफेसर, EFL-University, हैदराबाद

दिल्ली में हो रहे आन्दोलनों के बारे में प्रशांत ने बताया कि राजधानी होने के कारण देशभर में अपनी मांग को आप आसानी से पहुंचा सकते हैं. मीडिया की उपस्थिति भी इसमें काफी सहायक है. लेकिन देश के अन्य राज्यों में छिटफुट आंदोलन, खबरों का हिस्सा नहीं बन पाते हैं, जिससे उसका मैसेज अधिक लोगों तक नहीं पहुंच पाता है.

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नतीजे की परवाह नहीं करता जन आंदोलन

बिहार के मोतिहारी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर संजय कुमार ने क्विंट हिंदी को बताया, ''इसके दो पहलू हैं. एक तरफ तो कुछ छात्रों को मौजूदा केंद्र सरकार ने धर्म,जाति, और मजहब के नाम पर गुमराह कर रखा है और वो मंदिर और गाय में फंसे हुए हैं, दूसरी तरफ वो नौजवान हैं, जो रोजगार और शिक्षा के बुनियादी सवाल को लेकर सरकार से सवाल पूछने का साहस कर रहे हैं. ऐसे युवाओं की संख्यां बहुत ज्यादा है और अभी NSSO के रोजगार सर्वे ने भी इस सच्चाई को सामने लाने में बड़ी भूमिका निभाई है.''

''क्या नतीजा देखते हैं इन प्रोटेस्ट मार्च और आंदोलन का?'' जब प्रोफेसर संजय कुमार से क्विंट हिंदी यह सवाल पूछा, तो उन्होंने कहा, ''आंदोलन किसी नतीजे की उम्मीद में नहीं किया जाता. जब सामने की सभी संवैधानिक और सांस्थानिक व्यवस्था सुनवाई के सारे रास्ते बंद कर देती है, तब इससे निकलने के लिए आंदोलन ही एकमात्र हथियार बच जाता है. हालिया विधानसभा के नतीजे इस बात का सबूत हैं. जिन राज्यों में किसान आंदोलन और युवाओं और छात्रों का आंदोलन चल रहा था वहां बीजेपी सत्ता से बाहर हो चुकी है.''

जिन राज्यों में किसान आंदोलन और युवाओं और छात्रों का आंदोलन चल रहा था वहां बीजेपी सत्ता से बाहर हो चुकी है.
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र और नौजवान 
(फोटो-फेसबुक)
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इन आंदोलन से प्रोफेसर की नौकरी और विश्वविद्यालय की सच्चाई सामने

दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे दीपक भास्कर ने क्विंट हिंदी को जोर देकर कहा, ''अब तक आम लोगों में प्रोफेसर की नौकरी को रॉयल समझा जाता था, लेकिन ऐसे आंदोलनों से विश्विद्यालय में चल रहे गोरखधंधे का पर्दाफाश हुआ है और लोगों के बीच सच्चाई सामने आयी है. असल में आंदोलन की सफलता को अगर आप मापना चाहते हैं तो जिस तरह से across class/caste इस मुद्दे पर एकता बन रही है वो सबसे महत्वपूर्ण बात है.''

उन्‍होंने कहा, ''पहले बहुत सारे लोग इस तरह की बातों से अनजान थे. उन्हें पता ही नहीं था कि कॉलेज में प्रोफेसर लोगों को क्या समस्या से गुजरना पड़ता है. लेकिन जब से रोस्टर के मुद्दे का आंदोलन हो या SC/ST/OBC के आरक्षण या फिर 10% सवर्ण आरक्षण का आंदोलन हो चाहे एडहॉक नियुक्ति की समस्या, इन आंदोलनों की वजह से आम लोगों तक इसकी सच्चाई अब पहुंच रही है. यही सबसे बड़ी सफलता है ऐसे एकजुट होने का और प्रोटेस्ट करने का. सामाजिक न्याय की ये ऐतिहासिक जीत है.''

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जिन राज्यों में किसान आंदोलन और युवाओं और छात्रों का आंदोलन चल रहा था वहां बीजेपी सत्ता से बाहर हो चुकी है.
जॉब चाहिए ,जुमला नहीं 
(फोटो-फेसबुक)

यंग इंडिया नेशनल को-ऑर्डिनेशन कमेटी के बैनर तले आयोजित इस देशव्यापी मार्च को दिल्ली की आम आदमी पार्टी, स्वराज इंडिया अभियान, सहित कई अन्य छोटे-बड़े सामाजिक संगठन ने समर्थन दिया. इस आंदोलन में जाने-माने सीनियर अधिवक्ता प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवानी, पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल और भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य सहित कई अन्य युवा नेताओं ने सम्बोधित किया और अपना समर्थन दिया.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष एन साई बालाजी और उनके छात्र संगठन AISA ने इस मार्च को आयोजित करने में मुख्य भूमिका निभाई.

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