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Mahua Moitra केस की जांच कर रही एथिक्स कमेटी, कैसे करती है काम? 15 में 7 मेंबर BJP सांसद Explained

Cash for query: एथिक्स कमेटी में 15 सदस्य हैं, जिसमें 7 बीजेपी के हैं.

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तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) पर घूस लेकर संसद में सवाल पूछने का आरोप (Cash for query) लगा है. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की मोइत्रा के खिलाफ शिकायत को लोकसभा की आचार समिति (एथिक्स कमेटी) को भेज दिया है. अब सवाल उठ रहे हैं कि आचार समिति (Ethics Committee) महुआ मोइत्रा के खिलाफ क्या कार्रवाई करेगी, क्या मोइत्रा की सांसदी जा सकती है? इन सवालों के जवाब जानने से पहले ये जान लेते हैं कि एथिक्स कमेटी यानी आचार समिति है क्या और ये कैसे काम करती है?

Mahua Moitra केस की जांच कर रही एथिक्स कमेटी, कैसे करती है काम? 15 में 7 मेंबर BJP सांसद Explained

  1. 1. क्या है एथिक्स कमेटी?

    इस समिति का गठन 1997 में राज्यसभा में और 2000 में लोकसभा में किया गया था. यह संसद सदस्यों की आचार संहिता को लागू करती है. यह सांसदों के खिलाफ कदाचार के मामलों की जांच करती है और उचित कार्रवाई की सिफारिश करती है.

    आसान भाषा में कहें तो ये समिति संसद में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने के लिए काम करती है.

    राज्यसभा और लोकसभा दोनों में आचार समिति होती है. राज्यसभा की आचार समिति स्थायी समिति (Permanent Standing Committee) की श्रेणी में आती है.

    लोकसभा आचार समिति की संरचना और काम क्या है?

    • समिति में 15 से अधिक सदस्य नहीं होने चाहिए

    • समिति के सदस्यों को अध्यक्ष की ओर से नामित किया जाता है और वे एक साल से अधिक की अवधि के लिए पद पर बने रहते हैं

    • समिति अध्यक्ष की ओर से भेजे गए लोकसभा सदस्य के अनैतिक आचरण से संबंधित प्रत्येक शिकायत की जांच कर सकती है और सिफारिशें भी कर सकती है.

    • समिति सदस्यों के लिए एक आचार संहिता बना सकती है और समय-समय पर आचार संहिता में संशोधन या उसमें कुछ बदलाव जोड़ने का सुझाव दे सकती है.

    संसद की एथिक्स कमेटी का इतिहास

    जानकारों का मानना है कि आजादी के बाद जैसे-जैसे समय बीतता गया, सांसद और विधायकों के कामों में गिरावट दर्ज की जाने लगी. खासतौर पर 70 के दशक के बाद गिरावट का सिलसिला आरंभ हुआ. क्षेत्रीय दलों के उदय के बाद से हालात बिगड़ने लगे. 23- 24 सितंबर 1992 को दिल्ली में हुए पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन हुआ. जिसमें संसद और विधान मंडलों में आचार समितियों के गठन की सिफारिश की गई थी.

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  2. 2. वर्तमान में कौन हैं एथिक्स कमेटी के सदस्य?

    भारत में पहली आचार समिति का गठन 4 मार्च, 1997 को राज्यसभा के तत्कालीन सभापति के. आर. नारायण ने किया था. पूर्व केंद्रीय मंत्री शंकर राव चव्हाण इसके पहले अध्यक्ष बने. इस समिति ने अपनी पहली प्रतिवेदन में सदस्यों के आचरण के लिए 14 सूत्री कोड बनाया था. जिसमें संसद के सम्मान और विश्वसनीयता के प्रति सदस्यों के आचरण शामिल हैं.

    लोकसभा में आचार समिति का गठन 16 मई, 2000 को 13वीं लोकसभा के दौरान हुआ. इस समिति के पहले अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर बने. बाद में लालकृष्ण आडवाणी से लेकर मानिकराव गावित अध्यक्ष रहे.

    संसद की वेबसाइट के अनुसार आचार समिति की आखिरी बैठक 27 जुलाई, 2021 को हुई थी, इस समिति ने कई शिकायतें सुनी हैं, लेकिन ये गंभीर मामले नहीं थे. अधिक गंभीर शिकायतों पर विशेषाधिकार समिति या विशेष रूप से सदन की ओर से गठित समिति ने सुनवाई की है.

    वर्तमान में आचार समिति के अध्यक्ष बीजेपी के विनोद कुमार सोनकर हैं. समिति के अन्य सदस्य...

    1. विष्णु दत्त शर्मा (बीजेपी)

    2. सुमेधानंद सरस्वती (बीजेपी)

    3. अपराजिता सारंगी (बीजेपी)

    4. डॉ. राजदीप रॉय (बीजेपी)

    5. सुनीता दुग्गल (बीजेपी)

    6. सुभाष भामरे (बीजेपी)

    7. वी वैथिलिंगम (कांग्रेस)

    8. एन उत्तम कुमार रेड्डी (कांग्रेस)

    9. बालाशोवरी वल्लभनेनी (कांग्रेस)

    10. परनीत कौर (कांग्रेस)

    11. हेमंत गोडसे (शिवसेना)

    12. गिरिधारी यादव (जेडीयू)

    13. पी आर नटराजन CPI (M)

    14. दानिश अली (BSP)

    इस समिति के सदस्य हैं.

    आम या खास, कौन कर सकता है शिकायत?

    आचार समिति में कोई भी व्यक्ति किसी भी लोकसभा सदस्य के कथित अनैतिक व्यवहार या आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत कर सकता है. अगर शिकायत किसी आम व्यक्ति की ओर से की गई है तो उसे किसी संसद के सदस्य को लोकसभा अध्यक्ष के सामने रखना होगा. इसके अतिरिक्त समिति स्वप्रेरणा (Suo Motu) से भी किसी मामले को उठा सकती है या कोई सदस्य भी किसी मामले को समिति के पास भेज सकता है.

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  3. 3. एथिक्स कमेटी के पास कैसे भेजें शिकायत?

    • कोई भी शिकायत आचार समिति को या उसके किसी अधिकारी को लिखित रूप से दी जा सकती है.

    • लिखित शिकायत सयंमित भाषा में होनी चाहिए और ये तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए.

    • शिकायत करनेवाले को अपनी पहचान बताने के साथ-साथ आरोपों को सिद्ध करने के लिए प्रमाण यानी सबूत प्रस्तुत करना होता है.

    • समिति शिकायतकर्त्ता के अनुरोध पर उसके नाम को गुप्त रख सकती है

    • आचार समिति केवल मीडिया की अप्रामाणिक रिपोर्ट पर आधारित शिकायत या न्यायालय में विचाराधीन किसी मामले पर विचार नहीं करती.

    झूठी शिकायत पर होगी कार्रवाई

    इसके अतिरिक्त नियम 296 के तहत समिति की जांच प्रक्रिया की रूपरेखा निर्धारित की गई है और अगर कोई सदस्य झूठी शिकायत दर्ज कराता है तो समिति मामले को लेकर संसदीय विशेषाधिकार के उल्लंघन के रूप में लेकर कार्यवाही कर सकती है.

    शिकायत पर क्या करती है एथिक्स कमेटी?

    किसी मामले को समिति के पास भेजे जाने पर समिति प्रारंभिक जांच करेगी. यदि प्रारंभिक जांच के बाद समिति की राय है कि प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं है, तो वह सिफारिश कर सकती है कि मामले को हटा दिया जाए और समिति का अध्यक्ष उसके अनुसार संसद के अध्यक्ष को सूचना देगा.

    यदि प्रारंभिक जांच के बाद समिति की राय है कि प्रथम दृष्टया मामला है, तो समिति मामले की जांच करेगी. समिति की सिफारिशें एक रिपोर्ट के रूप में प्रस्तुत की जाएंगी. रिपोर्ट अध्यक्ष को प्रस्तुत की जाएगी, इसके बाद अध्यक्ष निर्देश दे सकते हैं कि रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जाए.

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  4. 4. दोषी पाने पर क्या होगी कार्रवाई?

    अगर आचार समिति की जांच में किसी सदस्य पर नैतिक दुर्व्यवहार या आचार संहिता का उल्लंघन का दोषी पाया जाता है तो नियम 297 के तहत दंडात्मक कार्यवाही का भी प्रावधान है. जिसके तहत निंदा, भर्त्सना और एक तय समय के लिए सदन से निलंबन शामिल है. वहीं, समिति मामले की गंभीरता को देखते हुए एक साथ एक से अधिक दंड या किसी अन्य दंड का भी सुझाव दे सकती है.

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  5. 5. कैश फॉर क्वेरी में कितनी बार हुई कार्रवाई?

    • 24 सितंबर, 1951 को बॉम्बे के कांग्रेस सांसद एच जी मुद्गल को रिश्वत लेने के आरोप में निष्कासित कर दिया गया था. उनपर बॉम्बे बुलियन मर्चेंट्स एसोसिएशन की पैरवी के लिए 2 हजार रुपये लेने की शिकायत की गई थी.

    • 23 दिसंबर 2005 में पैसे लेकर सवाल पूछने के आरोप में 10 लोकसभा सांसद और एक राज्यसभा सांसद को निलंबित कर दिया गया था. पी के बंसल समिति की रिपोर्ट के आधार पर ये कार्रवाई की गई थी. बंसल कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद थे. बीजेपी ने सांसदों को निष्कासित करने के लोकसभा के फैसले का विरोध करते हुए मांग की कि बंसल समिति की रिपोर्ट विशेषाधिकार समिति को भेजने की मांग की थी, जिससे सांसद अपना बचाव कर सके.

    क्या था 11 सांसदों को निष्कासित करने का पूरा मामला?

    हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 12 दिसंबर 2005 को एक टीवी चैनल पर प्रसारित ऑनलाइन समाचार साइट कोबरापोस्ट के एक स्टिंग ऑपरेशन में 11 सांसदों को संसद में सवाल उठाने के बदले नकद स्वीकार करते हुए दिखाया गया था.

    मामले में आरोपी 11 सांसदों में से छह बीजेपी से, तीन बीएसपी से और एक-एक आरजेडी और कांग्रेस से थे. वे थे वाई जी महाजन (बीजेपी), छत्रपाल सिंह लोढ़ा (बीजेपी), अन्ना साहेब एम के पाटिल (बीजेपी), मनोज कुमार (आरजेडी), चंद्र प्रताप सिंह (बीजेपी), राम सेवक सिंह (कांग्रेस), नरेंद्र कुमार कुशवाहा (बीएसपी), प्रदीप गांधी (बीजेपी), सुरेश चंदेल (बीजेपी), लाल चंद्र कोल (बीएसपी) और राजा रामपाल (बीएसपी). लोकसभा से 10 सदस्यों को निष्कासित किया गया, जबकि छत्रपाल लोढ़ा, जो एकमात्र राज्यसभा सदस्य थे, उनको भी निष्कासित किया गया था.

    24 दिसंबर 2005 को संसद में 11 सांसदों को निष्कासित करने के लिए मतदान किया गया था, उस समय सदन के नेता प्रणब मुखर्जी ने सदस्यों को निष्कासित करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया, जबकि तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में भी ऐसा ही किया. हालांकि, बीजेपी ने इसका विरोध किया और सदन से वॉकआउट कर दिया.

    बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणीने कहा कि सांसदों ने जो किया वह भ्रष्टाचार था, लेकिन "उससे भी अधिक यह मूर्खता थी" निष्कासन की सजा, जो बहुत कठोर थी.

    आचार समिति और विशेषाधिकार समिति कितनी अलग?

    आचार समिति और विशेषाधिकार समिति का कार्य अक्सर ओवरलैप करता है. किसी सांसद के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप किसी भी निकाय को भेजा जा सकता है क्योंकि इसमें विशेषाधिकार के गंभीर उल्लंघन और सदन की अवमानना ​​​​का आरोप शामिल है.

    संसद की विशेषाधिकार समिति सदन और उसके सदस्यों के विशेषाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की जांच करती है और उचित कार्रवाई की सिफारिश करती है. विशेषाधिकार समिति का कार्य "संसद की स्वतंत्रता, अधिकार और गरिमा" की रक्षा करना है.

    इन विशेषाधिकारों का आनंद व्यक्तिगत सदस्यों के साथ-साथ सदन को सामूहिक रूप से प्राप्त होता है. इस प्रकार, जबकि सांसदों पर भ्रष्टाचार के आरोपों पर विशेषाधिकार के उल्लंघन की जांच की जा सकती है, एक व्यक्ति जो सांसद नहीं है, उस पर भी सदन के अधिकार और गरिमा पर हमला करने वाले कार्यों के लिए विशेषाधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाया जा सकता है. हालांकि, आचार समिति के मामले में, कदाचार के लिए केवल एक सांसद की जांच की जा सकती है.

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  6. 6. ...तो महुआ मोइत्रा पर होगी कार्रवाई?

    बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने मोहुआ मोइत्रा पर एक बिजनेसमैन से पैसे लेकर सवाल पूछने का आरोप लगाया है. हीरानंदानी समूह के सीईओ दर्शन हीरानंदानी ने अपना हलफनामा दिया और कहा कि अडानी ग्रुप के बारे में संसद में सवाल उठाने के लिए उन्होंने मोइत्रा का संसदीय लॉगिन इस्तेमाल किया था. इस शिकायत की संसद की आचार समिति 26 अक्टूबर को सुनवाई करेगी.

    एथिक्स कमेटी महुआ मोइत्रा को समन देकर पेश होने को कह सकती है. समिति निशिकांत दुबे से उनके आरोपों के मद्देनजर सबूत मांग सकती है. अगर मोइत्रा पर लगे आरोप सही साबित होते हैं तो उनकी सदस्यता जा सकती है.

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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क्या है एथिक्स कमेटी?

इस समिति का गठन 1997 में राज्यसभा में और 2000 में लोकसभा में किया गया था. यह संसद सदस्यों की आचार संहिता को लागू करती है. यह सांसदों के खिलाफ कदाचार के मामलों की जांच करती है और उचित कार्रवाई की सिफारिश करती है.

आसान भाषा में कहें तो ये समिति संसद में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने के लिए काम करती है.

राज्यसभा और लोकसभा दोनों में आचार समिति होती है. राज्यसभा की आचार समिति स्थायी समिति (Permanent Standing Committee) की श्रेणी में आती है.

लोकसभा आचार समिति की संरचना और काम क्या है?

  • समिति में 15 से अधिक सदस्य नहीं होने चाहिए

  • समिति के सदस्यों को अध्यक्ष की ओर से नामित किया जाता है और वे एक साल से अधिक की अवधि के लिए पद पर बने रहते हैं

  • समिति अध्यक्ष की ओर से भेजे गए लोकसभा सदस्य के अनैतिक आचरण से संबंधित प्रत्येक शिकायत की जांच कर सकती है और सिफारिशें भी कर सकती है.

  • समिति सदस्यों के लिए एक आचार संहिता बना सकती है और समय-समय पर आचार संहिता में संशोधन या उसमें कुछ बदलाव जोड़ने का सुझाव दे सकती है.

संसद की एथिक्स कमेटी का इतिहास

जानकारों का मानना है कि आजादी के बाद जैसे-जैसे समय बीतता गया, सांसद और विधायकों के कामों में गिरावट दर्ज की जाने लगी. खासतौर पर 70 के दशक के बाद गिरावट का सिलसिला आरंभ हुआ. क्षेत्रीय दलों के उदय के बाद से हालात बिगड़ने लगे. 23- 24 सितंबर 1992 को दिल्ली में हुए पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन हुआ. जिसमें संसद और विधान मंडलों में आचार समितियों के गठन की सिफारिश की गई थी.

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भारत में पहली आचार समिति का गठन 4 मार्च, 1997 को राज्यसभा के तत्कालीन सभापति के. आर. नारायण ने किया था. पूर्व केंद्रीय मंत्री शंकर राव चव्हाण इसके पहले अध्यक्ष बने. इस समिति ने अपनी पहली प्रतिवेदन में सदस्यों के आचरण के लिए 14 सूत्री कोड बनाया था. जिसमें संसद के सम्मान और विश्वसनीयता के प्रति सदस्यों के आचरण शामिल हैं.

लोकसभा में आचार समिति का गठन 16 मई, 2000 को 13वीं लोकसभा के दौरान हुआ. इस समिति के पहले अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर बने. बाद में लालकृष्ण आडवाणी से लेकर मानिकराव गावित अध्यक्ष रहे.

संसद की वेबसाइट के अनुसार आचार समिति की आखिरी बैठक 27 जुलाई, 2021 को हुई थी, इस समिति ने कई शिकायतें सुनी हैं, लेकिन ये गंभीर मामले नहीं थे. अधिक गंभीर शिकायतों पर विशेषाधिकार समिति या विशेष रूप से सदन की ओर से गठित समिति ने सुनवाई की है.

वर्तमान में कौन हैं एथिक्स कमेटी के सदस्य?

वर्तमान में आचार समिति के अध्यक्ष बीजेपी के विनोद कुमार सोनकर हैं. समिति के अन्य सदस्य...

  1. विष्णु दत्त शर्मा (बीजेपी)

  2. सुमेधानंद सरस्वती (बीजेपी)

  3. अपराजिता सारंगी (बीजेपी)

  4. डॉ. राजदीप रॉय (बीजेपी)

  5. सुनीता दुग्गल (बीजेपी)

  6. सुभाष भामरे (बीजेपी)

  7. वी वैथिलिंगम (कांग्रेस)

  8. एन उत्तम कुमार रेड्डी (कांग्रेस)

  9. बालाशोवरी वल्लभनेनी (कांग्रेस)

  10. परनीत कौर (कांग्रेस)

  11. हेमंत गोडसे (शिवसेना)

  12. गिरिधारी यादव (जेडीयू)

  13. पी आर नटराजन CPI (M)

  14. दानिश अली (BSP)

इस समिति के सदस्य हैं.

आम या खास, कौन कर सकता है शिकायत?

आचार समिति में कोई भी व्यक्ति किसी भी लोकसभा सदस्य के कथित अनैतिक व्यवहार या आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत कर सकता है. अगर शिकायत किसी आम व्यक्ति की ओर से की गई है तो उसे किसी संसद के सदस्य को लोकसभा अध्यक्ष के सामने रखना होगा. इसके अतिरिक्त समिति स्वप्रेरणा (Suo Motu) से भी किसी मामले को उठा सकती है या कोई सदस्य भी किसी मामले को समिति के पास भेज सकता है.

एथिक्स कमेटी के पास कैसे भेजें शिकायत?

  • कोई भी शिकायत आचार समिति को या उसके किसी अधिकारी को लिखित रूप से दी जा सकती है.

  • लिखित शिकायत सयंमित भाषा में होनी चाहिए और ये तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए.

  • शिकायत करनेवाले को अपनी पहचान बताने के साथ-साथ आरोपों को सिद्ध करने के लिए प्रमाण यानी सबूत प्रस्तुत करना होता है.

  • समिति शिकायतकर्त्ता के अनुरोध पर उसके नाम को गुप्त रख सकती है

  • आचार समिति केवल मीडिया की अप्रामाणिक रिपोर्ट पर आधारित शिकायत या न्यायालय में विचाराधीन किसी मामले पर विचार नहीं करती.

झूठी शिकायत पर होगी कार्रवाई

इसके अतिरिक्त नियम 296 के तहत समिति की जांच प्रक्रिया की रूपरेखा निर्धारित की गई है और अगर कोई सदस्य झूठी शिकायत दर्ज कराता है तो समिति मामले को लेकर संसदीय विशेषाधिकार के उल्लंघन के रूप में लेकर कार्यवाही कर सकती है.

शिकायत पर क्या करती है एथिक्स कमेटी?

किसी मामले को समिति के पास भेजे जाने पर समिति प्रारंभिक जांच करेगी. यदि प्रारंभिक जांच के बाद समिति की राय है कि प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं है, तो वह सिफारिश कर सकती है कि मामले को हटा दिया जाए और समिति का अध्यक्ष उसके अनुसार संसद के अध्यक्ष को सूचना देगा.

यदि प्रारंभिक जांच के बाद समिति की राय है कि प्रथम दृष्टया मामला है, तो समिति मामले की जांच करेगी. समिति की सिफारिशें एक रिपोर्ट के रूप में प्रस्तुत की जाएंगी. रिपोर्ट अध्यक्ष को प्रस्तुत की जाएगी, इसके बाद अध्यक्ष निर्देश दे सकते हैं कि रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जाए.

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दोषी पाने पर क्या होगी कार्रवाई?

अगर आचार समिति की जांच में किसी सदस्य पर नैतिक दुर्व्यवहार या आचार संहिता का उल्लंघन का दोषी पाया जाता है तो नियम 297 के तहत दंडात्मक कार्यवाही का भी प्रावधान है. जिसके तहत निंदा, भर्त्सना और एक तय समय के लिए सदन से निलंबन शामिल है. वहीं, समिति मामले की गंभीरता को देखते हुए एक साथ एक से अधिक दंड या किसी अन्य दंड का भी सुझाव दे सकती है.

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कैश फॉर क्वेरी में कितनी बार हुई कार्रवाई?

  • 24 सितंबर, 1951 को बॉम्बे के कांग्रेस सांसद एच जी मुद्गल को रिश्वत लेने के आरोप में निष्कासित कर दिया गया था. उनपर बॉम्बे बुलियन मर्चेंट्स एसोसिएशन की पैरवी के लिए 2 हजार रुपये लेने की शिकायत की गई थी.

  • 23 दिसंबर 2005 में पैसे लेकर सवाल पूछने के आरोप में 10 लोकसभा सांसद और एक राज्यसभा सांसद को निलंबित कर दिया गया था. पी के बंसल समिति की रिपोर्ट के आधार पर ये कार्रवाई की गई थी. बंसल कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद थे. बीजेपी ने सांसदों को निष्कासित करने के लोकसभा के फैसले का विरोध करते हुए मांग की कि बंसल समिति की रिपोर्ट विशेषाधिकार समिति को भेजने की मांग की थी, जिससे सांसद अपना बचाव कर सके.

क्या था 11 सांसदों को निष्कासित करने का पूरा मामला?

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 12 दिसंबर 2005 को एक टीवी चैनल पर प्रसारित ऑनलाइन समाचार साइट कोबरापोस्ट के एक स्टिंग ऑपरेशन में 11 सांसदों को संसद में सवाल उठाने के बदले नकद स्वीकार करते हुए दिखाया गया था.

मामले में आरोपी 11 सांसदों में से छह बीजेपी से, तीन बीएसपी से और एक-एक आरजेडी और कांग्रेस से थे. वे थे वाई जी महाजन (बीजेपी), छत्रपाल सिंह लोढ़ा (बीजेपी), अन्ना साहेब एम के पाटिल (बीजेपी), मनोज कुमार (आरजेडी), चंद्र प्रताप सिंह (बीजेपी), राम सेवक सिंह (कांग्रेस), नरेंद्र कुमार कुशवाहा (बीएसपी), प्रदीप गांधी (बीजेपी), सुरेश चंदेल (बीजेपी), लाल चंद्र कोल (बीएसपी) और राजा रामपाल (बीएसपी). लोकसभा से 10 सदस्यों को निष्कासित किया गया, जबकि छत्रपाल लोढ़ा, जो एकमात्र राज्यसभा सदस्य थे, उनको भी निष्कासित किया गया था.

24 दिसंबर 2005 को संसद में 11 सांसदों को निष्कासित करने के लिए मतदान किया गया था, उस समय सदन के नेता प्रणब मुखर्जी ने सदस्यों को निष्कासित करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया, जबकि तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में भी ऐसा ही किया. हालांकि, बीजेपी ने इसका विरोध किया और सदन से वॉकआउट कर दिया.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणीने कहा कि सांसदों ने जो किया वह भ्रष्टाचार था, लेकिन "उससे भी अधिक यह मूर्खता थी" निष्कासन की सजा, जो बहुत कठोर थी.

आचार समिति और विशेषाधिकार समिति कितनी अलग?

आचार समिति और विशेषाधिकार समिति का कार्य अक्सर ओवरलैप करता है. किसी सांसद के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप किसी भी निकाय को भेजा जा सकता है क्योंकि इसमें विशेषाधिकार के गंभीर उल्लंघन और सदन की अवमानना ​​​​का आरोप शामिल है.

संसद की विशेषाधिकार समिति सदन और उसके सदस्यों के विशेषाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की जांच करती है और उचित कार्रवाई की सिफारिश करती है. विशेषाधिकार समिति का कार्य "संसद की स्वतंत्रता, अधिकार और गरिमा" की रक्षा करना है.

इन विशेषाधिकारों का आनंद व्यक्तिगत सदस्यों के साथ-साथ सदन को सामूहिक रूप से प्राप्त होता है. इस प्रकार, जबकि सांसदों पर भ्रष्टाचार के आरोपों पर विशेषाधिकार के उल्लंघन की जांच की जा सकती है, एक व्यक्ति जो सांसद नहीं है, उस पर भी सदन के अधिकार और गरिमा पर हमला करने वाले कार्यों के लिए विशेषाधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाया जा सकता है. हालांकि, आचार समिति के मामले में, कदाचार के लिए केवल एक सांसद की जांच की जा सकती है.

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...तो महुआ मोइत्रा पर होगी कार्रवाई?

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने मोहुआ मोइत्रा पर एक बिजनेसमैन से पैसे लेकर सवाल पूछने का आरोप लगाया है. हीरानंदानी समूह के सीईओ दर्शन हीरानंदानी ने अपना हलफनामा दिया और कहा कि अडानी ग्रुप के बारे में संसद में सवाल उठाने के लिए उन्होंने मोइत्रा का संसदीय लॉगिन इस्तेमाल किया था. इस शिकायत की संसद की आचार समिति 26 अक्टूबर को सुनवाई करेगी.

एथिक्स कमेटी महुआ मोइत्रा को समन देकर पेश होने को कह सकती है. समिति निशिकांत दुबे से उनके आरोपों के मद्देनजर सबूत मांग सकती है. अगर मोइत्रा पर लगे आरोप सही साबित होते हैं तो उनकी सदस्यता जा सकती है.

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