सुप्रीम कोर्ट ने 17 नवंबर को त्रिपुरा पुलिस को निर्देश दिया कि वह सांप्रदायिक हिंसा मामले में दो वकीलों और एक पत्रकार के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न करे. इन्होंने त्रिपुरा में हुई सांप्रदायिक हिंसा पर उनकी "फैक्ट फाइंडिंग" रिपोर्ट और ट्वीट के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम, 1967 (UAPA) और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत त्रिपुरा पुलिस द्वारा दर्ज FIR को SC में चुनौती दी थी.
गौरतलब है कि त्रिपुरा पुलिस ने कथित तौर पर 'धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने' वाली पोस्ट के लिए UAPA के तहत 102 सोशल मीडिया हैंडल पर 6 नवंबर को मामला दर्ज किया था. इन पोस्ट में राज्य में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय पर हमलों की रिपोर्ट को शेयर किया गया था.
त्रिपुरा पुलिस ने आरोपी पर "सांप्रदायिक तनाव भड़काने" के लिए "आपराधिक साजिश" का आरोप लगाया था.
सुनवाई के दौरान क्या हुआ?
CJI एनवी रमना, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्य कांत की बेंच ने बुधवार, 17 नवंबर को वकीलों मुकेश और अंसारुल हक अंसार के साथ-साथ पत्रकार श्याम मीरा सिंह द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए तीनों आरोपियों को बचाने का आदेश पारित किया.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पक्ष रखते हुए एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि दोनों वकीलों ने हिंसा का अध्ययन करने के लिए त्रिपुरा का दौरा किया था और घटनाओं के बारे में एक तथ्य-खोज (फैक्ट फाइंडिंग) रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसके बाद इन्हे त्रिपुरा पुलिस ने UAPA के तहत FIR के संबंध में पूछताछ के लिए उपस्थित होने के लिए एक नोटिस जारी किया था.
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