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नहीं चल रहा सास-बहू और नागिन का जादू, क्यों गिर रही है TRP? 

लेकिन पिछले तीन सालों में जनरल एंटरटेनमेंट चैनलों ने अपनी 25 फीसदी से ज्यादा व्यूअरशिप खो दी है. क्या है इसकी वजह?

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भारत
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जनरल एंटरटेनमेंट चैनल (GEC) जैसे सोनी टीवी, स्टार प्लस, जी टीवी की TRP में हाल के दिनों में बड़ी गिरावट आई है. ये चैनल सालों से TRP चार्ट्स के टॉप पर रहे हैं, खास तौर पर इन पर दिखाए जाने वाले टीवी सीरियल्स की वजह से इनके दर्शकों की संख्या काफी बड़ी है.

लेकिन पिछले तीन सालों में इन चैनलों ने अपनी 25 फीसदी से ज्यादा व्यूअरशिप खो दी है. क्या है इसकी वजह?

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व्यूवरशिप डाटा देने वाली संस्था BARC के मुताबिक, 2015 में जहां कुल टीवी देखने वाले लोगों में से 28.5 फीसदी लोग हिंदी एंटरटेनमेंट चैनल देखते थे, जिनमें स्टार प्लस, जी टीवी और कलर्स टॉप पर थे, वहीं 2018 में ये शेयर गिर कर 22.6 फीसदी पर पहुंच गया है. यानि करीब 6 फीसदी कि गिरावट सिर्फ तीन सालों में दर्ज की गई है.

लेकिन अगर कुल टीवी देखने वाले लोगों की बात करें तो ये नंबर बढ़ा है. 2015 की आखिरी तिमाही में कुल टीवी इंप्रेशन 21.2 बिलियन थे, जबकि 2018 की आखिरी तिमाही में ये आंकड़ा 29.2 बिलियन तक पहुंचा.

लेकिन पिछले तीन सालों में जनरल एंटरटेनमेंट चैनलों ने अपनी 25 फीसदी से ज्यादा व्यूअरशिप खो दी है. क्या है इसकी वजह?

लेकिन सिर्फ जी टीवी और सोनी को छोड़कर हर एंटरटेनमेंट चैनल की ऑडियन्स कम हुई है. जिसमें सबसे बड़ा झटका लगा है स्टार ग्रुप के 110 बिलियन के चैनल स्टार प्लस को लगा.

हिंदी एंटरटेनमेंट चैनल देश में 660 बिलियन की इंडस्ट्री के लीडर रहे हैं. पिछले साल एडवरटाइजिंग से आने वाले 267 बिलियन का लगभग एक तिहाई हिस्सा इन्हीं चैनलों को गया है.

अगर GEC अच्छा करते हैं तो माना जा सकता है कि टीवी इंडस्ट्री के लिए सब ठीक चल रहा है. कोई दूसरे चैनल इस तरह से असर नहीं डाल सकते
शैलेश कपूर, CEO, ओर्मैक्स मीडिया

अभी तक का ट्रेंड देखें तो ये बात साफ है कि जी ग्रुप के लिए जी टीवी, स्टार इंडिया के लिए स्टार प्लस और वायकॉम के लिए कलर्स ही कमाई, एड और कंपनी की लीडरशिप को बनाए हुए हैं. हालांकि मराठी, तेलुगू, तमिल समेत दूसरी भाषाओं के दर्शक भी बड़ी तादाद में हैं.

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टीवी के दर्शकों में कमी नहीं आई है, बदलाव दर्शकों की संख्या नापने के पैमाने में हुआ है
पुनीत मिश्रा, CEO, डोमेस्टिक ब्रॉडकास्ट जी इंटरटेनमेंट

BARC पहले जहां TRP के लिए 20 हजार घरों का सैंपल लेता था जिसमें 90 हजार के आस-पास लोग होते थे, वहीं अब लगभग 1,35,000 दर्शकों को शामिल करते हुए 30 हजार घरों को सैंपल में लिया जाता है जिसमें एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण इलाकों और दक्षिण भारत से है.

नॉन हिंदी GEC लगातार बढ़ रहा है. इसलिए नहीं कि अब ज्यादा लोग इसे देख रहे हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि इसे देखने वालों की अब गिनती हो पा रही है

लेकिन इस बदलाव के और भी कारण हैं..

हिंदी GEC को इस वक्त फिल्म और न्यूज चैनलों से कड़ी टक्कर मिल रही है. खास तौर पर नोटबंदी के बाद से हिंदी न्यूज व्यूअरशिप में महिलाओं की संख्या में भारी इजाफा हुआ है
पार्थो दासगुप्ता, CEO, BARC
दर्शक बंटते जा रहे हैं क्योंकि विकल्प ज्यादा हैं. लोग क्या देखना चाहते हैं इस पर शहरीकरण का भी असर है 
के सत्यनारायण, वाइस प्रेसिडेंट, आर के स्वामी मीडिया ग्रुप

जिस साल हिंदी GEC में गिरावट आई है उसी साल हिंदी फिल्म चैनलों में अच्छी बढ़त देखने को मिली. कुछ एक्सपर्ट्स के मुताबिक दर्शकों का टीवी की जगह ऑनलाइन मीडियम की तरफ झुकाव भी इसकी बड़ी वजह है. फिलहाल, ऑनलाइन मीडियम टीवी से ज्यादा तेजी से तो बढ़ ही रहे हैं, लेकिन अगर सिर्फ यही वजह होती तो टीवी की कुल व्यूअरशिप में भी गिरावट देखने को मिलती.

शैलेष कपूर का मानना है कि BARC सैंपलिंग में बदलाव या ज्यादा विकल्प इस गिरावट की वजह नहीं. वो कहते हैं कि पूरा GEC सेगमेंट काल्पनिक कहानियों पर खड़ा है जो अब उबाऊ हो चुका है. और दूसरी तरफ असल कहानियां दर्शकों के ज्यादा लुभा रही हैं.

2017 के टॉप 10 शो में से 7 असल कहानियों पर आधारित थे. पिछले ढाई सालों में कोई भी काल्पनिक शो कामयाबी हासिल नहीं कर पाया है. पिछले साल अलग-अलग GEC चैनलों पर लॉन्च हुए 50-60 शो में एक भी हिट नहीं हुआ. पुनीत मिश्रा का भी मानना है कि हिंदी शो में मसला कंटेट की क्वालिटी का भी है.

लेकिन पिछले तीन सालों में जनरल एंटरटेनमेंट चैनलों ने अपनी 25 फीसदी से ज्यादा व्यूअरशिप खो दी है. क्या है इसकी वजह?

दर्शकों के लिए कहानियां नई होनी चाहिएं जिससे वो जुड़ भी सकें. एक ही जैसे चले आ रहे ढ़ांचे को तोड़ने की जरूरत है. आज के टीवी में न कोई असरदार किरदार है न दिलचस्प कहानी

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