भारत सरकार और सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर आमने-सामने है. ये पहली बार नहीं है जब ट्विटर भारत में विवादों में है, पहले भी ट्विटर पर भेदभाव को लेकर आरोप लगते रहे हैं. लेकिन हाल का विवाद किसान आंदोलन से जुड़ा है. न्यूज एजेंसी एएनआई ने हाल ही में सूत्रों के हवाले से बताया था कि सरकार ने ट्विटर से ऐसे 1178 अकाउंट्स को हटाने के लिए कहा था, जो कथित तौर पर किसान आंदोलन को लेकर गलत सूचनाएं और भड़काऊ साम्रगी फैला रहे थे. इस पर ट्विटर ने अभी अमल नहीं किया है और साथ ही कह दिया है कि 'ट्वीट्स होते रहने चाहिए.'
1 फरवरी 2021 को देश का बजट पेश हुआ था उसके बावजूद सबसे बड़ी खबर ये रही कि ट्विटर ने कारवां और किसान एकता मोर्चा समेत किसान आंदोलन से जुड़े 250 से ज्यादा ट्विटर अकाउंट ब्लॉक कर दिये. ये वो अकाउंट थे, जो किसान आंदोलन से जुड़ी खबरें डाल रहे थे और मोटे तौर पर सरकार के खिलाफ थे. ये फैसला इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आदेश पर लिया गया, लेकिन करीब एक दिन बंद रखने के बाद ट्विटर ने इन सभी अकाउंट्स को वापस बहाल कर दिया.
ट्विटर और मौजूदा सरकार के बीच मतभेद का इतिहास शुरू होता है 2018 से.
नवंबर 2018: डॉर्सी का पोस्टर विवाद
नवंबर 2018 में जैक डॉर्सी ने भारतीय महिला पत्रकारों और एक्टिविस्ट्स के साथ एक तस्वीर खिंचवाई, जिसमें वो एक पोस्टर के साथ नजर आए. इस पोस्टर में लिखा था ‘ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक व्यवस्था खत्म हो (Smash Brahminical Patriarchy)'
सामाजिक तौर से संवेदनशील इस मुद्दे पर उनकी तस्वीर सामने आने के बाद हंगामा शुरु हो गया. 1 दिसंबर को राजस्थान कोर्ट ने पुलिस को ट्विटर सीईओ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और ब्राह्मण समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने संबंधी आरोपों की जांच का निर्देश दे दिया. बाद में 7 अप्रैल 2020 को राजस्थान हाई कोर्ट ने ये FIR खारिज कर दी.
फरवरी 2019: ट्विटर पर भेदभाव करने का आरोप
2019 में कई दक्षिणपंथी ट्विटर यूजर्स ने नई दिल्ली में एक विरोध मार्च निकाला और ट्विटर पर उनके खिलाफ पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया. फरवरी 2019 में आईटी पर बनी संसदीय समिति ने जैक डॉर्सी को समन भेजा. इस समिति की अध्यक्षता बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर कर रहे थे.
इस बारे में शिकायत यूथ फॉर सोशल मीडिया डेमोक्रेसी ने की थी, जिसमें दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता तेजिंदरपाल सिंह बग्गा भी शामिल थे. इनके आरोपों में गलत तथ्यों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना, नागरिकों की निजता और उनके डाटा का दुरुपयोग और वामपंथी विचारधारा के प्रति झुकाव आदि मुद्दे शामिल थे.
अक्टूबर 2020: विवादित नक्शे का मामला
29 अक्टूबर 2020 में ट्विटर को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के सामने पेश होकर माफी मांगनी पड़ी. दरअसल ट्विटर के एक लाइव ब्रॉडकास्ट में लेह को चीन का हिस्सा दिखाया गया था. जिसके बाद डाटा प्रोटेक्शन बिल पर पुनर्विचार के लिए जेपीसी का गठन किया गया था.
सरकार ने ट्विटर के सीईओ जैक डॉर्सी को कड़ा पत्र लिखकर गंभीर चेतावनी देते हुए कहा कि भारतीय नक्शे में छेड़छाड़ को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और ऐसी घटनाएं एक मध्यस्थ के रुप में उनकी निष्पक्षता और सटीकता पर भी सवाल खड़े करता है.
ट्विटर-सरकार मौजूदा 'मतभेद’
ट्विटर की स्थिति एक मध्यस्थ के तौर पर है, और सरकार ने उसे यही बात कई बार याद दिलाई है. आईटी कानून 2008 में मध्यस्थ (intermediaries) शब्द 27 बार आया है. तो इसका मतलब क्या है?
मध्यस्थ वैसी इकाईयां (entities) हैं, जो पब्लिक कंटेंट (विचार,लेख, कमेंट आदि) को अपने प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित करती हैं, लेकिन इन पर संपादकीय नियंत्रण नहीं रखतीं. उदाहरण के लिए फेसबुक, टवीटर, वर्डप्रेस आदि. इसमें लिखी गई सामग्री के लिए लेखक जिम्मेदार होता है, प्लेटफॉर्म नहीं.
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की धारा 79 के तहत मध्यस्थ पर लेखों के प्रकाशन को लेकर कोई दायित्व नहीं है.
इसलिए ट्विटर कानूनन अपने प्लेटफॉर्म पर डाले गये किसी की नफरत भरी बातों के लिए जिम्मेदार नहीं है. लेकिन भारत में यह छूट सशर्त है, और सरकार चाहती है कि इस छूट का फायदा उठाने के लिए मध्यस्थ अपने कंटेंट को ज्यादा मॉनिटर करें.
ट्विटर के फैसले से नाराज मंत्रालय ने दुबारा कड़े शब्दों में ट्विटर को एक पत्र भेजा जिसमें उसे मध्यस्थ रहने और नियमों का पालन करने की सलाह दी गई. साथ ही ये भी कहा गया कि वो कंटेंट के मामले में अपीलीय अदालत की तरह बर्ताव ना करे.
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