महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने एनसीपी नेताओं के एक डेलिगेशन को भरोसा दिलाया है कि पुणे में 2 और 3 जनवरी 2018 को भीमा-कोरेगांव की हिंसा में जिन दलित आंदोलनकारियों के खिलाफ क्रिमिनल केस दायर किए गए थे वे जल्द से जल्द खत्म कर दिए जाएंगे. सीएम ठाकरे ने एनसीपी और कांग्रेस के कुछ नेताओं की मांग के बाद यह बयान दिया है. हालांकि इन नेताओं ने स्पष्ट किया है कि भीमा कोरेगांव और एल्गार परिषद का मामला अलग-अलग है.
क्या था भीमा-कोरेगांव में भड़की हिंसा का मामला ?
एक जनवरी 2018 को वर्ष 1818 में हुई भीमा-कोरेगांव की लड़ाई को 200 साल पूरे हुए थे. इस दिन हर साल पुणे जिले के भीमा-कोरेगांव में दलित पेशवा की सेना पर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की जीत का जश्न मनाते हैं. ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में दलित शामिल थे. एक जनवरी को दलित संगठनों ने एक जुलूस निकाला था. इसी दौरान हिंसा भड़क गई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. पुलिस ने आरोप लगाया कि 31 दिसंबर 2017 को हुए एल्गार परिषद सम्मेलन में भड़काऊ भाषणों और बयानों के कारण भीमा-कोरेगांव गांव में एक जनवरी को हिंसा भड़की.
माओवादियों से लिंक के आरोप में सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तारी
इसके बाद पुणे पुलिस ने 6 जून, 2018 में एल्गार परिषद के कार्यक्रम से माओवादियों के कथित संबंधों की जांच करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को गिरफ्तार किया था.
फिर 28 अगस्त को महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवर राव, सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा और बर्नान गोंजाल्विस को गिरफ्तार किया था. महाराष्ट्र पुलिस का आरोप है कि इस एल्गार परिषद के सम्मेलन के कुछ समर्थकों के माओवादी से संबंध हैं. इस मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा पर अदालत ने रोक लगा रखी है. आनंद तेंतुलबड़े को भी गिरफ्तार किया गया था.
पुलिस ने लगाया था नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने का आरोप
पुणे पुलिस ने जिन सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था, उनकी याचिका का विरोध करते हुए कहा गया था कि ये लोग राजीव गांधी की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करना चाहते थे. ये लोग माओवादी संगठनों से जुड़े हुए हैं. लेकिन अब लगभग साल भर से अधिक वक्त तक जेल में रखने के बाद भी पुलिस इन कार्यकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित नहीं कर पाई है.
पुणे के सेशन कोर्ट ने इस साल सात नवंबर को कोरेगांव हिंसा मामले में माओवादियों से कथित संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार किए गए छह सामाजिक कार्यकर्ताओं – रोना विल्सन, शोमा सेन, सुरेंद्र गाडलिंग, महेश राउत, वरवरा राव और सुधीर धावले की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने 15 अक्टूबर को भीमा कोरेगांव मामले में सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वर्णन गोंजाल्विस की जमानत याचिका खारिज की थी.
इस मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को गिरफ्तार करने की कोशिश हो रही है. लेकिन अदालत ने उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा रखी है. हालांकि उनकी गिरफ्तारी तय मानी जा रही है.
इस मामले में सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं के लगातार आंदोलन और प्रदर्शन के बाद भी गिरफ्तार सामाजिक कार्यकर्ताओं को रिहा नहीं किया गया है. इनकी जमानत की याचिकाओं को अलग-अलग बार अदालतों में खारिज किया जा चुका है. कुछ मामलों में सुनवाई और फैसले रोक कर रखे गए हैं. यह अब इस मामले में रूटीन बन चुका है. दूसरी ओर यह सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर जमानत और सही ढंग की सुनवाई के बिना इन्हें कब तक जेल में रखा जाएगा. पुलिस अपना आरोप साबित नहीं कर पाई और अदालत इन्हें छोड़ने के आदेश नहीं दे रहा है. क्या यह इन सामाजिक कार्यकर्ताओं के मानवाधिकार को कुचला नहीं जा रहा है.
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