ग्लासगो(Glasgow) में आयोजित संयुक्त राष्ट्र की जलवायु वार्ता एक समझौते के साथ खत्म हो गई है. लेकिन समझौते की प्रक्रिया के आखिरी दौर में भारत की आपत्ति के चलते मामला उलझ भी गया था. दरअसल समझौते में कोयले और जीवाश्म ईंधन के उपयोग के चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की बात की गई थी. लेकिन भारत का कहना था कि विकासशील देशों को कोयले के उपयोग की अनुमति बरकरार रहनी चाहिए.
भारत के विरोध और सुझावों पर समझौते में कुछ संशोधन किए गए और अंतिम मसौदे पर सहमति बनी.
ग्लासगो में दो-सप्ताह के COP26 शिखर सम्मेलन में किए गए उत्सर्जन में कटौती के वायदे और प्रतिबद्धताएं, ग्लोबल टेंपरेचर की बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए आवश्यक थे.
समझौते में 40 से ज्यादा देशों ने कोयला उपयोग को पूर्णत: बंद करने पर सहमति जताई, जो कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का सबसे बड़ा कारक है. इसके अलावा 100 से ज्यादा देशों ने 2030 तक मीथेन गैस को कम करने पर भी सहमति जताई.
अंतिम समय में भारत ने जताया विरोध
समझौते के आखिरी दौर में ड्रामा की स्थिति बन गई. भारत ने समझौते में उल्लेखित "कोयले से चलने वाली ऊर्जा को सुनियोजित चरणबद्ध ढंग" से खत्म करने के प्रावधान को खारिज कर दिया. भारत की कार्रवाई को चीन और कोयले पर निर्भरता वाले कुछ दूसरे देशों का भी समर्थन था. इसके बाद चीन, भारत, अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच बातचीत हुई, जिसमें जल्दबाजी में इस प्रावधान में संशोधन कर दिया गया. अब समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशों को अपने कोयला उपयोग को "चरणबद्ध तरीके से कम" करना होगा.
भारत के पर्यावरण और जलवायु मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि संशोधन "उभरती अर्थव्यवस्थाओं की राष्ट्रीय परिस्थितियों" को दर्शाता है.
उन्होंने कहा कि हम विकासशील देशों की आवाज बन रहे है.हमने एक आम सहमति बनाने का प्रयास किया जो विकासशील देशों के लिए उचित और जलवायु न्याय के लिए उचित हो.उन्होंने कहा, इस तथ्य की ओर इशारा करते हुए कि समृद्ध देशों ने ऐतिहासिक रूप से ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा हिस्सा उत्सर्जित किया है.
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