मानवीय गतिविधियों से जलवायु में तेजी से बदलाव हो रहा है, और आने वाले भविष्य में बाढ़, सूखा और हीटवेव में और बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है. संयुक्त राष्ट्र (UN) के इंटर-गवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी नई रिपोर्ट जारी कर दी है. इस रिपोर्ट में भविष्य को लेकर कई चेतावनियां दी गई हैं.
'क्लाइमेट चेंज 2021: द फिजिकल साइंस बेसिस' नाम से पब्लिश इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के हर क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के कारण बड़ी क्षति हो रही है.
रिपोर्ट की बड़ी बातें
मानवीय प्रभाव ने जलवायु को इस दर से गर्म किया है, जो कम से कम पिछले 2,000 सालों में नहीं देखी गई. पिछले 3,000 सालों में किसी भी सदी की तुलना में, 1990 के बाद से औसत समुद्र का स्तर तेजी से बढ़ा है.
पृथ्वी का तापमान तेजी से बढ़ रहा है और 2030 तक इसके 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने का अनुमान है. ये अपने पूर्वानुमान से एक दशक पहले ही होगा. 1970 के बाद से, पिछले 2,000 सालों में किसी भी अन्य 50 वर्ष की अवधि की तुलना में, सतह के तापमान में तेजी से वृद्धि हुई है.
जलवायु परिवर्तन वॉटर साइकिल को तेज कर रहा है. इससे कई क्षेत्रों में अधिक वर्षा और संबंधित बाढ़ के साथ-साथ ज्यादा सूखा पड़ सकता है. तटीय इलाकों में 21वीं सदी के दौरान समुद्र के स्तर में निरंतर वृद्धि देखी जाएगी. समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण होने वाली जलवायु घटनाएं, जो एक सदी पहले एक बार होती थीं, अब साल में एक बार हो सकती हैं.
जलवायु परिवर्तन बारिश के पैटर्न को भी प्रभावित कर रहा है. उच्च अक्षांशों (हाई एल्टीट्यूड) में, बारिश में वृद्धि होने की संभावना है, जबकि उपोष्णकटिबंधीय (सबट्रॉपिक्स) के बड़े हिस्सों में इसके घटने का अनुमान है. मॉनसून बारिश में परिवर्तन अपेक्षित है, जो क्षेत्र के मुताबिक अलग-अलग होगा.
UN प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने इस रिपोर्ट को मानवता के लिए 'खतरे की घंटी' बताया है. गुटेरेस ने कहा, "अगर हम अभी से एक हो जाएं, तो हम जलवायु संकट को टाल सकते हैं. लेकिन, जैसा कि आज की रिपोर्ट स्पष्ट करती है, देरी के लिए समय नहीं है और बहाने के लिए कोई जगह नहीं है. COP26 की सफलता सुनिश्चित करने के लिए मैं सभी नेताओं पर भरोसा करता हूं."
भारत के लिए रिपोर्ट में क्या?
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले कुछ दशकों में पूरे भारत और उपमहाद्वीप में बढ़ती हीटवेव, सूखा और बारिश की घटनाओं में वृद्धि और अधिक चक्रवाती गतिविधि होने की संभावना है. इस सदी के दौरान वार्षिक और ग्रीष्म, दोनों मॉनसून वर्षा में वृद्धि होगी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 20वीं सदी के सेकेंड हाफ में दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई मॉनसून, मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों के कारण एरोसोल और पार्टिकुलेट मैटर में वृद्धि के कारण कमजोर हुआ है.
IPCC वर्किंग ग्रुप की सह-अध्यक्ष, वैलेरी मेसन-डेलमोटे ने कहा, "दशकों से ये साफ है कि पृथ्वी की जलवायु बदल रही है, और इस पर मानव का प्रभाव पड़ा है."
रिपोर्ट में कहा गया है कि हिमालय सहित दुनिया भर में ग्लेशियर पिघल रहे हैं और इनमें कमी आ रही है, और इसे अब उलटा नहीं जा सकता.
क्या है IPCC?
IPCC की स्थापना 1988 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा की गई थी. इसका मिशन वैश्विक नीति निर्धारकों को राष्ट्रीय और वैश्विक नीतियों का मार्गदर्शन करने के लिए जलवायु परिवर्तन का वैज्ञानिक आकलन प्रदान करना था.
इस समूह में 195 देश शामिल हैं, जिनमें से भारत भी एक देश है. इस रिपोर्ट को 66 देशों के 243 वैज्ञानिकों ने मिलकर तैयार किया है.
IPCC की ये रिपोर्ट इसलिए अहम है क्योंकि पिछले कुछ सालों में जलवायु में तेजी से बदलाव देखे गए हैं. गर्मी और सर्दी जहां हर साल रिकॉर्ड तोड़ रही हैं, तो वहीं शहरों में बाढ़ और जंगलों में आग की घटनाओं में भी तेजी आई है. इसी साल, भारत, चीन और यूरोप में बाढ़ का खतरनाक रूप देखने को मिला. वहीं, वेस्ट अमेरिका और कनाडा के जंगलों में भीषण आग के बाद अब तुर्की और ग्रीस इसका सामना कर रहे हैं.
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