कोरोना लॉकडाउन के चलते अपने घरों की तरफ पैदल चलने वाले कितने प्रवासी मजदूरों की मौत हुई, इसका आंकड़ा हमारे पास नहीं है. कोरोना से अब तक कितने डॉक्टर मर चुके हैं, इसका आंकड़ा केंद्र सरकार इकट्ठा नहीं करती है. लॉकडाउन के दौरान कुल कितनी नौकरियां गईं, ये भी हमें नहीं पता है... दरअसल संसद के मानसून सत्र की शुरुआत सरकार के ऐसे ही कुछ जवाबों से हुई. जिनमें सरकार ने ज्यादातर सवालों के जवाब में कहा कि उसके पास आंकड़े मौजूद नहीं हैं. सरकार के इन जवाबों को लेकर अब विपक्षी नेता लगातार मोदी सरकार पर हमलावर हैं.
अब कांग्रेस नेता शशि थरूर ने बीजेपी सरकार पर एक कार्टून के जरिए तंज कसा है. उन्होंने एक बार फिर बिना आंकड़ों की सरकार का जिक्र करते हुए एनडीए का मतलब- "नो डेटा अवेलेबल" बताया. शशि थरूर ने एक ट्वीट में लिखा,
“प्रवासी मजदूरों का डेटा नहीं, किसानों की आत्महत्याओं का डेटा नहीं. वित्तीय प्रोत्साहन पर गलत आंकड़ा, कोरोना की मौतों पर भी संदिग्ध आंकड़ा, जीडीपी ग्रोथ पर भी काफी धुंधला डेटा- सरकार ने NDA का मतलब ही बदलकर रख दिया है- नो डेटा अवेलेबल”
कांग्रेस ने संसद में कहा- बिना डेटा वाली सरकार
बता दें कि सरकार के नो डेटा वाले जवाब को लेकर विपक्षी दल पिछले एक हफ्ते से लगातार सोशल मीडिया पर लगातार हमला बोल रहे हैं. इससे पहले कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने संसद में भी सरकार को बिना डेटा वाली सरकार बताया था. उन्होंने कहा था कि,
“सरकार ने संसद को बताया कि उनके पास उन प्रवासी मजदूर की मौतों का आंकड़ा नहीं है, जो लॉकडाउन के बाद अपने घरों को जाने के लिए मजबूर हुए. जब हम नौकरियों पर सवाल करते हैं तो सरकार कहती है कि डेटा नहीं है. ये ‘बिना डेटा वाली सरकार’ है.”
कौन से डेटा पर सरकार ने क्या कहा
प्रवासी मजदूरों की मौत
मानसून सत्र की शुरुआत में ही केंद्र सरकार से पूछा गया कि कोरोना के चलते लगाए गए लॉकडाउन के बाद पैदल अपने घरों तक पहुंचने की कोशिश में कितने मजदूरों ने जान गंवाई और क्या सरकार ने उन्हें मुआवजा देने की कोई योजना बनाई है? इस सवाल के जवाब में सरकार ने संसद में बताया कि उनके पास प्रवासी मजदूरों की मौत का कोई भी आंकड़ा नहीं है. इसीलिए मुआवजे का कोई सवाल ही नहीं उठता है.
प्रवासी मजदूरों की नौकरियां/बेरोजगारी
प्रवासी मजदूरों को लेकर विपक्ष की तरफ से एक सवाल और पूछा गया था, जिसमें कहा गया कि कोरोना लॉकडाउन के चलते कितने मजदूरों ने अपनी नौकरियां गंवाईं हैं. साथ ही ये भी पूछा गया कि लॉकडाउन के बाद बेरोजगारी के क्या आंकड़े हैं. लेकिन सरकार की तरफ से इस बारे में भी कोई जवाब नहीं मिला. सरकार ने कहा कि अभी उनके पास इसके आंकड़े मौजूद नहीं हैं.
किसानों की खुदकुशी
अब एक और अहम डेटा को लेकर सरकार ने जवाब देने से इनकार किया है. वो है किसानों की आत्महत्या का डेटा. देशभर में कितने किसानों ने आत्महत्या की है इसे लेकर भी सरकार के पास कोई जवाब नहीं है. सरकार का तर्क है कि राज्य सरकारें एनसीआरबी के साथ आंकड़े शेयर नहीं कर रही हैं. इसके लिए केंद्र की तरफ से राज्यों को चिट्ठी भी लिखी गई, लेकिन उसका कोई जवाब नहीं आया है.
कोरोना योद्धाओं की मौत का आंकड़ा (पुलिस-डॉक्टर)
सरकार ने कोरोना महामारी की शुरुआत में डॉक्टरों, पुलिसकर्मियों और सफाई कर्मियों को कोरोना वॉरियर का नाम दिया था. उनके लिए ताली और थाली भी बजवाईं गई थी और हेलीकॉप्टर से फूलों की बारिश भी करवाई गई थी. लेकिन संसद में जब विपक्ष ने सरकार से पूछा कि कोरोना से अब तक कितने डॉक्टरों और पुलिसकर्मियों की मौत हुई है तो सरकार के पास इसका आंकड़ा ही नहीं था. सरकार ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि कितने डॉक्टरों की कोरोना से मौत हुई है.
इन सभी आंकड़ों के अलावा सरकार ने अवैध प्रवासियों के आंकड़े को लेकर भी जानकारी होने से इनकार कर दिया और कहा कि ये आंकड़े लगातार बदलते रहते हैं. वहीं विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने प्लाज्मा बैंक को लेकर भी कोई आंकड़े देने से इनकार कर दिया है.
साथ ही एक सवाल के जवाब में राज्य गृहमंत्री नित्यानंद राय ने हजारों मजदूरों के पलायन का ठीकरा फेक न्यूज पर फोड़ दिया. उन्होंने कहा कि फेक न्यूज के चलते ही लॉकडाउन में मजदूर अपने घरों के लिए पैदल ही निकल पड़े. यानी सरकार किसी भी सूरत में लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूरों की हालत पर जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है.
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