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UP: बलरामपुर गैंगरेप मर्डर केस कवर करने वाले पत्रकारों को नोटिस

पत्रकारों की खबर चलाने के बाद ही हुआ मामला दर्ज, लेकिन अब देना पड़ रहा है नोटिस का जवाब

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उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में 29 सितंबर को एक दलित युवती के साथ दुष्कर्म हुआ, जिसे लेकर वहां के लोकल पत्रकारों ने खबरें चलाईं और बाद में पुलिस ने कार्रवाई शुरू की. इस मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी भी हुई. लेकिन गिरफ्तारी के 3 हफ्ते बाद 25 अक्टूबर को जनपद बलरामपुर पुलिस मीडिया सेल प्रभारी की तरफ से पत्रकारों को एक नोटिस जारी हुआ. जिसमें कहा गया कि "क्यों न आपके विरुद्ध उक्त कृत्य के लिए उचित धाराओं में अभियोग पंजीकृत कर वैधानिक कार्यवाही की जाए." इस नोटिस के बाद बलरामपुर के लोकल पत्रकार खुद को असुरक्षित मान रहे हैं.

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क्विंट ने इस मामले पर इनसाइड स्टोरी करते हुए सभी पक्षों से नोटिस को लेकर पूरी सच्चाई जानी. सबसे पहले आप इस नोटिस को देखिए कि इसमें क्या लिखा गया है.

क्या लिखा है नोटिस में?

क्या है पूरा मामला

यूपी के बलरामपुर जिले में 29 सितंबर को 22 वर्षीय युवती की रेप के बाद जघन्य तरीके से हत्या कर दी गई थी. 30 सितंबर को शाम सात बजे आरोपी शाहिद और साहिल के नाम पर FIR दर्ज हुई. जिसकी तहरीर में परिजनों ने लिखा कि लड़की एक प्राइवेट फर्म में काम करती थी, लड़की मंगलवार को काम से देर शाम तक लौटकर नहीं आई तो परिजनों ने फोन करने की कोशिश की, लेकिन लड़की से संपर्क नहीं हो पाया. शाम 7 बजे लड़की को अचेत अवस्था में एक रिक्शे वाला उसके घर लेकर आया. लड़की के हाथ में ग्लूकोज चढ़ाने वाला वीगो लगा हुआ था और उसकी हालत काफी खराब लग रही थी. परिजन उसे तुरंत अस्पताल के लिए ले गए लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई. लड़की की मां ने पूरी घटना को लेकर कहा कि,

“कुछ लड़के मेरी बच्ची को जबरदस्ती अपनी गाड़ी में बिठाकर अपने कमरे ले गए. उसको इंजेक्शन लगाए, उसके बाद गैंगरेप किया. उन लोगों ने उसके पैर और कमर को तोड़ दिया. उसके बाद हमारी बच्ची को रिक्शा में बैठा कर भेज दिया. वो एकदम अपंग हो गई थी, उसको न बोलने और न उठने की ताकत थी. वो कहने लगी मम्मी मेरे पेट में बहुत जलन है मैं मर जाउंगी. तब हम उसे अस्पताल ले जा रहे थे रास्ते में उसकी मौत हो गई.”
युवती की मां का बयान बेटी की मौत के दिन

मुद्दे को सबसे पहले उठाने वाले रिपोर्टर मिथलेश कुमार का कहना है कि "घटना के 20 घंटे गुजर चुके थे, उसके बाद मैंने युवती कि मां का बयान लिया. उनके इस बयान के चलने के बाद पुलिस सक्रिय हुई और FIR दर्ज की. मैंने अपनी इस रिपोर्ट को लेकर पुलिस अधिकारियों का भी पक्ष जानना चाहा, लेकिन किसी ने कोई बयान नहीं दिया. इसीलिए मैंने पीड़िता की मां के बयान के आधार पर खबर चलाई."

बहरहाल पीड़िता की मां के बयान में "उनके बेटी की कमर और पैर को तोड़ने" वाली बात का जिक्र लोकल पत्रकारों की रिपोर्ट में मौजूद होना पुलिस प्रशासन के लिए नागवार हो गया. इसके बाद ही 25 अक्टूबर को जिला के16 पत्रकारों को नोटिस जारी किया गया.

पत्रकार ने बताई नोटिस मिलने की वजह

पत्रकार सुशील मिश्रा से बात करने पर उन्होंने इस घटना में पत्रकारों को नोटिस जारी होने के पीछे का कारण बताया. उन्होंने कहा,

“जब 29 सितंबर को घटना घटी तो इसे पुलिस ने 12 घंटे तक दबाकर रखा था. जब हमने पीड़िता की मां का बयान लेने के बाद पुलिस प्रशासन से उनका पक्ष लेना चाहा, तब छोटे अधिकारीयों ने बयान देने से मना करते हुए कहा कि मामला बड़ा है, इसीलिए SP साहब ही बताएंगे. हम सभी स्थानीय पत्रकारों ने SP साहब से संपर्क किया लेकिन बयान नहीं मिला. तब हमने पीड़िता की मां का बयान खबर में चलाया. लेकिन जब बाद में SP साहब का बयान आया, जिसमें उन्होंने कमर, पैर तोड़ने वाली बात का खंडन किया तो हम सभी ने अपने-अपने चैनल पर उस बयान को भी चलाया, ऐसे में हम कैसे गलत हुए. रही बात नोटिस की तो पत्रकारों की आवाज को दबाने के लिए यह नोटिस दिया जा रहा है.”
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एक और पत्रकार प्रमोद पांडेय ने घटना को लेकर बताया, "हमने खबर सामूहिक दुष्कर्म पर लगाई थी, लेकिन कमर पैर टूटने की खबर हमने नहीं लगाई थी. फिर भी मुझे नोटिस भेजा गया. सच तो ये है कि अगर खबर नहीं चलती तो FIR भी दर्ज नहीं होती. यहां अवैध खनन हो रहा है, जिसमें पुलिस प्रशासन के कुछ लोग लाभ उठाते हैं. पत्रकार इस मामले को लिख देते हैं, जो खनन माफियाओं से लेकर उन चुनिंदा पुलिस प्रशासन को नागवार गुजरता है. वो चाहते हैं कि हम आंख बंद रखें वरना सजा भुक्तें. इसीलिए दरअसल नोटिस के जरिए हम लोगों को दबाने की कोशिश की जा रही है, ताकि अन्य मामलों में भी हम जुबान बंद रखें. अब नोटिस का जवाब तो देना ही है, जिसे हम देंगे."

पीड़िता के नाना बोले- हम पत्रकारों के साथ

इस घटना को लेकर हमने पीड़ित लड़की के नाना राम कृष्ण शिल्पकार से भी बात की. जिन्होंने पत्रकारों का समर्थन किया और कहा कि अगर खबर नहीं चलती तो कार्रवाई नहीं होती. उन्होंने कहा,

“जिस वक्त मेरी नातिन रिक्शे से घर पहुंची, चलना तो दूर वह खड़ी नहीं हो पा रही थी. मेरे दामाद ने उसे रिक्शे से गोद में उठाकर खटिया पर लिटाया. उस समय परिवार को जो दिखा उस हालत के हिसाब से बयान उन्होंने मीडिया में दिया. पत्रकार बंधुओं ने वो बयान नहीं चलाया होता तो पुलिस की कार्रवाई कैसे होती? अब ये नोटिस पत्रकारों को सिर्फ इसलिए मिला है कि पत्रकार ऐसी घटनाओं को भविष्य में न उठाएं, पत्रकार फ्री होकर बात न कर सकें, पुलिस जो कहे बस वही सही. इसीलिए हम पत्रकारों के साथ हैं उनके लिए जहां बयान देना होगा हम देंगे.” 
राम कृष्ण शिल्पकार, पीड़िता के नाना
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पत्रकारों को दिए गए इस नोटिस को लेकर बलरामपुर SP और एडिशनल SP से क्विंट ने संपर्क किया लेकिन उन्होंने बात नहीं की. लेकिन डीआईजी गोंडा ने कहा कि अगर पत्रकारों को लगता है कि वो सही हैं तो वो जवाब में यही लिखें. उन्होंने कहा,

"पत्रकार से जो पूछा गया है वह उसका फैक्ट बता दें, जो पूछा गया है उसे जवाब में दें. उनको लगता है कि उन्होंने सही किया है तो सही किया है. बताने में क्या दिक्कत है? मीडिया के लोग जो काम करते हैं वह तो करेंगे ही, उन्हें कोई रोक थोड़ी सकता है."

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'पत्रकारों का नहीं, प्रशासन का दोष'

बलरामपुर के पत्रकार मिथिलेश कुमार ने पुलिस के नोटिस पर जवाब दिया है. उन्होंने अपने जवाब में बताया है कि गलती उनकी नहीं बल्कि प्रशासन की है. उन्होंने कहा, "मैंने नोटिस के जवाब में लिखा है कि ये 29 तारीख के शाम की घटना है, हमने 30 सितंबर को ढाई बजे पीड़िता की माता और चाची का वीडियो बनाया. उस बयान को आधार मानते हुए हमने जिला के एडिशनल SP अरविन्द मिश्रा से पीड़ित पक्ष को लेकर बयान लेना चाहा. लेकिन उन्होंने अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं किया. चौथा स्तम्भ से होने के कारण हमने इस घटना को समाज के समक्ष रखा, ताकि बेटी को इंसाफ मिले. इसमें हमारा कोई दोष नहीं है. सारा दोष जिला प्रशासन का है, क्योंकि 20 घंटे बीत जाने के बाद भी प्रशासन इस पर कुछ भी नहीं बोलना चाहता था."

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