उत्तर प्रदेश सरकार(Uttar Pradesh) ने केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते हुए राज्य आपदा राहत कोष (SDRF) से 65.87 करोड़ रुपये निकालकर उससे कुंभ मेला-2019 के लिए बचाव उपकरण की खरीददारी की है. यह दावा भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने अपने एक रिपोर्ट में किया है.
31 मार्च, 2019 को समाप्त वर्ष के लिए यह रिपोर्ट संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने 19 अगस्त को यूपी के विधानसभा में पेश की.
केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों के अनुसार, SDRF फंड का उपयोग अधिसूचित आपदाओं के पीड़ितों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए किया जाता है. रिपोर्ट में कैग ने कहा कि कुंभ मेले के लिए उपकरणों की खरीद के लिए SDRF फंड का इस्तेमाल करने के बजाय, राज्य सरकार को अपने बजट में से उसके लिए प्रावधान करना चाहिए था.
कैग रिपोर्ट में क्या-क्या हुआ है खुलासा
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकार ने कहा था कि प्रयागराज में 15 जनवरी से 4 मार्च 2019 तक आयोजित कुंभ मेला-2019 बहुत सफल रहा और 24 करोड़ से अधिक लोगों ने मेले का दौरा किया. फिर भी मेले पर किया गया खर्च सरकारी मंजूरी से अधिक था. नतीजतन कई ठेकेदारों का भुगतान अभी भी लंबित है.
सीएजी ने अपने ऑडिट में पाया कि लोक निर्माण विभाग ने बिना वित्तीय मंजूरी के सड़क की मरम्मत और सड़कों के किनारे पेड़ों की पेंटिंग से जुड़े छह कार्यों के लिए ₹1.69 करोड़ खर्च किया. इसके अलावा, सूचना और जनसंपर्क विभाग ने इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के माध्यम से कुंभ मेले के प्रचार के लिए 14.67 करोड़ रुपये के आवंटन के बावजूद 29.33 करोड़ रुपये के काम करवाये.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कुंभ मेला प्राधिकरण प्रभावी निगरानी करने और विभिन्न संस्थानों से आए तंबू-टेंट के आइटम को वापस करने में विफल रहा, जिसके कारण उस पर लापता टिन, टेंट और फर्नीचर के कारण ₹21.75 करोड़ के मुआवजे के भुगतान का दावा किया गया है.
पानी के तरह बहाया गया जनता का पैसा
सीएजी के ऑडिट के अनुसार,
सड़क कार्यों के लिए संभावित खर्च में जो अनुमान लगाया गया था वह वास्तविक खर्च से ₹3.11 करोड़ अधिक था.
नौ सड़कों के निर्माण पर ₹95.75 लाख का अधिक खर्च किया गया.
ठेकेदारों द्वारा प्रदर्शन सुरक्षा की जमा राशि में ₹6.33 करोड़ की कमी
₹3.24 करोड़ का बैरिकेडिंग का काम और फाइबर रीइन्फोर्समेंट प्लास्टिक टॉयलेट वर्क्स पर ₹8.75 करोड़ का खर्च,जो कैग के नजर ने गैर-जरूरी थें.
ठेकेदारों को ₹1.27 करोड़ का अधिक भुगतान किया गया
ऑडिट से पता चला कि तीन कार्य ऐसे बोली लगाने कांट्रेक्टर को दिए गए थे जो नियम के अनुसार योग्य नहीं थें.
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