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मां के इलाज के लिए रोता रहा शख्स: जांच बाद में, अस्पताल पहले बरी

आरोप लग रहा है कि डाॅक्टरों की लापरवाही से एक महिला मरीज की मौत हो गई

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भारत
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सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है. यूपी में एक शख्स सामुदायिक हेल्थ सेंटर के बाहर दहाड़े मार रहा है. गोद में उसकी 60 साल की बेसुध मां है. कभी वो हेल्थ सेंटर का दरवाजा पीटता है, कभी खिड़कियां खड़काता है. कभी चिल्लाता है - 'कोई है क्या?' कभी हेल्थ सेंटर के दूसरी तरफ दौड़ता है. बाद में इस बुजुर्ग महिला की मौत हो जाती है. आरोप लगता है कि वक्त पर इलाज न मिलने के कारण मौत हुई. प्रशासन का कहना है कि ऐसा कुछ हुआ नहीं. महिला को समय पर इलाज मिला, फिर उसे जिला अस्पताल रेफर किया गया जहां उनकी मौत हुई. लेकिन क्या ये सच है?

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क्विंट ने इस मामले की पड़ताल की कि आखिर सच्चाई क्या है? हमने सबसे पहले जाना कि उस शख्स का क्या कहना है कि जो अपनी मां को लेकर हरदोई में सवायजपुर हेल्थ सेंटर गया था. उस शख्स का नाम है सोनू सिंह. जो सांडी ब्लाक के चतरखा गांव के रहने वाले हैं. सोनू सिंह ने बताया कि 30 जून को वो अपनी मां के साथ बाइक पर फर्रुखाबाद जा रहे थे. किसी वाहन ने पीछे से उन्हें टक्कर मारी. सोनू की मां के सिर में चोट लगी थी. उन्होंने राहगीरों से मदद मांगी, लेकिन कोई आगे न आया.

108 एंबुलेंस को फोन किया तो कहा गया कि वक्त लगेगा. पास में है नहीं. दूर से बुलाना होगा. हारकर मैं पैदल ही मां को लेकर चलने लगा. फिर किसी बाइक वाले ने मदद की, जिससे मैं हेल्थ सेंटर पहुंच पाया.
सोनू सिंह, वीडियो में दिख रहे शख्स

ये मामला सामने आने के बाद हरदोई के जिला स्वास्थ्य अधिकारी (CMO) ने जिला सूचना अधिकारी को एक चिट्ठी लिखी. और कहा है कि जिन लोगों ने गलत खबर छापी है उनसे खबर का खंडन छपवाया जाए. चिट्ठी में लिखा है कि मरीज का तत्परता से इलाज किया गया और कोई लापरवाही नहीं हुई. CMO ने ये भी कहा है कि दरअसल सोनू अस्पताल के मेन गेट पर थे, जो उस वक्त बंद था. उन्हें इमरजेंसी गेट पर आना चाहिए था, वहां इस बात का नोटिस भी लगा हुआ था, लेकिन शायद वो अपनी घबराहट में देख नहीं पाए.

आरोप लग रहा है कि डाॅक्टरों की लापरवाही से एक महिला मरीज की मौत हो गई
सीएमओ एस के रावत की 2 जुलाई को लिखी चिट्ठी
(Photo: Quint Hindi)
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हालांकि सोनू सिंह का दावा कुछ और है. वो कहते हैं -

न वहां व्हील चेयर था, न स्ट्रेचर था, अस्पताल भी बंद था. मैं काफी देर तक चिल्लाता रहा, तड़पता रहा लेकिन कोई नहीं आया. एक-सवा घंटे के बाद एक डॉक्टर आए, जो दिव्यांग थे. उन्होंने एक इंजेक्शन लगाया,कोई पट्टी तक नहीं लगाई और फिर जिला अस्पताल रेफर कर दिया. मैंने खुद से मां को एंबुलेशन में बिठाया. वहां पहुंचते ही बताया गया कि मेरी मां की मौत हो गई थी.
सोनू सिंह, वीडियो में दिख रहे शख्स

एक चीज पर और है, जो गौर करने लायक है. ऊपर जो लेटर आपने देखा वो 2 जुलाई को लिखी गई थी, जिसमें कहा गया था कि कोई लापरवाही नहीं हुई. लेकिन क्विंट के पास CMO का जिला सूचना अधिकारी को लिखा एक और लेटर है, जो चार जुलाई को लिखा गया. पहले उसे देखिए.

आरोप लग रहा है कि डाॅक्टरों की लापरवाही से एक महिला मरीज की मौत हो गई
सीएमओ एसके रावत की 4 जुलाई को लिखी चिट्ठी
(Photo: Quint Hindi)

अब जरा गौर कीजिए कि 4 जुलाई को लिखे इस लेटर में लिखा गया है कि जांच के लिए 3 जुलाई को दो डॉक्टरों की टीम बनाई गई है. जांच रिपोर्ट मिलने पर जो भी दोषी होगा, उसपर कार्रवाई की जाएगी. अब सवाल ये है कि जब जांच के लिए टीम 3 जुलाई को बनाई गई तो CMO साहब ने 2 जुलाई के लेटर में कैसे दावा किया कि कोई लापरवाही नहीं हुई और खबर गलत चलाई जा रही है, उसका खंडन छपवाया जाए?

जिनकी मां की मौत हुई है, वो सोनू सिंह भी एक सवाल पूछते हैं-

मैं योगी जी से यही पूछना चाहता हूं कि क्यों ऐसे अस्पताल बनाते हैं जिनमें आप सुविधा नहीं दे सकते हैं, क्यों बनाते हैं ऐसी इमारत जहां सुविधा नहीं होती है?
सोनू सिंह, वीडियो में दिख रहे शख्स

एक सवाल ये भी है कि जब एक शख्स (जिसकी मां की मौत हो गई है) कह रहा है कि उसे एंबुलेंस नहीं मिली, फिर किसी तरह वो स्वास्थ्य केंद्र पहुंचा तो हेड इंजुरी के बावजूद उसकी मां को सवा घंटे तक इलाज नहीं मिला तो फिर महकमे को खंडन छपवाकर अपनी छवि ठीक करने पर जोर देना चाहिए या फिर जो गलत है उसे सही करने पर ध्यान लगाना चाहिए?

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