उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की मथुरा वृंदावन रेलवे लाइन को मीटर से ब्रॉड गेज में बदला जा रहा है, जहां श्री कृष्ण जन्मस्थान के पास बनी नई बस्ती बाधक बन रही थी. रेलवे प्रशासन के मुताबिक बस्ती के लोगों को कई बार नोटिस दिया गया लेकिन बस्ती के लोग टस से मस नहीं हुए, जिसके बाद रेलवे प्रशासन ने जिला प्रशासन की मदद से वहां बुलडोजर की कार्यवाही शुरू कर दी.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी है. 16 अगस्त को कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और रेलवे को नोटिस भी जारी किया है. कोर्ट ने 10 दिन तक स्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है.
बुलडोजर की कार्यवाही में अब तक नई बस्ती के करीब 135 मकानों को जमींदोज कर दिया गया है. इसके बाद वहां रहने वाले लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
हजारों लोग बेघर, आसमान की छत ही सहारा
बुलडोजर की कार्यवाही के इलाके के हजारों लोग बेघर होने के बाद शासन प्रशासन से उम्मीद छोड़ चुके हैं कि उनका अब कोई यहां आकर साथ देगा. नई बस्ती में रहने वालों की माने तो बच्चों के लिए ना खाने-पीने की व्यवस्था है और ना ही बिजली और सोने की कोई जुगत. खुले आसमान की छत ही अब असहाय और लाचार लोगों का सहारा है. चिलचिलाती धूप हो या बारिश अब तिरपाल की झुग्गी ही इन लोगों के आशियाने बनी हैं. यहां ना तो किसी जनप्रतिनिधि ने आकर इनका हाल जाना है और ना ही कोई भी प्रशासन का अधिकारी उनकी समस्या को सुनाने आया है.
सुप्रीम कोर्ट ने भले ही 10 दिन का समय रेलवे प्रशासन को दिया हो लेकिन आने वाले वक्त में यह देखने वाली बात होगी कि क्या फिर से बुलडोजर चलेगा या फिर सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत मिल पाएगी.
बुलडोजर की कार्यवाही में अपना घर खो देने वाली बुजुर्ग महिला ने कहा,
सब मकान तोड़ दिए गए, छोटे-छोटे बच्चें हैं, आदमी बीमार है, ना पानी है, न कुछ है, कहां से क्या करें. हम बहुत परेशान हैं. मलबे में बहुत सामान दबा पड़ा है. हमको पता नहीं था कि अभी आ जाएंगे.
"आस-पास के लोग खाने-पीने की चीजें दे रहे"
एक दूसरी महिला ने कहा कि हमारे पास कुछ नहीं हैं. खाने, पीने और बिजली की समस्या है. हमें कोई भी मदद नहीं मिल रही है, सरकार हमें वीरान कर गई. हम सरकार से कहना चाहते हैं कि हमारी मदद करो. हमें आस-पास के लोग खाने-पीने की चीजें दे रहे हैं.
पीड़िता मोबीना ने कहा,
तिरपाल के एक कमरे में गुजारा कर रहे हैं. हमें कोई भी मदद नहीं मिली सरकार की तरफ से. हम सरकार से कहना चाहते हैं कि हमें मुआवजा या फिर कोई रहने की जगह मिल जाए तो अच्छा होगा. हम बहुत परेशान हैं.
पीड़ित नजरुद्दीन कहते हैं कि रेलवे ने हमारे मकानों को तोड़ दिया. हमें सब्र करना है, कोई दे जाता है, तो खा लेते हैं नहीं तो भूखे रहते हैं. हमें प्रशासन और सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली.
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