'इसको CBI पर भरोसा नहीं है, इसको SIT पर भरोसा नहीं है, कानून पर भरोसा नहीं है, एक बार मुलाकात कर हम तुझे भरोसा दिला देंगे, तुझे भरोसा दिला देगा धवरैय्या'- अतिउत्साह और गुस्से में बोले गए ये बोल हाथरस के पंकज धवरैय्या के हैं. हाथरस पीड़िता के परिवार ने जब सीबीआई जांच की जगह सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज से जांच की मांग की थी, तब पंकज धवरैय्या ने ये धमकी उस परिवार को दी थी. वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था.
अब खुद को सोशल एक्टिविस्ट और राष्ट्रीय सवर्ण परिषद के चीफ बताने वाले पंकज धवरैय्या की पत्नी यूपी पंचायत चुनाव में प्रत्याशी हैं. हाथरस वॉर्ड 14 से पंकज की पत्नी अंबिका पाठक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रही हैं.
क्विंट से बातचीत में पंकज धवरैय्या का कहना है कि ये 'लड़ाई' भ्रष्टाचार के खिलाफ है और कई जमे-जमाए नेताओं के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. लगे हाथ पंकज ये भी कहते हैं कि उन्हें दलितों से वोट की जरूरत नहीं है, सवर्ण समाज उनके साथ है.
‘मेरा सवर्ण समाज मेरे साथ है, दलितों से मैं वोट नहीं लेता हूं. मैंने एक भी एससी के घर जाकर वोट नहीं मांगता. जो मेरे समाज को बांटता है उसके घर मैं नहीं जाता हूं.’पंकज धवरैय्या
टिकट टू पॉलिटिक्स- भड़काऊ बयान, कट्टर नजरिया?
अब आपने ये जान लिया कि पंकज धवरैय्या दलित समुदाय के लोगों से वोट नहीं मांगते. ट्विटर पर अपने बायो में लिखते हैं कि - 'सनातन विरोधी दूरी बनाकर रखें'. इनके कैंपेन में कुछ जगह 'गरीबों का मसीहा' कहकर भी इन्हें संबोधित किया गया है. आरक्षण के विरोध में दिखने वाले पंकज धवरैय्या का हाथरस कांड के वक्त एक और वीडियो सुर्खियों में आया था. इस वीडियो में वो नेताओं को धमकी दे रहे थे कि केस पर 'राजनीति' न हो. पीटने, सिर फोड़ देने, गाड़ियों में तोड़फोड़ की धमकी पंकज ने नेताओं को दी थी.
हिंसा की धमकी, रेप पीड़िता के परिवार को चेतावनी और खास जाति पर टिप्पणी करने से परहेज नहीं करने वाले पंकज धवरैय्या एक न्यूज चैनल पर बतौर सामाजिक कार्यकर्ता भी बैठे हुए नजर आए थे.
पंकज के कैंपेन का एक वीडियो पैकेज सोशल मीडिया पर है, जिसमें हाथरस कांड के वक्त के फुटेज और फिल्मी वाइसओवर के साथ इन्हें पुलिस से 'लोहा लेते, आवाज उठाते' देखा जा सकता है. हालांकि, वो क्विंट से कहते हैं कि ये वीडियो उनके एक समर्थक ने डाला है.
जातिगत आरक्षण के खिलाफ दिखने वाले पंकज अपनी पत्नी के लिए प्रचार करते हुए ट्विटर पर लिखते हैं- 'अधर्म पर धर्म भारी, अब चलेगी आरी'. दरअसल, आरी अंबिका पाठक का चुनाव चिह्न है.
पंकज धवरैय्या चुनाव लड़ रहे हैं या उनकी पत्नी?
अब आप ये भी सोच रहे होंगे कि जब ऐसा था तो पंकज धवरैय्या ही चुनाव क्यों नहीं लड़ रहे हैं. मन तो पंकज का चुनाव लड़ने का था लेकिन सीट निकल गई महिला. ऐसे में अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में पंकज ने उतार दिया.
यूपी पंचायत चुनाव की बात करें तो सीटें भले ही महिला के लिए आरक्षित कर दी जाती हैं, महिलाएं इन सीटों पर जीतती भी हैं. लेकिन ज्यादातर जगहों पर इन महिलाओं के बेटे, पिता, भाई ही काम संभाल रहे होते हैं. महज एक प्रतीक की तरह महिला प्रधान, महिला जिला पंचायत सदस्य या महिला जिला पंचायत अध्यक्ष की तरह इनको बिठाकर सारा कामकाज ये पुरुष ही देख रहे होते हैं. चुनाव प्रचार भी इसी तर्ज पर होता है. यही स्थिति पंकज धवरैय्या वाले मामले में भी दिखती है.
ये सवाल पूछने पर पत्नी ही क्यों लड़ रही हैं चुनाव तो पंकज पहले कहते हैं कि मन की इच्छा थी. बाद में बता ही देते हैं कि सीट महिलाओं के लिए आरक्षित थी. इसी के साथ वो कहते हैं कि पिछले 8 साल से क्षेत्र की 'सेवा' कर रहे हैं आगे भी करेंगे.
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