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वीडियो | आलू किसानों के दर्द को कब तक अनदेखा करेगी योगी सरकार

आलू किसानों की बर्बादी की सुध कब लेगी योगी सरकार?

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आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है, वो आलू जो गरीब और अमीर दोनों की ही थाली में कभी फ्रेंच फ्राइज तो कभी चोखे और भर्ते के शक्ल में दिख जाता है. वही आलू आज उत्तर प्रदेश की सड़कों पर, नालों में, मैदानों में फेंका जा रहा है. क्यों किसानों को अपने खून पसीने से सींचे हुए आलू को इस तरह फेंकना पड़ रहा है? यही जानने के लिए क्विंट पहुंचा देश मे सबसे ज्यादा आलू पैदा करने वाली जगहों करने वाले जगहों में से एक-आगरा.

सड़क पर बिखरा सैकड़ों टन आलू

दिल्ली से आगरा जाने के रास्ते में कई जगहों पर बड़े-बड़े मैदानों में आलू बिखरा दिख जाएगा. पहली नजर में वो आलू नहीं कोई पत्थर या गेंद लगता है. लेकिन जब आप करीब जाएंगे तो आप चौंक जाएंगे कि गरीबी और महंगाई की मार के बीच इस तरह लाखों टन आलू सड़ रहा है.

जब हमने आलू के इस तरह बर्बाद होने का कारण आलू किसान लोकेंद्र सिंह से पूछा तो उन्होंने जो कहा उससे उनकी बेबसी का अंदाजा लगाया जा सकता है. लोकेंद्र बताते हैं, “मेरे पास सिर्फ 10 बीघा खेत है. इसी आलू का सहारा था, बेटी की शादी कर्ज लेकर की थी. सोचा था इस बार ज्यादा से ज्यादा आलू होगा तो पैसे भी ज्यादा मिलेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. आलू तो ज्यादा हुआ लेकिन बिका नहीं. सरकार ने आलू पर 487 रुपये प्रति क्विंटल का दाम लगाया था. जबकि हमारी तो लागत ही 600 से 700 रुपये आती है, फिर कोल्ड स्टोरेज में 210 रुपये क्विंटल का भारा. अब जब हमारा आलू 800 का है तो 487 में कैसे कोई किसान घाटा सह कर सरकार को आलू देता.”

आलू किसानों की बर्बादी की वजह बताते हुए शमशेर इसका ठीकरा, योगी सरकार की आलू खरीद नीति पर फोड़ते हैं:

2017 में सत्ता में आते ही योगी आदित्यनाथ की सरकार ने 487 रुपये प्रति क्विंटल पर किसानों से आलू खरीदने का ऐलान कर दिया था. लेकिन इसकी शर्तें इतनी कड़ी थीं कि किसानों का आलू इस पर खरा नहीं उतर सका. सरकार का यह कदम बिल्कुल बेमानी था. सरकार ने कहा कि वो सिर्फ एक लाख टन आलू खरीदेगी वह भी बढ़िया किस्म के.
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किर्री, गुल्ला और बड़े आलू का गणित

आलू की तीन ग्रेडिंग है. किर्री आलू जो 20 से 25 एमएम का होता है. दूसरा गुल्ला आलू जो 25 एमएम से 30 एमएम होता है और तीसरा बड़ा जो 35 से 50 एमएम का होता है. सरकारी एजेंसियों ने कहा कि वह सिर्फ बड़े आलू ही लेंगी और उसकी कीमत देगी 487 रुपये प्रति क्विंटल. इस चक्कर में ज्यादातर किसान आलू बेचने ही नहीं गए. एक लाख टन आलू खरीदने का लक्ष्य भी पूरा नहीं हो सका. सिर्फ 13,000 टन आलू की सरकारी खरीद हो सकी.

दक्षिण पश्चिम उत्तर प्रदेश को आलू बेल्ट कहा जाता है अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद, एटा, इटावा, मैनपुरी, कन्नौज और फर्रुखाबाद में देश भर में आलू की पैदावार का लगभग 20 फीसदी होता है. यहां के 80 फीसदी किसानों की मुख्य फसल आलू ही है. इसलिए उन पर और गहरी चोट पड़ी है.

किसानों से वादे का क्या हुआ?

2014 में अपने चुनावी भाषण में पीएम मोदी ने आगरा में ही किसानों के लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने के लिए वादा किया था.

आगरा आलू समिति सचिव आमिर कहते है, “सत्ता में आने से पहले पीएम मोदी ने कहा था कि वो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को लागू करेंगे. जिससे किसानों को उनकी मूल लागत का डेढ़ गुना दाम मिलेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उल्टा बीजेपी के योगी आदित्यनाथ की सरकार ने तो किसानों की मूल लागत का आधा दाम लगा दिया.

कोल्ड स्टोरेज मालिकों को भी हुआ नुकसान

कोल्ड स्टोरेज मालिक ढूंगर सिंह बताते हैं कि हमारे यहां किसानों ने अपना आलू रख तो दिया लेकिन उसमें से करीब 30 से 40% आलू वो लेने नहीं आये.

जिसके बाद हमें इसे फेंकना पड़ा क्योंकि फरवरी में नई फसल के लिए भी जगह बनानी थी.

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