4 फरवरी 2024, दिन - रविवार, जगह- लखनऊ, सुबह का वक्त था और झमाझम बारिश हो रही थी. लेकिन 28 साल के चंदन कुमार और कई अन्य प्रदर्शनकारियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, ये लोग उत्तर प्रदेश सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा (एटीआरई) में कथित आरक्षण घोटाले के पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करने के लिए शहर के इको पार्क में बैठे थे. ये परीक्षा 6 जनवरी 2019 को आयोजित की गई थी.
"बारिश के कारण आज भीड़ थोड़ी कम है. हमारे यहां आम तौर पर रोजाना 150-200 लोग आते हैं. क्या आप ये बात सोच सकते हैं कि हम लोग 600 दिनों से अधिक समय से विरोध प्रदर्शन पर हैं. 600 दिन!" ये कहना है रायबरेली के रहने वाले कुमार का जो न्याय की तलाश में विरोध शुरू होने पर लखनऊ चले आए थे, सिर्फ इस उम्मीद के साथ कि जल्द ही घर लौटना होगा.
नौकरी की उम्मीद लगाए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समाज से आने वाले कुमार ने कहा, "मैं एक किसान परिवार से आता हूं. मेरे परिवार में किसी के पास नौकरी नहीं है, सरकारी नौकरी तो दूर की बात है. शुरू में, मैंने सोचा था कि धरना कुछ हफ्तों तक चलेगा. अगर अगड़ी जाति का मामला होता तो अब तक इसका समाधान हो चुका होता. लेकिन गरीब और पिछड़े लोग सिर्फ वोट बैंक होते हैं. हमारे मुद्दों से किसी को फर्क नहीं पड़ता है.
उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूल में एक सहायक शिक्षक की औसत मासिक वेतन 50,000 रुपये है.
कुमार सहित कई उम्मीदवारों के लिए यह नौकरी सामाजिक और वित्तीय सुरक्षा के लिए उनकी एकमात्र उम्मीद थी. और यही वजह है जो 600 दिनों के विरोध और राज्य की निष्क्रियता के बावजूद ये लोग इको पार्क में जमे हैं.
मुख्यमंत्री से लेकर विपक्ष और यहां तक कि इलाहाबाद हाई कोर्ट तक सभी ने स्वीकार किया है कि परीक्षा आयोजित करने के तरीके में विसंगतियां थीं. फिर भी, लगभग पांच साल बीत गए हैं, और हम अभी भी न्याय की मांग के लिए हर दिन धरने पर बैठने के लिए मजबूर हैंचंदन कुमार
UP का 'व्यापम घोटाला'
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले, 1 दिसंबर 2018 को राज्य सरकार ने सहायक शिक्षक की नौकरी के लिए 69,000 शिक्षकों की भर्ती की घोषणा की. जिसके लिए परीक्षा 6 जनवरी 2019 को आयोजित की गई थी.
हालांकि, मई 2019 में, जब परिणाम घोषित किए गए, तो उम्मीदवारों ने पाया कि आरक्षण मानदंडों में कई विसंगतियां हैं. उम्मीदवारों ने दावा किया कि 18,500 सीटों के मुकाबले जो अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और ओबीसी श्रेणियों के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होनी थीं, आरक्षित श्रेणी में केवल 2,637 सीटें आवंटित की गईं.
कुमार ने आरोप लगाते हुए कहा, "मूल रूप से आरक्षित श्रेणियों की 15,863 सीटें सामान्य जाति वर्ग के उम्मीदवारों को आवंटित की गईं."
इसी तरह के आरोप अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीटों के संबंध में भी लगाए गए थे. प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया, "अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को अनिवार्य 22.5 प्रतिशत के बजाय केवल 16 प्रतिशत आरक्षण दिया गया."
जुलाई 2020 में, मामला राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पास ले जाया गया, जिसने जांच के बाद परीक्षा के लिए अपनाए गए आरक्षण मानदंडों में विसंगतियां पाईं. आयोग की रिपोर्ट के बाद, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अप्रैल 2021 में मामले का संज्ञान लिया और शिकायतों के निवारण का आदेश दिया.
इससे पहले कांग्रेस की प्रियंका गांधी सहित विपक्षी नेता ने इस घोटाले की तुलना 2013 में मध्य प्रदेश में सामने आए कुख्यात 'व्यापमं' घोटाले से की थी.
हालांकि, तब तक एक और राज्य विधानसभा चुनाव (2022) का समय हो गया था और आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) लागू हो गई, जिससे भर्ती प्रक्रिया में रोक लग गई. इसके बाद मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में ले जाया गया, जिसने मार्च 2023 में पाया कि परीक्षा में आरक्षण प्रक्रिया में कई विसंगतियां थीं और राज्य को प्रारंभिक सूची को रद्द करने और तीन महीने के अंदर सफल उम्मीदवारों की एक नई सूची जारी करने का निर्देश दिया.
कुमार ने कहा, "यह फरवरी 2024 है, और हम अभी भी यहां हैं. वे नियुक्ति पत्र आज तक हम तक नहीं पहुंचे हैं."
'यह नौकरी हमारी ऑक्सीजन है'
35 साल के रामा यादव विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए लखनऊ से 130 किलोमीटर दूर - अमेठी से आई हैं. 2019 में परीक्षा देने वाली रमा ने कहा, "मैं अपनी पांच साल की बेटी के साथ यहां हूं. जब भी मैं विरोध प्रदर्शन में आती हूं, तो मुझे उसे साथ लाना पड़ता है. घर पर उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है."
अक्टूबर 2020 की अपनी रिपोर्ट में, राष्ट्रीय पिछड़ी जाति आयोग ने पाया कि भारत में आरक्षण को नियंत्रित करने वाले नियमों के अनुसार, अगर एससी, एसटी या ओबीसी कैटेगरी के उम्मीदवार को जनरल कैटेगरी के उम्मीदवारों के साथ योग्यता के आधार पर चुना जाता है तो इस चयन को आरक्षित श्रेणी में नहीं गिना जाएगा.
रिपोर्ट में कहा गया है, "परीक्षा में 34,589 अनारक्षित सीटें थीं. वास्तविक आंकड़ों के अनुसार, 18,851 ओबीसी उम्मीदवार योग्यता के आधार पर कट ऑफ के लिए योग्य थे. हालांकि, शिक्षा विभाग द्वारा तैयार की गई पहली लिस्ट में सिर्फ 13,007 ओबीसी उम्मीदवार अनरिजर्व कैटेगरी में थे. बाकी 5,844 ओबीसी छात्रों को अनरिजर्व कैटेगरी की सीटों पर क्वालिफाई करने के बावजूद आरक्षित श्रेणी में रखा गया था. रिपोर्ट की कॉपी क्विंट हिंदी ने देखी है.
जून 2020 तक, यूपी पुलिस ने कथित घोटाले के सिलसिले में 10 लोगों को गिरफ्तार किया था.
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने उस वक्त आरोपियों के पास से 22 लाख रुपये और दो लग्जरी कारें जब्त की थीं. मुख्य आरोपी की पहचान पूर्व जिला पंचायत सदस्य केएल पटेल के रूप में की गई थी.
रामा ने पूछा, "हर कोई इस बात से सहमत है कि घोटाला हुआ है. एनसीबीसी, राज्य सरकार, पुलिस... और फिर भी हमें अदालतों में लड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है. हमसे वकीलों को भुगतान करने की उम्मीद कैसे की जा रही है?"
यह नौकरी हमारे जीवन की ऑक्सीजन मानी जाती थी. कल्पना कीजिए कि बिना ऑक्सीजन के पांच साल बिताने होंगे. अभी हमारी जिंदगी ऐसी ही है.रामा यादव
मार्च 2023 में, हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी सरकार को उनकी नियुक्ति के लिए कोटा तय करने में की गई अनियमितताओं को सुधारने के बाद परीक्षा के माध्यम से चयनित 69,000 सहायक शिक्षकों की संशोधित चयन सूची तैयार करने का निर्देश दिया था.
ऐसा तब हुआ जब इस मामले में अदालत में 117 रिट याचिकाएं दायर की गईं.
अदालत ने सरकार को उन 6,800 उम्मीदवारों की लिस्ट रद्द करने का भी निर्देश दिया है जिनकी पहचान इस प्रोसेस में गलतियां करने वालों के रूप में की गई थी. इन उम्मीदवारों को 69,000 अन्य के अलावा नियुक्त किया गया होगा.
कोर्ट ने कहा था, "कोई भी आरक्षित श्रेणी का उम्मीदवार, जिसने 65 प्रतिशत या उससे अधिक अंक प्राप्त किए हैं, उसे मेधावी आरक्षित श्रेणी का उम्मीदवार माना जा सकता है और इस हिसाब से सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार के साथ कंपीट करने और ओपन कैटेगरी में जाने की इजाजत दी जा सकती है, जबकि एक आरक्षित श्रेणी का उम्मीदवार, जिसने एटीआरई-2019 में 65 प्रतिशत से कम और 60 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त किया है, उनकों संबंधित श्रेणी में माना जाएगा और सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के साथ में आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी.''
न्याय के लिए लंबा इंतजार
इको पार्क में काफी लंबे समय तक रहने के बाद, 33 वर्षीय राज बहादुर यादव 3 फरवरी को अपने घर इलाहाबाद लौट आए. उन्होंने कहा, "जो मेरा है उसके लिए मैं आखिरी सांस तक लड़ूंगा, लेकिन धरने पर बैठने की बड़ी कीमत मानसिक और आर्थिक चुकानी पड़ती है."
अपने वयस्क जीवन के अधिकांश समय मैं सरकारी नौकरी पाने के लिए अलग-अलग परीक्षाओं की तैयारी के लिए इलाहाबाद में रहा. मैं आजमगढ़ के एक गरीब परिवार से आता हूं. कई असफल प्रयासों के बाद मैं उन लोगों में से एक था जिनका नाम 6,800 की सूची में आया था. जब मैंने देखा तो मेरा दिल बैठ गया. लखनऊ में बैठकर विरोध करना भी एक लग्जरी है जिसे केवल कुछ लोग ही वहन कर सकते हैं. ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए लोन लिया है. असल में इस मामले में अधिकारियों की उदासीनता के कारण हमारे साथ प्रदर्शन कर रहे कुछ अभ्यर्थियों की आत्महत्या से मौत हो गई.राज बहादुर यादव
राज बहादुर का कहना है कि वह अब अपने परिवार को सपोर्ट करने के लिए प्राइवेट नौकरियों की तलाश में आजमगढ़ वापस जाएंगे.
( क्विंट हिंदी ने जांच की स्थिति के बारे में यूपी सरकार के संबंधित अधिकारियों से संपर्क किया है. उनके जवाब मिलने पर यह स्टोरी अपडेट की जाएगी.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)