राष्ट्रीय उर्दू विकास परिषद हर साल देश में उर्दू भाषा को बढ़ावा देने के लिए कई उर्दू लेखकों की किताबों को भारी मात्रा में खरीदती है, ताकि लेखकों की आर्थिक मदद की जा सके.
लेकिन, Indian Express की खबर के मुताबिक, अब इस संस्था ने उर्दू लेखकों को किताबें खरीदे जाने से पहले अपनी देशभक्ति सिद्ध करने को कहा है. दरअसल, केंद्रीय मानव विकास संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाली इस संस्था ने लेखकों को एक फॉर्म उपलब्ध कराया है.
उर्दू भाषा में लिखे, इस फॉर्म, में लेखकों को घोषणा करने को कहा गया है कि किताब की सामग्री किसी भी प्रकार से सरकार या देश के विरोध में नहीं होनी चाहिए. लेखकों को फॉर्म पर दो गवाहों से साइन कराने के लिए भी कहा गया है.
“मैं (का पुत्र/पुत्री) इस बात की पुष्टि करता हूं कि मेरी किताब/पत्रिका, जोकि राष्ट्रीय उर्दू विकास परिषद की आर्थिक मदद स्कीम के तहत ली जा रही है, में सरकारी नीतियों और देशहित के खिलाफ कुछ भी नहीं है. ये किताब देश के विभिन्न वर्गों में किसी भी प्रकार की असामंजस्यता नहीं फैलाती है और किसी भी सरकारी या गैर-सरकारी संस्था द्वारा समर्थित नहीं है”इंडियन एक्सप्रेस को मिले पत्र के मुताबिक
फॉर्म के अनुसार, अगर लेखक की किताब में ऐसा कुछ पाया जाता है तो उसे दी गई आर्थिक मदद वापस ली जा सकती है.
क्या है संस्था का पक्ष
राष्ट्रीय उर्दू विकास परिषद के निदेशक इर्तजा करीम के मुताबिक अगर लेखक सरकार से मदद लेना चाहता है तो वह सरकार के विरोध में नहीं लिख सकता.
राष्ट्रीय उर्दू विकास परिषद एक सरकारी संस्था है. ऐसे में हम स्वाभाविक रूप से सरकार के हितों की रक्षा करेंगे. एक साल पहले परिषद के सदस्यों की बैठक में इस फॉर्म को लाने का निर्णय लिया गया. इस बैठक में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के सदस्य भी शामिल थे. गृह मंत्रालय को इस बारे में पूरी जानकारी है.इर्तजा करीम ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा -
वहीं, कलकत्ता यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और उर्दू लेखक शनाज नबी के मुताबिक ये विरोध का गला घोंटने की कोशिश है.
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