उरी हमला ऐसे कई बिंदुओं को सामने लाता है, जिन पर विचार करना जरूरी है. चलिए पहले इस पर नजर डालते हैं:
- यह जम्मू और कश्मीर में अपनी तरह का पहला हमला है, जिसमें आग लगाने वाले गोला-बारूद का इस्तेमाल किया गया है.
- यह इतना प्रभावशाली था कि 17 में से 13 से 14 जवान इसी के कारण शहीद हो गए.
- यह सेना इकाई के खराब स्थिति को रेखांकित करता है, क्योंकि इसके सीधे ऊपर पाकिस्तान की हाजी पीर यूनिट है और यह सेना के लिए खतरनाक हो सकता है.
सुरक्षा में चूक
आर्मी का पहला काम यह देखना है कि कैंप में क्या हुआ है: क्या उनकी चूक थी, अगर थी, तो किस तरह की? क्या गार्ड ठीक से सचेत नहीं थे या उनका निरीक्षण अपर्याप्त था?
आमतौर पर जब किसी कैंप पर हमला होता है, तो प्रत्येक अधिकारी और व्यक्ति को कैंप में कहीं न कहीं जगह लेनी होती है (यह गड्ढा या बंकर हो सकती है). इसकी वजह यह होती है कि उस ढकी हुई जगह से वह आतंकवादी पर जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं. इस मामले में, आग लगाने वाले हथियारों और उनसे लगी आग के कारण जवान अपने लोगों को बचाने चले गए. इसके कारण भगदड़ मच गई और आतंकवादियों पर काबू पाने में देरी हो गई.
सेना को इससे जरूर सबक लेना चाहिए. उसे कैंप के चारों ओर पहाड़ी के आगे गार्ड रखने पड़ सकते हैं.
UNGA सत्र से पहले पूरी तैयारी के साथ हमला
अब विस्तृत तस्वीर देखते हैं. उरी में हुआ हमला टारगेट बनाकर किए गए दो हमलों में से एक था. पहला 12 सितंबर को पुंछ में हुआ, जहां एक आर्मी ब्रिगेड का मुख्यालय स्थित है. इसे सेना ने नाकाम कर दिया और चार आतंकवादियों को मार गिराया.
वरिष्ठ भारतीय राजनयिक और सेना के अधिकारियों का कहना है कि पुंछ हमले की तारीख बेहद दिलचस्प थी, क्योंकि अगले ही दिन संयुक्त राष्ट्र आम सभा (यूएनजीए) सत्र शुरू हुआ. गौरतलब है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ बुधवार यानी 20 सितंबर को यूएनजीए में कश्मीर पर संबोधित करने वाले हैं.
कश्मीर में तैनात रहे सेना के रिटायर्ड कमांडरों का कहना है कि पुंछ और उरी के पाकिस्तान की किसी बड़ी योजना का हिस्सा हो सकता हैं. उनके विचार में ऐसे हमले कश्मीर पर फिर से ध्यान खींचने में मदद करते हैं.
भारत के सामने विकल्प
तो अब भारत क्या करेगा? राजनेता उम्मीद के मुताबिक अपना कमेंट देंगे. जिसकी कोई जवाबदेही नहीं है, वह और ज्यादा बोलेगा. लेकिन आप प्रधानमंत्री के ट्वीट से राहत महसूस कर सकते हैं. उन्होंने ट्वीट किया था, ‘मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि इस घिनौने कृत्य के पीछे मौजूद लोगों को सजा जरूर मिलेगी.’
भारत के पास क्या विकल्प हैं? यूएनजीए में एक राजनयिक आक्रमण शुरू करना चाहिए और यह भारत के मुख्य साझेदारों के साथ द्विपक्षीय होना चाहिए. इसका उद्देश्य न केवल दक्षिण एशिया (भारत, बांग्लादेश और अफगानिस्तान) में आतंकवाद को प्रायोजित करने में, बल्कि विश्व के दूसरे हिस्सों में जिहादी समूहों को प्रोत्साहित करने में पाकिस्तान की भूमिका को रेखांकित करना होना चाहिए.
चीन को भरोसे में लें
भारत को इस मसले पर चीन तक पहुंच बनानी चाहिए. उसे ध्यान दिलाना चाहिए कि चीन की पाकिस्तान नीति खरगोश के साथ भागने और शिकारियों के साथ शिकार करने की है, जो अनिश्चितकाल तक काम नहीं करेगी. बीजिंग के अपनी जगह से हिलने की कम संभावना है. लेकिन वहां की हालिया मीडिया रिपोर्ट में चीन को एक अस्थायी, संघर्ष पर उतारू पाकिस्तान में ‘बेल्ट एंड बोल्ट’ प्रोजेक्ट बढ़ाने में 40 खरब डॉलर निवेश करने के फैसले पर पुन: विचार का सुझाव दिया गया है.
उनकी सलाह है कि चीन को यह पैसा ज्यादा शांत क्षेत्रों, जैसे वियतनाम में निवेश करना चाहिए. इस अर्थ में, पिछले हफ्ते वियतनाम के प्रधानमंत्री का चीन दौरा कुछ नई दिलचस्प संभावनाएं लेकर आ सकता था.
भारतीय सेना को कैसी प्रतिक्रिया करनी चाहिए
सेना अधिकारियों का कहना है कि भारत को पाकिस्तान के खिलाफ कोई भी सैन्य कार्रवाई 26 सितंबर को यूएनजीए की बैठक खत्म होने के बाद करनी चाहिए.
यहां कई ऐसे विकल्प हैं, जिनका सेना इस्तेमाल कर सकती है. एक रिटायर्ड अधिकारी का कहना है कि भारत आतंकवादी भेजने के लिए इस्तेमाल हो रही नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी सेना पर गोला-बारूद बरसाए.
यह पाकिस्तान के सैनिक को और उसके परिवार को नुकसान पहुंचाएगा. पाकिस्तानी सेना में उच्च स्तर पर लोगों को आतंकवादी के मरने से कोई मतलब नहीं है, लेकिन एक सैनिक के परिवार के दुख की उपेक्षा नहीं की जा सकती.
सीधा कहें तो, पाकिस्तानी सेना को न सिर्फ नियंत्रण रेखा पर, बल्कि कहीं और, जैसे बलूचिस्तान में कीमत चुकानी पड़े.
अंत में, भारत को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. इसे पाकिस्तान के आतंकवादी नेताओं, जैसे लश्कर-ए-तैयबा के हाफिज सईद या जैश-ए-मोहम्मद के मसूद अजहर पर हमले की योजना पर विचार करना चाहिए. उन्हें बाहर निकालना मुश्किल नहीं होना चाहिए. ये पाकिस्तान में जन नेता हैं, ये आजादी से घूमते हैं और बड़े-बड़े सम्मेलन करते हैं.
यह बहुत अधिक इस पर निर्भर करता है कि भारत राजनयिक स्तर पर कैसे इस मामले को उठाता है और कैसे अपने पत्ते खोलता है.
(लेखक CNN-IBN और NDTV में अंतरराष्ट्रीय मामलों के संपादक रह चुके हैं. उन्हें ट्विटर पर @suryagang पर फॉलो किया जा सकता है.)
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