“कई दिन मैं सुबह जल्दी उठ गई कि मुझे सुलेमान को दूध उबाल कर देना है, क्योंकि सबके उठने से पहले वो पढ़ता रहता था. जैसे ही मैं बेड से बाहर आने लगती, मुझे याद आता कि वो अब नहीं रहा...”
सुलेमान की 55 साल की मां, अकबरी खातून के चेहरे पर क्विंट से बात करते-करते उदासी छा जाती है, जब वो दिसंबर 2019 में पुलिस फायरिंग में अपने बेटे की मौत के बाद गुजरे साल के बारे में बताती हैं.
यूपीएससी की तैयारी कर रहे, नोट्स बनाने में माहिर, सुलेमान की मौत के बाद ही उत्तर प्रदेश पुलिस ने पहली बार माना था कि दिसंबर 2019 में हुई हिंसा में बीजेपी शासित राज्य में किसी प्रदर्शनकारी की पुलिस फायरिंग में मौत हुई है. जब सुलेमान की मौत हुई थी तब बिजनौर के एसपी संजीव त्यागी ने मीडिया से बात करते हुए दावा किया था कि एक कॉन्स्टेबल मोहित कुमार ने “आत्मरक्षा में उसपर गोली चलाई थी.” हालांकि बिजनौर की स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (SIT) ने, छह महीने बाद ही उन छह पुलिसवालों को क्लीन चिट दे दी थी जिनका नाम सुलेमान के परिवार वालों ने अपनी शिकायत में लिया था.
“हमने पाया कि सुलेमान प्रदर्शन में शामिल था और एक आरोपी था. चूंकि उसकी मौत हो चुकी है, इसलिए उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकती.” बिजनौर के एडिशनल एसपी लक्ष्मी निवास मिश्रा, जो एसआईटी के प्रमुख हैं, ने द इंडियन एक्सप्रेस को तब ये बात कही थी और क्लीन चिट के बारे में अखबार को ज्यादा जानकारी नहीं दी थी.
परिवार इस एसआईटी रिपोर्ट की सच्चाई पर भरोसा नहीं करता जिसमें सुलेमान को दंगों में शामिल बताया गया है. सुलेमान के बड़े भाई, 29 साल के शोएब मलिक ने सवाल किया, “उन्होंने हमें इस एसआईटी रिपोर्ट की एक कॉपी भी नहीं दी है. ये फैसला करने वाले वो कौन होते हैं कि मेरे भाई की मौत आत्मरक्षा में चलाई गोली से हुई है, जब उन्होंने ही उसे गोली मारी है. कोर्ट ये फैसला करेगा कि वो आरोपी हैं या नहीं या वो खुद ही फैसला कर लेंगे. उन्होंने खुद को ही क्लीन चिट दे दी है. क्या इस तरह न्यायिक व्यवस्था काम करती है?”
परिवार की ओर से वकील बिजनौर के रहने वाले जकावत अली और अफजल उस्मानी, जो सुलेमान के चाचा होने के साथ वकील भी हैं, ने इस बात की पुष्टि की कि उन्होंने ये एसआईटी रिपोर्ट कभी नहीं देखी है. वो कहते हैं,
“आत्मरक्षा में गोली चलाने का एसपी का उस समय दिया गया बयान सिर्फ लोगों को शांत करने और स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए था. ये साफ नहीं कि किस आधार पर उन्होंने अपने पुलिसवालों को क्लीन चिट दी. हमें अंधेरे में रखा जा रहा है.”
पिछले साल दिसंबर के तीसरे हफ्ते में कानपुर, फिरोजाबाद, संभल, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मेरठ सहित कई शहरों में सीएए विरोधियों और पुलिस के बीच हुई हिंसा में पूरे उत्तर प्रदेश में कुल 23 लोगों की मौत हुई थी. सुलेमान के परिवार ने उसी दिन से पुलिस अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की. सुलेमान के बड़े भाई शोएब मलिक ने कहा “हमने एसपी, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक को चिट्ठी लिखी. अंत में 28 दिसंबर को उनकी शिकायत स्वीकार की गई.” उसने छह पुलिसवालों के खिलाफ नामजद लिखित शिकायत दर्ज कराई, जो उनके मुताबिक सुलेमान की मौत के लिए जिम्मेदार थे.
शोएब आगे कहते हैं, “पुलिस ने न सिर्फ खुद को क्लीन चिट दी बल्कि हमारी शिकायत को भी इलाके में दंगे के एक मामले के साथ मिलाकर दबाने की कोशिश की.” शोएब, जकावत और उस्मानी किसी को इस बात की जानकारी नहीं है कि इस मामले की एफआईआर में चार्जशीट दाखिल की गई है या नहीं, लेकिन उनका कहना है कि कोर्ट ने अभी तक उन्हें इसकी कॉपी देने के लिए नहीं बुलाया है. इस बीच, शोएब पिछले एक साल में अपने परिवार को सबसे अच्छी कानूनी सहायता मुहैया कराने के लिए कई जगहों पर गए.
एफआईआर दर्ज होने की कोई उम्मीद नहीं होने पर परिवार की उम्मीदें लॉकडाउन के पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल एक याचिका पर टिकी हैं. इस याचिका में, जो क्विंट के भी पास है, तीसरे याचिकाकर्ता सुलेमान के चाचा अनवर लाल उस्मानी हैं. दिल्ली के वकील महमूद प्राचा की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है, “ तीसरे नंबर के याचिकाकर्ता 21 साल एक युवा लड़के सुलेमान के चाचा हैं, जिसकी बिजनौर में पुलिसवालों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी. सुलेमान की मौत के बाद से ही उसके परिवार को परेशान किया जा रहा है और बार-बार धमकी दी जा रही है, जिससे उन्हें कोई आधिकारिक शिकायत दर्ज करने से रोका जा सके या दोषी पुलिसवालों के खिलाफ कोई कार्रवाई शुरू की जा सके.”
याचिका के बारे में शोएब ने बताया कि वो हाईकोर्ट के निर्देशों का इंतजार करेंगे और अगर कुछ नहीं हुआ, तो भी वो सीआरपीसी की धारा 156/3 के तहत इस उम्मीद में सेशंस कोर्ट में अर्जी दाखिल करेंगे कि कोर्ट पुलिस को शिकायत दर्ज करने का आदेश जारी करेगी. एक तरफ जब वो धैर्यपूर्वक, उम्मीद के साथ कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रहे हैं, घर के खालीपन ने सभी पर गहरा असर डाला है. उसकी मां ने कहा, “इस साल जनवरी और फरवरी में लोग हमसे मिलने आए लेकिन लॉकडाउन के बाद ऐसा लगता है कि लोग हमारे बेटे को भूल गए.” जब उनसे उस दौरान मीडिया के परेशान करने के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था, “नहीं, हम बात करना चाहते थे. ये बहुत बड़ा सदमा था, इसलिए हम किसी ऐसे व्यक्ति से बात करना चाहते थे जो ये लिख सके कि हमारे साथ क्या हो रहा था.”
सुलेमान की मौत से पहले घर में दो लोगों की शादी होने वाली थी. उसकी मौत के बाद परिवार दोनों शादियों को टालना चाहता था. उनका कहना था, “सलमान के मामले में लड़की के घर वालों ने शादी तोड़ दी. हमने उनसे अनुरोध किया भी किया लेकिन वो और इंतजार नहीं करना चाहते थे.” सलमान की शादी अब तक नहीं हो सकी है. लड़की के घरवालों की सहमति के बाद सोनू की शादी कुछ दिनों के लिए टाल दी गई. सुलेमान की बहनों ने हमें बताया कि क्यों वो इस शादी को लेकर खासतौर पर उत्साहित था. 24 साल की गौहर और 26 साल की शीबा ने कहा, “भैया चाचा के साथ उनकी होने वाली पत्नी को देखने गया था. चूंकि वो इसमें शामिल था, इसलिए वो शादी को लेकर काफी उत्साहित था.”
एक भरे हुए टिन के सूटकेस को देखते हुए, खातून हमें बताती हैं कि कैसे वो नोएडा में अपने चाचा के घर से सोनू की शादी के लिए नए कपड़े लेकर लौटा था. रोते हुए खातून ने कहा, “वो करीने से रखे गए कपड़े लेकर आया था और मुझे मेरे सूटकेस में ठीक से रखने को कहा, वो इसे शादी में पहनने वाला था. जब कुछ हफ्तों पहले आखिरकार सोनू की शादी हुई, मैंने सुलेमान के अच्छी तरह से रखे कपड़ों को देखा और सोचा कि वो इन कपड़ों में कितना सुंदर लगता.” उसके 46 के पिता अपनी पत्नी को दिलासा देते हैं और कहते हैं कि सुलेमान की मौत के बाद से ही वो अपनी बेटी सना की शादी के लिए एक लड़का नहीं खोज पा रहे हैं. चेहरे पर चिंता का भाव लिए जाहिद ने कहा, “एक परिवार के साथ शादी की बात चल रही थी लेकिन वो टूट गई. उन्होंने जवाब देना बंद कर दिया.”
उसकी बहनों ने रिपोर्टर को बताया कि वो हमेशा चुटकुले सुनाता और उन्हें चिढ़ाता रहता था. उनके माता-पिता का कहना है कि उन्हें सुलेमान से बहुत उम्मीदें थीं.
“उसे देख कर हमें गर्व महसूस होता था, वो एक अच्छा बच्चा था, दूसरों की इज्जत करने वाला और मन लगाकर पढ़ाई करता था. आजकल बड़े हो रहे बच्चों के बारे में आप इससे ज्यादा नहीं कह सकते. उसके पास असाधारण परिपक्वता थी.”
परिवार का कहना है कि इसके बाद से उन्होंने ईद या दूसरे त्योहार नहीं मनाए. उसके पिता ने रिपोर्टर से कहा, “ये आसान नहीं है. जिस तरह से हमने उसे खोया है, ये सब अब तक मायने नहीं रखता.” उन्होंने ये भी जोड़ा कि उनके बेटे को उनकी ही तरह निहारी और बिरयानी बहुत पसंद थी और बर्फी और रसगुल्ला देख कर वो खुद को रोक नहीं पाता था.
परिवार अब ताकत के लिए अपने शुभचिंतकों और एक-दूसरे पर निर्भर हैं, लेकिन जब उनका पुलिसवालों से सामना होता है तो पुराने घाव फिर हरे हो जाते हैं.
खातून कहती हैं, “मैं किसी से डरती नहीं हूं. जब मैं उन्हें देखती हूं मन करता है कि एक डंडा उठाकर जोर से उनकी पिटाई कर दूं. मैं कुछ करना चाहती हूं, लेकिन मैं खुद को याद दिलाती हूं कि अल्लाह मेरे लिए न्याय सुनिश्चित करेगा. मेरे धैर्य का इनाम जरूर मिलेगा.” सुलेमान के पिता कहते हैं, “जब हम पुलिसवालों को देखते हैं, हमें महसूस होता है कि हमारा दुश्मन हमारी ओर बढ़ रहा है. वो मेरे बेटे की जान कैसे ले सकते हैं? वो उसे गोली कैसे मार सकते हैं.”
आखिरकार लॉकडाउन में सुलेमान का सामान उसके कमरे से हटा दिया गया और उसे गेस्ट रूम में बदल दिया गया.
“लॉकडाउन के बाद जितना समय हम घर में बिता रहे थे उसे ध्यान में रखते हुए, उसके सामान को इसी तरह पड़े, बिना इस्तेमाल हुए और धूल खाते देखना घुटन भरा हो रहा था.”
उसका सामान भले ही कहीं और रख दिया गया हो, लेकिन बहुत ही सुरक्षित रखा गया है. उसकी बहनें हमारे लिए उसका टाइम टेबल, फाइलें और डिक्शनरी लेकर आती हैं जैसा कि उन्होंने पिछली बार किया था जब हम मिले थे.
सोनू की दुल्हन अपने नए घर में व्यवस्थित हो रही हैं, लेकिन उन्हें पता है कि उनका स्वागत उस तरह से नहीं हुआ जैसा सुलेमान के जिंदा रहने पर होता. जब रिपोर्टर कुछ समय के लिए उनसे मिली तो उन्होंने कहा, “ मुझे याद है जब वो उन्हें कई महीनों पहले देखने आया था. मैं उस वक्त उससे बात नहीं कर सकी थी. मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि इस घर की उदासी के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ केस दर्ज हो जाए.”
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