उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में सीएए प्रदर्शन के दौरान कथित उपद्रव करने के आरोपी लोगों की सार्वजनिक फोटो लगाई गई थीं. ये होर्डिंग्स सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए जिला प्रशासन की तरफ से लगाए गए थे. इस मामले पर इलाहबाद हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए 8 मार्च को सुनवाई की और अब फैसला 9 मार्च को दोपहर दो बजे सुनाया जाएगा.
एडवोकेट जनरल ने इलाहबाद हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया और कहा कि होर्डिंग लखनऊ में लगाए गए हैं और वो हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता.
बेंच ने एडवोकेट जनरल से कहा कि एक उचित कार्रवाई होनी चाहिए थी और इस तरह लोगों के नाम पर बैनर लगा देना स्वीकार्य नहीं है.
ये सुनवाई छुट्टी वाले दिन हुई. कोर्ट ने इस मामले में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट और डिविजनल पुलिस कमिश्नर को भी समन किया था. कोर्ट ने दोनों अधिकारियों से पूछा कि किस कानून के तहत होर्डिंग लगाए गए थे.
होर्डिंग में पूर्व आईपीएस की भी तस्वीर
प्रशासन की तरफ से लगाए गए पोस्टरों में रिटायर आईपीएस अफसर एसआर दारापुरी की भी तस्वीर है. दारापुरी ने राज्य सरकार के इस कदम को अवैध बताया है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने ऐसे पोस्टर लगवाकर हमारी इज्जत को मिट्टी में मिला दिया है.
इनन होर्डिंग में सामाजिक कार्यकर्ता सदर जाफर की तस्वीर भी है. उन्होंने न्यूज एजेंसी ‘भाषा’ से बातचीत में कहा कि किसी को उस इल्जाम के लिए इस तरह कैसे जलील किया जा सकता है जो अभी अदालत में साबित नहीं हुआ है, यह हिंदुस्तान है, अफगानिस्तान नहीं.
मामला क्या है?
19 दिसंबर, 2019 को लखनऊ में सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी थी. इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुए संघर्ष में तोड़फोड़ और आगजनी हुई थी. इस वारदात में एक व्यक्ति की मौत भी हो गई थी और बड़ी संख्या में लोग जख्मी हुए थे. इस हिंसा के दौरान सार्वजानिक संपत्ति को हुए नुकसान को लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार ने कहा था कि इसकी भरपाई हिंसा आरोपी ही करेंगे. इसी के चलते लखनऊ में आरोपियों की तस्वीर के साथ होर्डिंग लगाए गए थे.
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