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CAA प्रदर्शन में मारे गए 3 लोगों के परिवारों को आजतक FIR का इंतजार

यूपी में CAA प्रदर्शन के दौरान हिंसा के एक साल बाद क्विंट की ग्राउंड रिपोर्ट

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

“ पुलिस ये नहीं कह सकती कि उन्होंने मेरे बेटे की हत्या नहीं की है. मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं कि पुलिस ने मेरे बेटे की जान ली है. मरने के पहले मेरे बेटे ने मुझे बताया कि पुलिस ने उस पर गोली चलाई.” ये कहना है आफताब आलम की 55 साल की मां नजमा बानो का. क्विंट ने उनसे उत्तर प्रदेश के कानपुर के मुस्लिम बहुल मुंशी पुरवा मुहल्ले के घर (जिसकी दीवार की ईंटे नजर आ रही थीं) में जाकर मुलाकात की.

उम्र के साथ बदली चाल में सावधानी बरतते हुए नजमा ने पिछले एक साल में अपने बेटे की मौत के मामले में एफआईआर दर्ज कराने के लिए पहले पुलिस स्टेशन और अब अदालत के चक्कर काटने में कई घंटे बिता दिए हैं.

जब बार-बार पुलिस स्टेशन के चक्कर काटने का भी कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि पुलिसवालों ने उनका दावा खारिज कर दिया और यही कहा कि उनके बेटे की मौत सीएए विरोधियों के बीच हुई क्रॉस फायरिंग में हुई, तो आखिर में वो अब कोर्ट का दरवाजा खटखटा रही हैं. उनके वकील ने सीआरपीसी की धारा 156/3 के तहत कोर्ट में अर्जी दी है ये सुनिश्चित करने के लिए कि कोर्ट पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दे.

ये सिर्फ नजमा और उनके 23 साल के बेटे आफताब की कहानी नहीं है, बल्कि दो और लोगों रईस खान और मोहम्मद सैफ की भी कहानी है, जिनकी कानपुर में गोली लगने से मौत हुई थी. इन दोनों ने भी अपने परिवारों और दोस्तों से कहा था कि पुलिस ने ही उन्हें गोली मारी है, और नजमा की तरह उनके परिवारों ने भी पुलिस के एफआईआर दर्ज नहीं किए जाने के बाद कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

क्विंट ने तीनों मृतकों के परिवारवालों, उनके वकील नासिर खान और यूपी पुलिस से बात की और पाया कि न्याय की इन परिवारों की निरंतर कोशिश का मुकाबला उनके दावों पर सरकार की चुप्पी से है. जहां परिवार ये दावा कर रहे हैं कि पुलिसवाले उनके वकील के जरिए पैसों का इस्तेमाल कर समझौता करने का लालच दे रहे हैं वहीं वकील का कहना है कि उन्हें तीनों मृतक के परिवारों की लड़ाई लड़ने के लिए जान से मारने की धमकी मिल रही है.

दिसंबर 2019 में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों और यूपी पुलिस के बीच पूरे उत्तर प्रदेश हुई हिंसा, जिसमें 23 लोगों की मौत हुई थी. उसके एक साल पूरा होने के मौके पर क्विंट ला रहा है यूपी के अलग-अलग हिस्सों से ग्राउंड रिपोर्ट और ये उस सीरीज की पहली कड़ी है.

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‘हमारी शिकायतों को वापस लेने का दबाव’

रईस, सैफ और आफताब के परिवारों, जो कानपुर के बेगम पुरवा इलाके में रहते हैं, का कहना है कि उन पर केस वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है. उदाहरण के तौर पर नजमा ने इस रिपोर्टर को बताया कि “ वकील (नासिर खान) ने मुझे बताया कि कुछ इंस्पेक्टर ये सुझाव दे रहे हैं कि हम सभी 5-5 लाख रुपये लेकर केस वापस ले लें. मैं इसके लिए तैयार नहीं हुई. मैंने अपने वकील को कहा कि वो मुझे उससे मिलवाए. मैं उससे कहूंगी कि वो मुझसे 10 लाख रुपये ले ले और बदले में अपने बेटे की हत्या करवा दे. तभी मैं मानूंगी.”

मोहम्मद सैफ के पिता मोहम्मद तकी ने भी कुछ इसी तरह का दावा किया. जब उनसे पूछा गया कि वो क्यों मानते हैं कि उनके वकील दबाव में हैं तो उन्होंने कहा कि “ वकील ने उन्हें बताया कि उन पर दबाव है, पुलिसवाले उन्हें परेशान कर रहे हैं. समझौते के लिए दबाव बना रहे हैं. जब वकील ने हमें ये बात बताई तो हमने कहा कि हम समझौता करना नहीं चाहते. ये दबाव सिर्फ हमारे ऊपर ही नहीं बल्कि उन तीनों परिवारों के लोगों पर है जिनके बेटों की मौत हुई है. वो चाहते हैं कि हम केस वापस ले लें और मामले को खत्म करें.

क्विंट ने 42 साल के नासिर खान से उनके घर सह दफ्तर में मुलाकात की जहां लगातार फोन की घंटियां बज रही थीं और बड़ी संख्या में लोग आ रहे थे. दबाव और धमकाए जाने की बात पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि “ इस तरह की धमकियां उनके लिए हर दिन की बात है. कई लोग उन्हें इस तरह के मामलों की पैरवी छोड़ने के लिए धमकी दे रहे हैं. वो लोग मेरे मुवक्किल हैं और उनका सुरक्षित होना जरूरी है. मेरा काम अपने मुवक्किल की पैरवी करना है. लोगों ने भी मुझसे कहा है कि मैं इस केस से हट जाऊं नहीं तो मेरी जान जा सकती है. जरूर, ऐसा होने दीजिए. अगर मैं डर गया तो मैं अपना काम नहीं कर पाऊंगा.”

इस रिपोर्टर ने इन परिवारों की ओर से लगाए जा रहे आरोपों को कानपुर के पुलिस अधीक्षक के पास भेजा लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. जब उनका जवाब आएगा तो इस खबर को अपडेट किया जाएगा.

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मरने के पहले, मेरे बेटे ने मुझे बताया पुलिस ने उसे गोली मारी: आफताब की मां

नजमा बानो ने कहा कि गोली लगने के बाद भी आफताब बात करने की हालत में था. जब उसने सीने पर लगे गोली के घाव के बारे में पूछा तो आफताब ने बताया कि पुलिस ने उसे गोली मारी है. कुछ देर बाद उसकी मौत हो गई. अपने बेटे के अंतिम शब्दों को याद करते हुए नजमा ने कहा कि बेटे ने उनसे कहा कि ‘वो जिंदा नहीं बचेगा.’

लाला लाजपत राय सरकारी अस्पताल, जिसे हैलेट अस्पताल के तौर पर भी जाना जाता है, में जब उन्होंने अपने बेटे की हालत बिगड़ती देखी तो वो डॉक्टरों से अपने बेटे को बचाने की गुहार लगाती रहीं. उन्होंने बताया कि “डॉक्टर बिल्कुल भी उसका इलाज नहीं कर रहे थे. कोई इलाज नहीं हो रहा था. मैं डॉक्टरों से बेटे के इलाज की गुहार लगाती रही लेकिन वहां ज्यादा महत्वपूर्ण लोग आ रहे थे. उनकी देखभाल की जा रही थी लेकिन मेरे बेटे की नहीं. उस रात (20 दिसंबर) 8 बजे के करीब वो मेरे पास आए और कहा कि बेटे का ऑपरेशन किया जाएगा, मैंने उनसे पूछा कि अब इस सब का क्या फायदा जब उसकी मौत हो चुकी है.”

नजमा बानो मानो शून्य में देखती रहीं और फिर रोने लगीं. उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने बेटे को एक कंस्ट्रक्शन साइट पर एक दिन पहले की दिहाड़ी लाने के लिए घर से भेजा था.

बेटे की मौत के बाद कई हफ्तों तक उन्हें पुलिस स्टेशन जाने में काफी डर लगता था. धीरे-धीरे जब कोई उनसे मिलने नहीं आया और उनके, उनके परिवार के साथ कोई अनहोनी नहीं हुई तो उन्होंने मामला अपने हाथों में लेने का फैसला किया. नजमा ने कहा कि “ मैं एक रिपोर्ट दर्ज कराने पुलिस स्टेशन गई और पुलिस ने कहा कि वो उनकी शिकायत दर्ज नहीं करेंगे. इसके बजाए पुलिस ने पूछा कि मुझे कैसे पता चला कि पुलिस ने गोली मारी है. मैंने उन्हें बताया कि मेरे बेटे ने मुझे मरने के पहले बताया है, तो मैं कैसे इस बात पर भरोसा नहीं करूं कि आप लोगों ने उसे गोली नहीं मारी?” नजमा बार-बार पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाती रहीं लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

पुलिस ने नजमा को बताया कि इस मामले पर उनकी आधिकारिक प्रतिक्रिया क्या है-वो बयान जो पुलिस ने क्विंट के सामने भी दोहराया. पुलिस का कहना था कि तीनों लोगों की मौत प्रदर्शनकारियों के बीच क्रॉस फायरिंग में हुई और इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि पुलिस ने उन पर गोली चलाई.

बेगमपुर के एसएचओ ने बताया कि कोई भी अपने सबूतों को लेकर कोर्ट जाने को स्वतंत्र है हालांकि पुलिस एक ही अपराध के लिए दो एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती. बाबुपुरवा के सर्किल अफसर आलोक सिंह ने इस रिपोर्टर को बताया कि उनकी नियुक्ति दिसंबर 2019 की सीएएसी विरोधी हिंसा के बाद हुई है. उन्होंने माना कि तीनों परिवारों के कोर्ट जाने के कारण अब कोर्ट के आदेश के मुताबिक आगे की कार्रवाई की जाएगी.

हार कर नजमा ने पुलिस स्टेशन जाना छोड़ दिया क्योंकि उनकी कोशिश बेकार साबित हुईं

गुस्से और हताशा के बीच झूलते हुए नजमा ने सवाल किया कि “उनका कहना है कि भीड़ ने एक-दूसरे की जान ली. दोनों के बीच क्या दुश्मनी थी? आप लोग ही बंदूकें चला रहा थे. मेरा बेटा नमाज पढ़ने गया था या गोली चलाने? रिपोर्टर के साथ साझा करते हुए एक विशेष वीडियो का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि पुलिस के लोग गोली चलाते देखे जा सकते हैं. उन्होंने कहा कि “ वो बार-बार कह रहे है उन्हें गोली मार दो, उन्हें जाने नहीं दो, आप खुद ही देखिए”

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उसका नाम सुनने के बाद किसी भी डॉक्टर ने उसे हाथ नहीं लगाया: रईस के पिता

थोड़ी ही दूर पर रईस खान के पिता 70 साल के मोहम्मद शरीफ बगल के बेगम पुरवा से सटी गली में अपने घर के बाहर बैठकर लहसन छील रहे थे. नजमा के उलट जो चुपचाप रो रहीं थी, शरीफ इस रिपोर्टर को देख कर जोर-जोर से रोने लगे. पापड़ बेचने का काम करने वाले 30 साल के रईस उस मनहूस दिन काम पर नहीं गए लेकिन ईदगाह में 350 रुपये के लिए बरतन धोने का फैसला किया. रईस के पिता ने बताया कि “ मैंने उसे कहा कि उसने छुट्टी ली है इसलिए बाहर जाकर घूमे-फिरे लेकिन उसने कहा कि 350 रुपये से घर का खर्च चलाने में मदद मिलेगी और काम करने का फैसला किया.”

जब रईस ईदगाह के पास एक मैदान के सामने बने शादी के टेंट में काम कर रहा था तभी पेट में गोली लगने से उसकी मौत हो गई. शरीफ ने बताया कि अस्पताल ले जाए जाने से पहले जब उनके बेटे को घर लाया गया तो उसने बार-बार उन्हें यही बताया कि पुलिस ने उस पर गोली चलाई है.

अस्पताल में किसी ने भी उसका इलाज नहीं किया. दोनों हाथों से अपनी छाती पीटते और अपने आस-पास के लोगों का ध्यान खींचते शरीफ ने कहा कि “ डॉक्टर ने सुना कि उसका मुस्लिम नाम है और वो उसे किसी तरह से छूना नहीं चाहता था. हम छाती पीट रहे थे और मदद मांग रहे थे लेकिन कोई भी हमारी बात नहीं सुन रहा था. अपने बड़े बेटे से पुष्टि करने के बाद उसके पिता ने बताया कि रईस की मौत 22 दिसंबर को हुई थी.

प्रदर्शनकारियों ने खुद को कैसे मारा, इस बारे में पुलिस की थ्योरी को खारिज करते हुए शरीफ ने सवाल किया कि “ पुलिस ये कह रही है के हमारे बीच गोली चली और इससे ही मेरे बेटे की मौत हुई. अब आप मुझे बताइए, जब हम नमाज पढ़ने जाते हैं तो क्या हम हथियार लेकर जाते हैं? हम खाली हाथ जाते हैं, ठीक?

उन्होंने कहा कि स्थानीय पुलिस स्टेशन ने उन्हें कुछ महीने पहले बुलाया और कुछ कागजात पर उनके अंगूठे के निशान मांगे. उन्होंने कहा कि “ मैंने उन्हें कहा कि मैं अंगूठे का निशान नहीं दूंगा. मैंने कहा कि मैं मेरे वकील के कहने पर ही ऐसा करूंगा. तब मुझे वहां से जाने को मजबूर किया गया.”

शरीफ ने कहा कि “उन्हें पुलिस पर भरोसा नहीं है.” जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उनका कहना था कि “जब पुलिस ने हमारी एफआईआर दर्ज नहीं की, किसी तरह हमारी मदद नहीं की, हमारे प्रति किसी तरह की संवेदना नहीं दिखाई तो मैं क्यों उसपर भरोसा करूं.” उनका मानना है कि पुलिस उनकी आवाज दबाने की कोशिश कर रही है. एफआईआर दर्ज कराने के लिए उनका मामला भी नासिर खान ही लड़ रहे हैं.

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अखबार से पता चला उसकी मौत हो गई है: सैफ के पिता

मुंशी पुरवा लौटते हैं जहां हम 25 साल के मोहम्मद सैफ के परिवारवालों से मिले थे. उसके पिता ने कहा कि दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करने वाले सैफ घर खाना खाने आए थे और अपने बड़े भाई मोहम्मद जकी के लिए खाना लेकर निकले थे. रास्ते में वो मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए रुके थे. भीड़ बढ़ती गई और भगदड़ जैसी स्थिति बन गई जिसके बाद उन्हें गोली मार दी गई.

उन्हें तुरंत हैलेट अस्पताल ले जाया गया, उनके परिवार का कहना है कि डॉक्टरों ने उसकी मदद के लिए कुछ भी नहीं किया. उनका कहना है कि स्थानीय अखबारों के जरिए उन्हें पता चला कि उनके बेटे की अगले ही दिन 21 दिसंबर को मौत हो चुकी थी. इस समय तक उन्हें अस्पताल से किसी तरह की सूचना नहीं दी गई थी. उसके 62 साल के पिता मोहम्मद तकी ने कहा कि “उनके ऑपरेशन में काफी देर हो गई.”

आफताब और रईस की ही तरह, उसने भी, अपने परिवार के लोगों को बताया कि पुलिस ने उस पर गोली चलाई थी. जहां सभी परिवार यही दावा कर रहे हैं, मृतकों का कोई लिखित बयान नहीं है जिसमें ये दावा किया जा रहा हो कि पुलिस ने उन पर गोली चलाई है- कथित तौर पर सबूतों की कमी के कारण उनके दावे को खारिज किए जाने का एक कारण ये भी है. उनकी मौत के काफी घंटे पहले उन्हें अस्पताल लाया गया था.

इस रिपोर्टर ने उनके वकील नासिर खान से पूछा कि मृतकों का उनके परिवार वालों को दिया बयान कितना मायने रखता है. वकील का कहना था कि “ हां ये सही है. मरने के पहले तीनों ने डॉक्टरों, अपने घरवालों और दोस्तों के सामने बयान दिया कि पुलिस ने उनपर गोली चलाई है. मैंने इसी आधार पर एक आवेदन लिखा है और इसे एसएसपी को भी दिया है, लेकिन कोई एफआईआर दर्ज नहीं होने के कारण मैंने सीआरपीसी की धारा 156/3 के प्रावधानों के तहत कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और अंतिम बहस चल रही है.”

जब उनसे पूछा गया कि मरने से पहले दिया गया लिखित बयान होता तो क्या इसका ज्यादा असर होता तो उन्होंने कहा कि ऐसा होने पर उसी समय केस दर्ज हो जाता. उन्होंने कहा कि “ये पुलिस की लापरवाही है कि उन्होंने मरने से पहले उनका अंतिम बयान नहीं लिया. अगर कोई मर रहा है, तो ये तर्कसंगत है कि वो अपना बयान किसी मजिस्ट्रेट या एक उच्च अधिकारी के सामने दर्ज करेगा. इसमें देरी क्यों की गई. ये सब अपने आप साफ हो जाता. ये सरकार की जिम्मेदारी है.

अपने आंसू रोक नहीं पा रही सैफ की मां कमाल जहां ने भी अपनी चुप्पी तोड़ी. उन्होंने कहा कि “जिस तरह से पुलिस ने मेरे बच्चों के साथ व्यवहार किया है, वही उनके बच्चों के साथ भी होगा. उनके बच्चों भी वैसे ही जाएंगे.”

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