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‘पुलिस ने मेरी दाढ़ी जला दी’, 4 ‘तबाह’ जिंदगियों की कहानियां

“हम ऐसे किसी अधिकारी के लिए सहानुभूति नहीं रखते जो आईपीसी और सीआरपीसी से अलग ड्यूटी कर रहा है” - ADG प्रशांत कुमार

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भारत
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(इलस्ट्रेशन: अरूप मिश्रा)

“गोविंद नगर पुलिस स्टेशन में रात भर पिटाई के बाद पुलिसवाले ने मुझे सुबह होने के पहले उठाया. उन्होंने रस्सी से मेरे दोनों हाथ बांध दिए, एक जीप के पिछले हिस्से में नीचे बिठाया, एक पुलिसवाले ने पीछे से मेरा सिर पकड़ा हुआ था जबकि दूसरे ने माचिस की तीली से मेरी दाढ़ी जला दी.”

ये कहना है 21 साल के आदिल का, जो हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट से जमानत मिलने के बाद रिहा हुआ है. 20 दिसंबर, 2019 को पुलिस और सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प के बाद जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने उसे हिरासत में लिया तो क्या-क्या हुआ था इसके बारे में पहली बार आदिल ने मीडिया से बात की है.

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“हम ऐसे किसी अधिकारी के लिए सहानुभूति नहीं रखते जो आईपीसी और सीआरपीसी से अलग ड्यूटी कर रहा है” - ADG प्रशांत कुमार

आदिल उन 39 लोगों में शामिल था जिसे उस दोपहर यूपी पुलिस ने कानपुर से हिरासत में लिया था. 21 दिसंबर की सुबह तक 39 लोगों में से चार लोगों को हत्या की कोशिश, दंगा, आगजनी, डकैती और आर्म्स ऐक्ट की कई धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था. इनमें एक सैलून में काम करने वाला आदिल, 22 साल का मैकेनिक मुस्तकीम, 60 साल के स्टोर कीपर सरफराज आलम और सिलाई का काम करने वाले 62 साल के परवेज आलम शामिल थे. ये सभी कानपुर के मुस्लिम बहुल बाबू पुरवा इलाके में रहते हैं और उनके वकील का कहना है कि इनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं रहा है.

शुरुआत में जिला अदालत से जमानत खारिज होने के बाद कई महीनों तक जेल में रहने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट से जमानत मिलने पर वो रिहा हुए हैं. रिहा होने के बाद पहली बार विस्तृत बातचीत में उन्होंने क्विंट को बताया कि 20 और 21 दिसंबर 2019 के बीच की रात को क्या हुआ था.

“हम ऐसे किसी अधिकारी के लिए सहानुभूति नहीं रखते जो आईपीसी और सीआरपीसी से अलग ड्यूटी कर रहा है” - ADG प्रशांत कुमार

शुरुआत से जब उन चारों लोगों को हिरासत में लिया गया था तब से लेकर, जब उन्हें जमानत पर रिहा किया गया, इस रिपोर्टर ने यूपी पुलिस के खिलाफ सांप्रदायिक तौर पर अपमानित करने और शारीरिक हिंसा के डरावने आरोपों को सुना. इन आरोपों में एक आरोपी की दाढ़ी जलाना, मुस्लिम महिलाओं के बारे में अभद्र टिप्पणी, पुरुषों को आतंकवादी कहना, फर्जी मुठभेड़ में मारने की धमकी और ‘जय श्री राम’ बोलने को मजबूर करना शामिल है.

इस खबर में लगाए गए आरोपों पर टिप्पणी करते हुए उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महानिदेशक (कानून और व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने कहा-“इन आरोपों के बारे में हमें कोई शिकायत नहीं मिली है. उन्हें एक वरिष्ठ अधिकारी के ध्यान में लाया जाना चाहिए था और वो इस पर जरूर कार्रवाई करते. कानून और व्यवस्था की हर समस्या को जाति, संप्रदाय या धर्म से ऊपर उठकर एक कानून और व्यवस्था की समस्या की तरह निपटा जाता है. हमारे पास छुपाने को कुछ भी नहीं है. हम ऐसे किसी अधिकारी के लिए सहानुभूति नहीं रखते जो आईपीसी और सीआरपीसी से अलग ड्यूटी कर रहा है.”

“हम ऐसे किसी अधिकारी के लिए सहानुभूति नहीं रखते जो आईपीसी और सीआरपीसी से अलग ड्यूटी कर रहा है” - ADG प्रशांत कुमार
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कानपुर के महानिरीक्षक मोहित अग्रवाल ने भी सभी आरोपों का खंडन किया और कहा कि ये कानपुर में “पूरी तरह से सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने की कोशिश थी.”

उन्होंने कहा-“ मुझे नहीं लगता कि आपको ये खबर रिपोर्ट करनी चाहिए. उस समय मीडिया हर जगह मौजूद थी. अगर इन आरोपों को बाहर आना होता तो उस समय ही बाहर आ जाते. ये वो व्यक्ति है जो आगजनी और दंगों का आरोपी है, मैं पूरी तरह से इससे असहमत हूं. न तो पुलिस ऐसा कर सकती है, न ही ऐसा हुआ है और न ही ऐसी कोई बात उस समय भी सामने आई थी.” केवल आरोपों से इनकार करने से एक कदम आगे बढ़ते हुए अग्रवाल ने इस रिपोर्टर को आरोपी से तीन सवाल करने को कहा, जिनके जवाब इस रिपोर्ट में शामिल किए गए हैं. जो सवाल पूछे गए थे वो हैं..

1. जब आपकी मेडिकल जांच हुई तो क्या आपने डॉक्टर को बताया कि आपकी दाढ़ी जलाई गई है?

2. किसी को गिरफ्तार किए जाने के बाद, आरोपी को न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है. क्या आपने कोर्ट में ये बातें बताई थीं?

3. जब आप जेल में होते हैं तो आपके पास खुद या परिवार के जरिए शिकायत करने की छूट होती है. क्या आपने शिकायत की थी?

मामले को आधारहीन बताने के लिए पुलिस की ओर से उठाए गए इन सवालों को ध्यान में रखते हुए हमने सबसे पहले आरोपियों से इन सवालों के बारे में पूछा.

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‘डॉक्टर को बताने की कोशिश की, पता नहीं था कि मजिस्ट्रेट को बता सकते थे और डीएम को बताया था’

अस्पताल में: आदिल का दावा है कि डॉक्टर ने उससे पूछा था कि दाढ़ी कैसे जली. “ उसने मुझसे पूछा कि मेरी दाढ़ी क्यों जली हुई है. मैं जवाब देना चाहता था लेकिन दे नहीं सका. मुझे नहीं लगा कि मैं वहां के स्वास्थ्य कर्मचारी पर भरोसा कर सकता हूं. मैडम आपको पता चल जाता है कि किसी को सच्चाई बताने से आपको मदद मिलेगी या नहीं. यहां तक कि जब डॉक्टर ने पूछा और मैंने उस पुलिसवाले की ओर देखा जिसने मेरी दाढ़ी जलाई थी, वो मुझे अपनी नजरों से डरा रहा था”. मुस्तकीम ने आगे बताया कि कैसे अस्पताल के कर्मचारी उनके साथ अपराधियों जैसा सलूक कर रहे थे. “वो हमें बोल रहे थे कि हम लोगों को दंगा नहीं करना चाहिए था. उनको कुछ भी बताने का कोई मतलब नहीं था. वो सब हमारे खिलाफ एक साथ थे.”

“हम ऐसे किसी अधिकारी के लिए सहानुभूति नहीं रखते जो आईपीसी और सीआरपीसी से अलग ड्यूटी कर रहा है” - ADG प्रशांत कुमार

मजिस्ट्रेट के सामने पेशी: अस्पताल के बाद सभी को एक मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया और फिर जेल ले जाया गया. प्रताड़ना को लेकर मजिस्ट्रेट को कुछ नहीं बताने के बारे में जब उनसे पूछा गया तो चारों लोगों ने कहा कि न तो उनसे पूछा गया और न ही उन्हें इस बात की जानकारी थी कि वो इस बारे में मजिस्ट्रेट को बता सकते हैं. मुस्तकीम ने कहा कि” जज ने सिर्फ हमसे हमारा और पिता का नाम पूछा और जाने को कहा. हम 60 सेकेंड से भी कम समय के लिए उनके सामने थे. ये सब हमारे लिए नया और डरावना था. हमारे वकीलों सहित वहां कोई भी मौजूद नहीं था. हमारे सर चक्कर खा रहे थे और हम बहुत ज्यादा डरे हुए थे.

कानपुर के डीएम के सामने: चारों करीब 10 दिनों तक जेल की एक ही बैरक में साथ रहे और बाद में अलग-अलग बैरक में भेज दिए गए. इनका आरोप है कि अलग-अलग बैरक में भेजे जाने से पहले कानपुर से उस समय के डीएम विजय विश्वास पंत उनसे मिले थे. “ सभी को एक लाइन में खड़ा किया गया और फिर हम चारों को खास तौर पर अलग कर दिया गया.” आदिल और मुस्तकीम ने कहा कि उन्होंने जिला मजिस्ट्रेट को उनके साथ जो किया गया उसकी जानकारी दी थी. “हमने उन्हें बताया, उन्हें दिखाया कि कैसे हमारी पिटाई की गई है. मैंने विशेष तौर पर उन्हें अपनी जली दाढ़ी के बारे में बताया. वो अच्छे से बात कर रहे थे और उन्हें हमारे साथ हमदर्दी थी. लेकिन इतना ही. इसके बाद कुछ नहीं हुआ.”

क्विंट ने कानपूर के पूर्व डीएम, जो अब आजमगढ़ के डिविजनल कमिश्नर हैं, से इस पर उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही. जब उनकी प्रतिक्रिया मिलेगी तो खबर को अपडेट किया जाएगा.

चारों इस हालत में कैसे पहुंचे, चलिए 20 दिसंबर की दोपहर में चलते हैं.

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जब यूपी पुलिस ने चारों लोगों को हिरासत में लिया

पड़ोसी और दोस्त, आदिल और मुस्तकीम दोनों का दावा है कि वो 20 अक्टूबर को बाबू पुरवा के नई बस्ती इलाके में मुस्तकीम के रिश्तेदार की शादी के लिए कुछ काम कर रहे थे. “ करीब एक बज रहे थे दिन के, जब मैं और आदिल मेरे बड़े अब्बा की बेटी की शादी के लिए काम पर जुटे हुए थे. बाहर जो ट्रक खड़ा था, हम वहां से चूल्हा, पानी की पाइप वगैरह बस्ती की तरफ ला रहे थे. घर के बगल ही एक कारखाना है जहां हम सब सामान रख रहे थे.”

दोनों को घर से फोन आया था. दोनों को साफ-साफ कहा गया कि वो जहां हैं वहीं रहें. तो हम उसी रूम में ठहर गए थे कि यहां थोड़ी देर रहेंगे और उसके बाद जब मामला ठंडा हो जाएगा तब चले जाएंगे.

इसी समय करीब 60 साल की उम्र के सरफराज आलम और परवेज आलम उस कमरे में आए. परवेज, जिनका कहना है कि वो दिल के मरीज हैं, और ठीक से सांस नहीं ले पा रहे थे. उन्होंने गोली चलने और नारेबाजी सहित जो कुछ हो रहा था उसके बारे में सुना था और इसके कारण तनाव में और चिंतित थे. वो ठीक से चल नहीं पा रहे थे इसलिए सरफराज उनकी मदद कर रहे थे. दोनों कारखाने के पास रुके जहां आदिल और मुस्तकीम शादी के लिए लाए गए सामान इकट्ठा कर रहे थे. आदिल ने परवेज के लिए थोड़ा पानी लाया.

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मुस्तकीम ने दावा किया कि “ अचानक ही पुलिस उस छोटे कमरे के अंदर घुस गई जहां हम चार लोग थे. चार से पांच पुलिसवाले थे. वो बार-बार कह रहे थे कि उसे पकड़ो, उसने पीली जैकेट पहन रखी है. उन्होंने हमें गालियां दी और बार-बार पिटाई की. पीली जैकेट का जिक्र यहां महत्वपूर्ण है क्योंकि उस इलाके में हिंसा के दौरान के एक वायरल वीडियो में पीली जैकेट पहने एक व्यक्ति को पुलिस पर पत्थरबाजी करता देखा जा सकता है और जिसके जवाब में पुलिस उसे गालियां देती और उसकी ओर फायरिंग करती दिख रही है. मुस्तकीम और उसके वकील का कहना है कि वो वीडियो में दिख रहे पीले जैकेट वाला व्यक्ति नहीं है.

आदिल का दावा है कि उसने पुलिस को समझाने की कोशिश की कि उन्होंने कुछ भी नहीं किया है. पुलिसकर्मी मुड़ा और उसके दोस्त मुस्तकीम की कमर पर पिस्तौल तान दी. “एनकाउंटर कर देंगे तुम्हारा अगर इसी वक्त बाहर नहीं निकलोगे.” चारों लोगों ने इस बात की पुष्टि की कि पुलिस ने बार-बार ये बात कही.

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‘सरेआम पिटाई और जनता के सामने परेड’

“बहुत मारे थे हमको, बहुत” आदिल कहता रहा.

चारों लोगों को घसीट कर, चार रात रोड पर परेड कराते हुए ले जाया गया. मुस्तकीम ने कहा कि “ जब हमें ले जाया जा रहा था तब हर जगह मौजूद पुलिसवाले एक-एक कर हमें पीट रहे थे.”

इस घटना को याद करते हुए परवेज आलम इस रिपोर्टर के सामने कई बार अपने आंसू नहीं रोक पाए. “दिल और दिमाग ये बर्दाश्त नहीं कर पा रहा कि ऐसा कुछ हुआ है हमारे साथ, जो हमारी बेइज्जती हुई है उस दिन.”

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पुलिसवालों ने परवेज को उनकी दायीं कान पर इतनी जोर से मारा कि वहां गहरी चोट लग गई और खून निकलने लगा. “ मेरे कपड़ों पर हर जगह खून लगा था.” परवेज का दावा है कि बाहर आने के वक्त वो एक बार भी शर्म के कारण सर उठा नहीं सके. “ नजरें झुकाए हुए थे, शर्मिंदगी महसूस हो रही थी, मजमा हो गया था लोगों का.”

आदिल ने कहा कि “करीब एक किलोमीटर तक हम चलते रहे और हर एक पुलिसवाला जो हमारे पास से गुजरा, उसने हमें मारा और गालियां दीं.”

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अपने हाथ को दाहिनी गाल की तरफ ले जाते हुए मुस्तकीम ने कहा कि” मीडिया के कुछ लोग भी हाथों में बड़े कैमरे लेकर वहां थे, उनमें से एक मेरे चेहरे से टकरा गया. परवेज ने कहा कि “ जब तक हम उस जीप तक नहीं पहुंचे जिससे हमें बाबू पुरवा पुलिस स्टेशन लाया गया, पुलिसवाले हमें मारते रहे.

यहीं पर इन चारों की मुलाकात हिरासत में लिए गए दूसरे लोगों से हुई. उनका कहना है कि उन्हें एक दरवाजे के सामने एक तरफ बिठा दिया गया. हर बार जब हम किसी पुलिसवाले को आते देखते तो हम डर जाते, सिविल ड्रेस में मौजूद पुलिसवाले हमें गालियां दे रहे थे, जो उनके हाथ लग रहा था उसी से पीट रहे थे. यहीं पर चारों को एक-दूसरे से अलग कर दिया गया.

आदिल और मुस्तकीम उन 19 लोगों में शामिल थे जिन्हें रात 8 बजे के करीब गोविंद नगर पुलिस स्टेशन ले जाया गया, बाकी के 20 लोगों को अमरापुर पुलिस स्टेशन ले जाया गया.

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‘जय सिया राम बोलने को मजबूर किया गया’

आदिल और मुस्तकीम को ट्रक में डालकर गोविंद नगर पुलिस स्टेशन ले जाया गया. “जैसे ही हमें ट्रक से उतारा गया, वो फिर से हमें लाठियों से मारने लगे और ये हमारे पुलिस स्टेशन पहुंचने तक चलता रहा.”

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“कमरे में हमारी चीखें और रोने की आवाजें गूंज रही थीं और यूपी पुलिस तेज आवाज में हमें बार-बार ‘जय सिया राम’ कहने को बोल रही थी. अगर हम बोलने में एक सेकेंड की भी देरी करते या एक पल भी ये सोचने लगते कि न बोलने का कोई विकल्प है तो वो हमें पीटने लगते. हमारी चीखें तेज होती गईं और जय श्री राम की आवाज भी” आदिल ने आरोप लगाया. “ऐसा महसूस हुआ” ये कहते-कहते आदिल चुप हो गया, उसकी आंखें फर्श को घूरने लगीं. बात वहीं छोड़कर हम आगे बढ़ गए.

दोनों ने हमें बताया कि कैसे जब एक पुलिसवाला उनका नाम, पिता का नाम, पता वगैरह पूछ रहा था तब दूसरा लाठी से उनकी पिटाई करता रहा. उन्होंने कहा कि “ कभी-कभी नाम, पता लिखने वाला पान मसाला, पानी या बाथरूम जाने के लिए चला जाता था. हर बार जब वो लौट कर आता तो फिर से पूछता था और हमारी फिर से पिटाई होती थी. उन्होंने हमें ये भी बताया कि पुलिसकर्मी नाम का बैज नहीं पहने हुए थे और कुछ ने मास्क भी पहन रखा था.

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सबका नाम लिखने के बाद पुलिसवालों ने लड़कों को जाकर सोने को कहा. आदिल और मुस्तकीम ने दावा किया कि पुलिसवालों ने फिर कहा कि “ अगर तुम लोग नहीं सोए तो तुम्हें एक एनकाउंटर में ढेर कर देंगे.” आदिल कुछ मिनटों के लिए सो गया जबकि मुस्तकीम पूरी रात जागता रहा. कुछ घंटे बाद लड़कों को जगाया गया जब किसी ने आकर पूछा कि आदिल और मुस्तकीम कौन है. कथित तौर पर उन्हें फिर से जान से मारने की धमकी दी गई. “ चलो तुम्हारा एनकाउंटर करते हैं.” आदिल और मुस्तकीम का कहना है कि जब वो जीप की ओर बढ़ रहे थे तो डर के मारे उनकी हालत खराब थी क्योंकि उन्हें पता नहीं था कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है.

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सुबह नहीं हुई थी और जीप चारों ओर से बंद थी. आदिल और मुस्तकीम ने आरोप लगाया कि उनके हाथ रस्सी से बांध दिए गए थे और उन्हें जीप के फर्श पर बिठाया गया था. इसी समय और जगह पर कथित तौर पर आदिल की दाढ़ी जलाई गई थी. आदिल ने दावा किया कि “ मेरी दाढ़ी जलाने के दौरान वो इस तरह की बातें कर रहे थे ‘ तुम्हारी पत्नियां, बहनें बहुत सुंदर होती हैं. तुम लोग किस तरह के लोग हो जिनकी चार बीवियां होती हैं? तुम आतंकवादी हो.’

पिटाई और आदिल की दाढ़ी जलाने के आरोप की पुष्टि जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के यूपी डिवीजन के मौलाना अंसार अहमद और कारी अब्दुल मोइद भी करते हैं जो 22 दिसंबर की दोपहर के बाद चारों लोगों से मिले थे.

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जमीयत के यूपी के सचिव कारी अब्दुल मोइद चौधरी ने आगे बताया कि “ उनकी जमकर पिटाई की गई थी. आदिल की दाढ़ी जला दी गई थी, उसकी त्वचा जल गई थी. परवेज के कान के पास घाव था और उसमें तब तक खून आ रहा था. वो हमसे जल्द से जल्द वहां से बाहर निकालने की गुहार लगा रहे थे.”

अंत में पुलिसवालों को एक फोन आया और उन्होंने जीप को दूसरी दिशा में मोड़ दिया. आदिल का दावा है कि इस समय ड्राइवर ने पुलिसवालों से इनकी और पिटाई नहीं करने की अपील की. आदिल ने कहा कि “ड्राइवर अच्छा आदमी था, उसने बोला कि इनको और नहीं मारना.” बाद में उन्हें पता चला कि वो अमरापुर पुलिस स्टेशन के रास्ते पर थे जहां जल्द ही उनकी मुलाकात सरफराज और परवेज से होने वाली थी.

इसके बाद क्या हुआ ये जानने से पहले चलिए सरफराज और परवेज से सुनते हैं कि 20 दिसंबर को बाबू पुरवा पुलिस स्टेशन से ले जाए जाने के बाद के उनके साथ क्या हुआ.

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अमरापुर पुलिस स्टेशन: सरफराज और परवेज

आदिल और मुस्तकीम को गोविंद नगर पुलिस स्टेशन ले जाया गया था जबकि सरफराज और परवेज को अमरापुर पुलिस स्टेशन ले जाया गया था.

क्या हुआ था ये याद करते हुए सरफराज ने कहा:

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दोनों ने पुलिस स्टेशन के अंदर पिटाई नहीं होने की पुष्टि की. “ जेल जाने के बाद हमें पता चला कि गोविंद नगर पुलिस स्टेशन में दोनों लड़कों को जमकर पीटा गया. हम इससे बच गए थे.”

अगली सुबह पुलिस स्टेशन में मौजूद हिरासत में लिए कई लोगों में उन दोनों का चुनाव किया गया, एक कार में बिठाया गया जिसमें पहले से ही आदिल और मुस्तकीम बैठे हुए थे, चारों को मेडिकल जांच के लिए बरहना रोड पर स्थित कानपुर मेडिकल कॉलेज ले जाया गया.

आदिल का सर दो जगहों से फट गया था-उसकी दायीं आंख के ऊपर ललाट पर और पिछले हिस्से में. इसके अलावा उसे दाएं हाथ और पैर में चोट लगी थी.

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मुस्तकीम का दावा है कि उसका दाहिना अंगूठा बुरी तरह से चोटिल था, उसकी उंगलियों की हड्डी टूट गई थी और लगातार पिटाई से उसके सर और पैर नीले पड़ गए थे.

जब उन्हें पुलिस स्टेशन ले जाने से पहले पीटा गया, तब से परवेज का दाहिना कान फटा हुआ था, इसके अलावा उसके पैर में भी चोट लगी थी जबकि सरफराज की केहुनी और पैर में खून जम गया था. उनका कहना है कि ये बातें वो डॉक्टर, मजिस्ट्रेट और प्रशासन को बताना चाहते थे लेकिन वो बहुत डरे हुए थे या उन्हें पता नहीं था कि कैसे अपनी बात रखें.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत और लॉकडाउन के दौरान रिहाई

कई महीनों तक जेल में रहने के बाद चारों को इलाहाबाद हाई कोर्ट से जमानत मिल गई. सबसे पहले परवेज को 26 फरवरी, सरफराज को 12 मार्च, आदिल को 15 अप्रैल और मुस्तकीम को 30 अप्रैल को जमानत मिली.

चारों के वकील, कानपुर के रहने वाले नासिर खान ने बताया कि स्थानीय अदालत से उनकी जमानत खारिज कर दी जिसके बाद उन्हें हाई कोर्ट जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. “ संक्षेप में कहें तो परवेज के मामले में जिन्हें सबसे पहले जमानत मिली, कोर्ट में हमने दलील दी कि घटना के वक्त वो कानपुर के जाजमऊ इलाके में काम की तलाश में गए थे. घटना के वक्त वो एक लेदर फैक्टरी में थे और सीसीटीवी फुटेज में भी ये दिख रहा था. इसके अलावा उन्हें वहां से घटनास्थल पर पहुंचने में एक घंटा लगता. हंगामा खत्म होने के बाद पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया. सरफराज के मामले में हम गवाहों के जरिए ये दिखाने में कामयाब रहे कि वो अपनी दुकान में बैठकर दर्जी का काम कर रहे थे. दुकान के मालिक ने भी इस बात की पुष्टि की और कहा कि उसने सरफराज को दुकान में बैठे देखा था. आदिल और मुस्तकीम के मामले में हमने अदालत को निकाह का निमंत्रण वगैरह दिखाया और जेल में वो जितना वक्त बिता चुके थे ये देखते हुए हाई कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी.”

खान का कहना है कि पुलिस के पास चारों को गिरफ्तार करने के लिए कोई भी प्रत्यक्ष सबूत नहीं है. इस मामले में 1200 पन्नों की एक चार्जशीट दाखिल की गई है और आरोपों पर अब तक बहस शुरू नहीं हुई है.

परवेज और सरफराज को उनकी जमानत के बारे में एक स्थानीय अखबार से पता चला जब एक कैदी उसे पढ़ रहा था जबकि ड्यूटी पर तैनात पुलिसवाले ने आदिल और मुस्तकीम को बाहर निकलने की तैयारी करने को कहा.

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आदिल अपनी मगरीब की नमाज और मुस्तकीम अपनी अस्र की नमाज जेल में अता कर रहा था जब नंबरदार उनके पास आया और कहा कि उनकी जमानत हो गई है. जब आदिल जेल से जा रहा था तब जेलर ने उससे कहा कि वो उसे फिर कभी जेल में नहीं देखना चाहता.

“ वो बहुत ही दूसरों का ध्यान रखने वाले इंसान थे. मुझे सलाह देते थे और फिर कभी ऐसा नहीं करने को कहते थे. वो मुझे फिर कभी जेल में नहीं देखना चाहते थे और चाहते थे कि मैं ध्यान लगाकर पढ़ाई करूं.” जब जेल में परवेज को जमानत की खबर मिली तो उनके आंसू निकल आए. उन्होंने कहा कि “ जिस शख्स ने मुझे ये खबर दी, मैं उसी के पास कंबल, बरतन और दूसरी सभी चीजें जेल में छोड़ आया.”

वो जेल से भले ही बाहर आ गए हों लेकिन चारों के लिए अब भी हालात सामान्य होने से काफी दूर हैं. परवेज की पत्नी ने हमें बताया कि कैसे उनके मानसिक स्वास्थ्य को लेकर इलाज चल रहा है. “ जब वो जमानत पर रिहा हुए थे तो शुरुआत में लोगों को पहचान नहीं पाते थे. या वो कुछ-कुछ बड़बड़ाते रहते थे. मुख्य रूप से वो घर के एक कोने में बैठे रहते और हमेशा ये कहते रहते कि कैसे उनकी जिंदगी बरबाद हो गई. वो मानसिक रोगी बन गए थे. हम मानसिक स्वास्थ्य के डॉक्टर से उनका इलाज करा रहे हैं और हाल फिलहाल उनकी हालत में सुधार नजर आ रहा है.”

जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें कोई काम मिला या नहीं तो उनका जवाब था कि “ कोशिश तो कर रहे हैं लेकिन बात नहीं बन रही है.” उनकी पत्नी ने इस रिपोर्टर को घऱ के अंदर बुलाया और बताया ” वो काम करना नहीं चाहते हैं, कई महीनों तक उनके शरीर में दर्द रहा, वो थोड़ा भी चल भी नहीं पा रहे थे. अगर आप इस घटना के पहले उनसे मिले होते तो इतने चुटकुले सुनाते कि आप लगातार हंसते ही रहते. अब वो हमेशा हैरान, परेशान रहते हैं और दिन भर कुछ से कुछ सोचते रहते हैं. हमसे जितना हो पा रहा है हम कर रहे हैं.”

एक सैलून में काम करने वाले आदिल ने अब अपना पेशा बदल लिया है. उसे इस बात की चिंता लगी रहती है कि कोई आकर उसे काम की पुरानी जगह से फिर से हिरासत में लेने की कोशिश सकता है. मुस्तकीम की मैकेनिक की नौकरी छूट गई. “ उन्होंने मुझसे कहा कि वो केस के कारण आगे काम पर नहीं रखेंगे. मुझे कुछ दूर पर नई नौकरी मिल गई है. जेल से आने के बाद सरफराज खाली ही बैठे हैं. उनका कहना है कि कोविड 19 के कारण नौकरी ही नहीं है और जहां वो पहले काम करते थे उसने किसी और को नौकरी पर रख लिया गया है.

उनके परिवार वाले उन्हें ज्यादा देर तक नजरों से दूर नहीं होने देते लेकिन जब भी वो यूपी पुलिस के किसी अधिकारी को देखते हैं तो बहुत घबरा जाते हैं. उनका कहना है कि “ जब भी मैं एक पुलिसवाले को देखता हूं तो नजरें झुका लेता हूं, उनकी ओर नहीं देखता, दूसरी तरफ मुड़ जाना और वहां से जाना पसंद करता हूं क्योंकि मेरा दिल जोर से धड़कने लगता है. क्या होगा अगर वो मेरा पीछा कर रहें, क्या होगा अगर वो मुझे पहचान लेंगे? क्या होगा वो फिर मुझसे झगड़ने लगें? आप कभी नहीं जान सकते कि हमारे साथ क्या हो सकता है.”

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