ADVERTISEMENTREMOVE AD

यूपी: चुनाव ड्यूटी में अपनों को खोया, अब टीचरों का परिवार लाल-फीताशाही में अटका

Teachers Day पर पढ़िए चुनाव में जान गंवाने वाले शिक्षकों के परिवारों की व्यथा कथा

Updated
छोटा
मध्यम
बड़ा

26 वर्षीय नवीन कुमार कहते हैं, "मेरे पिता एक असिस्टेंट टीचर थे और हमें फोर्थ क्लास कर्मचारी की नौकरी दी जा रही है." नवीन के पिता तिलकधारी शर्मा का इस साल मई में निधन हो गया था. 58 वर्षीय शर्मा एक सरकारी स्कूल टीचर थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

तिलकधारी यूपी के चंदौली जिले में एक अपर प्राइमरी स्कूल में असिस्टेंट टीचर के तौर पर कार्यरत थे. परिवार का दावा है कि इस साल कोविड की दूसरी वेव के पीक के दौरान अप्रैल और मई में आयोजित किए गए पंचायत चुनाव में वो ट्रेनिंग, चुनाव और मतदान ड्यूटी पर थे. तिलकधारी शर्मा की चुनाव नतीजे आने के महज दो हफ्ते बाद 15 मई को मौत हो गई थी.

"उन्हें चुनाव के अलावा किसी चीज से मतलब नहीं था. उन्होंने आयु या किसी और समस्या को भी ध्यान में नहीं रखा. उन्हें वैक्सीन भी नहीं लगी थी और उनसे हर परिस्थिति में ड्यूटी पर जाने को कहा गया. इंसानी जिंदगी की कोई कीमत नहीं."
नवीन कुमार

लाल-फीताशाही से परेशान पीड़ित परिवार

मरने वाले के परिवार को मुआवजा और नौकरी राहत देता है लेकिन इससे मृत टीचरों के पीड़ित परिवारों की मुश्किलें खत्म नहीं हो जाती हैं. ऐसे ही एक टीचर का परिवार नौकरी लेने में लाल-फीताशाही की दिक्कत की शिकायत करता है.

मृतक बृजेश कुमार त्रिपाठी की पत्नी प्रियंका त्रिपाठी कहती हैं, "मैंने शादी के बाद अपना सरनेम 'शुक्ला' से 'त्रिपाठी' कर लिया था. अब मुझसे कहा जा रहा है कि उसे दोबारा 'शुक्ला' करना होगा तभी नौकरी मिलेगी. ये तो सबको पता है कि शादी के बाद औरतें अपना सरनेम बदल लेती हैं. मुझे समझ नहीं आता कि मैं दो छोटी बच्चियों की देखभाल कैसे करूंगी."

(नोट: भूलवश वीडियो में सरनेम त्रिपाठी की जगह तिवारी बोल दिया गया है.)

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बृजेश गोरखपुर में असिस्टेंट टीचर के तौर पर कार्यरत थे. उनका इसी साल 27 अप्रैल को कोरोनावायरस से निधन हो गया."

"पहले हमें बताया गया कि क्लर्क की नौकरी दी जाएगी. जब हमने संबंधित विभाग से संपर्क किया तो बताया गया कि क्लर्क की कोई वैकेंसी नहीं है. तो फिर हमने ग्रुप डी नौकरी के बारे में सोचा. अब पूरी प्रक्रिया सरनेम पर अटकी हुई है."
विपिन बिहारी शुक्ला, बृजेश के साले
ADVERTISEMENTREMOVE AD

टीचरों की कोविड मौतों के आंकड़े में भी गड़बड़

काफी आलोचना के बाद यूपी सरकार ने ड्यूटी पर हुई कोविड मौतों को माना था. इसके लिए टीचर संगठनों और यूनियनों ने आंदोलन किया था ताकि राज्य सरकार से चुनाव ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाल कर्मचारियों के परिवार को राहत और मुआवजा मिल सके. कोर्ट ने भी संदिग्ध परिस्थितियों का संज्ञान लिया था और राज्य के चुनाव आयोग से पूछा था कि वो चुनाव के दौरान कोविड गाइडलाइन का पालन करा पाने में नाकाम क्यों रहा.

मई के महीने में टीचर यूनियनों ने यूपी के 80 जिलों में ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले 1621 टीचरों की एक लिस्ट बनाई थी. कोरोना की दूसरी वेव में स्थिति को ठीक से न संभाल पाने की आलोचना से जूझ रही योगी सरकार के लिए ये लिस्ट एक और मुसीबत लेकर आई थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
टीचर यूनियन के दावों के बावजूद राज्य सरकार अपना तीन मौतों का आंकड़ा लेकर आई. सरकार ने राज्य चुनाव आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि ऑन-ड्यूटी मौत तभी मानी जाएगी जब ये कर्मचारी के अपने घर से ड्यूटी पर जाने और लौटने के समय में हुई हो.

सरकार के बयान की यूनियनों ने आलोचना की थी और क्राइटेरिया न बदलने पर आंदोलन करने की चेतावनी दी थी. अगले साल चुनाव के मद्देनजर राज्य सरकार को क्राइटेरिया बदलना पड़ा और चुनाव ड्यूटी के 30 दिनों के अंदर जान गंवाने वाले कर्मचारियों का नाम भी जोड़े गए.

यूपी सरकार ने पंचायत चुनाव ड्यूटी के बाद जान गंवाने वाले 2128 सरकारी कर्मचारियों की लिस्ट बनाई है. एडिशनल मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने बताया कि मुआवजे के कुल 633.75 करोड़ रुपये में से 606 करोड़ राज्य चुनाव आयोग को उपलब्ध कराया गया है और बाकी के 27.75 करोड़ रुपये का इंतजाम किया जा रहा है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×