ADVERTISEMENTREMOVE AD

विकास दुबे एनकाउंटर: न्यायिक आयोग की जांच रिपोर्ट में UP पुलिस को क्लीनचिट

कानपुर के बिकरू गांव में विकास दुबे और उसके गुर्गों ने 8 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

उत्तर प्रदेश के कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे (Vikas Dubey) के एनकाउंटर मामले में एक साल बाद पुलिस को क्लीन चिट मिली है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग ने गुरुवार को राज्य विधानसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें विकास दुबे एंकाउंटर मामले में पुलिस टीम को क्लीनचिट दे दी गई है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
आयोग के मुताबिक इस मुठभेड़ के फर्जी होने के सबूत नहीं मिले हैं. इस न्यायिक आयोग की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस डॉक्टर बीएस चौहान कर रहे थे. वहीं, हाईकोर्ट से रिटायर्ड जज शशिकांत अग्रवाल और पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता कमेटी के सदस्य थे.

आयोग ने यह निष्कर्ष निकाला कि दुबे और उनके गिरोह को स्थानीय पुलिस, राजस्व और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा संरक्षण हासिल था. साथ ही "गलती करने वाले लोक सेवकों" के खिलाफ जांच की सिफारिश भी की गई है.

बता दें कि कानपुर के बिकरू गांव में 2 जुलाई 2020 की रात पुलिस विकास दुबे को गिरफ्तार करने गई थी, इसी दौरान विकास दुबे और उसके साथियों ने पुलिस पर ताबड़तोड़ गोलिंया चलाईं. घात लगाकर किए गए हमले में पुलिस उपाधीक्षक देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी.

एफआईआर में दर्ज 21 लोगों में से, पुलिस ने दुबे सहित छह आरोपियों को कथित मुठभेड़ों में मार गिराया था. विकास दुबे को नौ जुलाई को उज्जैन के महाकाल मंदिर से पकड़ा गया था, जहां उसने खुद से ही अपनी पहचान जाहिर की थी. उसके बाद उज्जैन पुलिस ने यूपी पुलिस को विकास दुबे को सौंप दिया था. इसी दौरान 10 जुलाई को मध्य प्रदेश के उज्जैन से कानपुर लाते समय पुलिस की गाड़ी पलट गई थी. पुलिस का दावा था कि विकास दुबे ने वहां से भागने की कोशिश की और भागते समय वो लगातार पुलिसवालों पर गोलियां चलाई, और जवाबी गोलीबारी में वह मारा गया.

दुबे और अधिकारियों के बीच कथित मिलीभगत पर आयोग की रिपोर्ट कहती है,

''पुलिस और राजस्व अधिकारियों ने उसे और उसके गिरोह को संरक्षण दिया. किसी भी व्यक्ति ने विकास दुबे या उसके साथियों के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज कराई तो शिकायतकर्ता को हमेशा पुलिस द्वारा अपमानित किया जाता था. यहां तक ​​कि अगर उच्च अधिकारियों ने शिकायत दर्ज करने का निर्देश दिया, तो स्थानीय पुलिस ने शर्तों को निर्धारित किया,”

रिपोर्ट में कहा गया है, दुबे की पत्नी के जिला पंचायत सदस्य के रूप में चुनाव और उनके भाई की पत्नी के गांव के प्रधान के रूप में चुनाव स्थानीय प्रशासन में उसके दबदबे की ओर इशारा करता है.

रिपोर्ट में कहा गया है,

“उसके खिलाफ दर्ज किसी भी मामले में जांच कभी भी निष्पक्ष नहीं थी. चार्जशीट दाखिल करने से पहले गंभीर अपराधों से संबंधित धाराओं को हटा दिया गया था. सुनवाई के दौरान ज्यादातर गवाह मुकर जाते हैं. विकास दुबे और उसके सहयोगियों को अदालतों से आसानी से और जल्दी से जमानत के आदेश मिल गए क्योंकि राज्य के अधिकारियों और सरकारी अधिवक्ताओं द्वारा कोई गंभीर विरोध नहीं किया गया था. राज्य के अधिकारियों ने कभी भी उसके अभियोजन के लिए एक विशेष वकील को नियुक्त करना उचित नहीं समझा. राज्य ने कभी भी जमानत रद्द करने के लिए कोई आवेदन नहीं किया या किसी भी जमानत आदेश को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया.”

3 जुलाई को आठ पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी, रिपोर्ट में कहा गया है कि चौबेपुर पुलिस स्टेशन में तैनात कुछ पुलिस कर्मियों ने गैंगस्टर को पुलिस छापे के बारे में बताया था. आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है, “कानपुर में खुफिया इकाई [दुबे की] आपराधिक गतिविधियों और हथियारों के कब्जे के बारे में जानकारी एकत्र करने में पूरी तरह से विफल रही थी. छापेमारी की तैयारी में कोई उचित सावधानी नहीं बरती गई और किसी भी पुलिसकर्मी ने बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं पहनी हुई थी. उनमें से केवल 18 के पास हथियार थे, बाकी खाली हाथ या लाठियों के साथ गए थे.”

पुलिस वालों पर हो एक्शन

रिपोर्ट में दुबे के साथ कथित रूप से मिलीभगत करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करते हुए कहा गया है, “आयोग नियमित जांच करने के बाद, विशेष रूप से विकास दुबे से संबंधित मामलों के रिकॉर्ड को नुकसान पहुंचाने के लिए दोषी लोक सेवकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश करता है.”

10 जुलाई को दुबे की कथित मुठभेड़ पर, रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस टीम उज्जैन से वापस जा रही थी, जब गायों और भैंसों का एक झुंड सड़क पार करने लगा, जिससे वाहन फिसल कर पलट गया. आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुर्घटना से वाहन में बैठे कुछ पुलिस कर्मियों को "क्षणिक बेहोशी" हुई, जिसके बाद आरोपी ने स्थिति का फायदा उठाते हुए कथित तौर पर एक पुलिसकर्मी की रिवॉल्वर छीन ली और एक कच्चे सड़क पर अपनी बाईं ओर भागने लगा.

आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, दुबे ने पुलिसकर्मी की पिस्तौल से गोली मार दी, जबकि पुलिस ने उसका पीछा किया, जिसमें वर्दी में दो लोग घायल हो गए. रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने आत्मरक्षा में आरोपी पर गोली चलाई, जिससे दुबे गिर गया. आयोग ने कहा कि उसे जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया, आयोग ने कहा कि पुलिसकर्मियों को लगी चोटों को खुद से या मनगढ़ंत नहीं बताया जा सकता था.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×