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विशेषज्ञों का दावा- ग्लेशियर नहीं फटा, UK में भूस्खलन से आई तबाही

सैटेलाइट तस्वीरों में इस ओर इशारा किया गया है कि चमोली में हुए हादसे के पीछे भूस्खलन था.

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उत्तराखंड के चमोली जिले में हुए हादसे में अब तक 25 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं 150 से ज्यादा लोग लापता बताए जा रहे हैं. तपोवन सुरंग में फंसे लोगों को निकालने का काम भी लगातार जारी है. उत्तराखंड में हुए इस बड़े हादसे के पीछे अभी तक ग्लेशियर का टूटना बताया जा रहा था, लेकिन एक्सपर्ट्स ने सैटेलाइट तस्वीरों के जरिये बताया है कि ये मामला लैंडस्लाइड यानी कि भूस्खलन का मालूम पड़ता है.

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द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, जियोलॉजिक एनवायरमेंट में विशेषज्ञता रखने वाले कैलगरी यूनिवर्सिटी के डॉ. डैन शुगर ये पहचान करने वाले शुरुआती लोगों में से एक हैं. डॉ. शुगर ने हादसे के पहले और बाद की तस्वीरों के जरिये बताया है कि अलकनंदा और धौलीगंगा नदियों में आई बाढ़ का कारण भूस्खलन है.

पहले रिपोर्ट्स में कहा गया था कि ये हादसा ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) का नतीजा है. GLOF तब होता है जब ग्लेशियर के पिघलने से पानी जमा हो कर एक प्राकृतिक झील बन जाती है और इसमें दरार पड़ने पर ये टूट जाती है. हालांकि, सैटेलाइट तस्वीरों में बाढ़ से पहले किसी झील की मौजूदगी नहीं दिखती है.

डॉ. शुगर ने एक ट्वीट में बताया कि तस्वीरों में हवा में काफी धूल और नमी भी दिखती है.

विशेषज्ञों को तस्वीरों में ग्लेशियर का एक लटका हुआ टुकड़ा मिला है. कहा जा रहा है कि इसमें दरार पड़ने से भूस्खलन हुआ होगा, जिसके बाद हिमस्खलन हुआ और फिर बाढ़ आई.

दूसरी सैटेलाइट तस्वीरों में भी इस ओर इशारा किया गया है कि चमोली में हुए हादसे के पीछे भूस्खलन था.

IIT रुड़की में असिस्टेंट प्रोफेसर सौरभ विजय ने भी ट्विटर पर सैटेलाइट तस्वीरों के जरिए कहा कि पिछले एक हफ्ते में हुई ताजा बर्फबारी भी हिमस्खलन और बाढ़ का कारण हो सकती है.

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आईआईटी इंदौर में ग्लेशियोलॉजी और हाइड्रोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर, डॉ. फारूक आजम ने भी उस इलाके में झील नहीं होने पर जोर दिया. उन्होंने क्विंट से कहा,

“ग्लेशियल के फटने की घटना बहुत दुर्लभ है. सैटेलाइट और गूगल अर्थ की तस्वीरों में उस इलाके में ग्लेशियल झील नहीं दिखती है, लेकिन इस बात की संभावना है कि इस क्षेत्र में वॉटर पॉकेट हो. ग्लेशियरों के अंदर वॉटर पॉकेट्स हैं, जो शायद इस घटना का कारण बन सकती हैं.”
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द प्रिंट ने अपनी रिपोर्ट में संभावना जताई है कि नंदा देवी ग्लेशियर का एक लटका हुआ हिस्सा त्रिशूली के पास टूटकर अलग हो गया होगा. इसे रॉकस्लोप डिटैचमेंट कहते हैं. इसके कारण करीब 2 लाख स्कॉयर मीटर बर्फ 2 किमी तक नीचे गिर आई, जिससे भूस्खलन हुआ. मलबा, पत्थर और बर्फ हिमस्खलन के रूप में नीचे बह आया. सैटेलाइट तस्वीरों में धूल के निशान देखे जा सकते हैं, ये वही हो सकता है.

कई एक्सपर्ट्स उत्तराखंड में आई त्रासदी पर अपनी राय दी है, लेकिन सरकार की तरफ से अब तक इसपर कोई सफाई नहीं दी गई है कि ये हादसा क्यों हुआ. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि एक्सपर्ट्स इसके पीछे का कारण पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं.

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