“वही एक लड़का था, जो परिवार चलाता था. हमलोग खुश थे. जब से बाबू गया है, हमलोग कर्ज लेकर खा रहे हैं. कर्ज में धंसते जा रहे हैं,” ये कहते हुए सुरेश प्रसाद का गला रुंधने लगता है.
बिहार के गोपालगंज जिले के सोहागपुर गांव के रहने वाले सुरेश प्रसाद अपने बेटे नेमधारी प्रसाद का जिक्र कर रहे थे, जो चार महीने पहले उत्तराखंड में आई तबाही में लापता हो गए थे और अब प्रशासन ने उन्हें मृत घोषित कर दिया है. 35 साल के नेमधारी प्रसाद दो साल से उत्तराखंड के चमोली में हाइड्रो प्रोजेक्ट से जुड़े हुए थे.
बता दें कि 7 फरवरी 2021 को चमोली जिले में भयावह बाढ़ आ गई थी. इस बाढ़ में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में काम कर रहे दर्जनों मजदूर लापता हो गये थे. इसके अलावा करीब 200 लोग लापता हुए थे.
इसी हादसे के बाद से नेमधारी प्रसाद के तीन बच्चे और पत्नी हैं. घर में बुजुर्ग माता-पिता और एक छोटा भाई भी है. लेकिन, छोटा भाई दिमागी रूप से कमजोर है, जिस कारण परिवार का पूरा जिम्मा नेमधारी ही अपने कंधे पर संभाले हुए थे. नेमधारी की मौत के बाद उसके बुजुर्ग पिता सुरेश प्रसाद का दिन ये सोचते हुए गुजरता है कि वह किस तरह अपने बूढ़े कंधे पर तीन बच्चों, बहू, पत्नी और छोटे बेटे की जिम्मेवारी संभालेंगे.
कागजी दुनिया में फंसा मुआवजा
मुआवजा एक उम्मीद थी, लेकिन बीते चार महीनों से ये कागजी प्रक्रिया में ही उलझा हुआ है. सुरेश प्रसाद द क्विंट से कहते हैं, “बेटे के लापता होने की खबर मिलते ही मैं अपने भतीजे के साथ निजी गाड़ी किराये पर लेकर उत्तराखंड गया था. वहां एक महीने रहा. दो लाख रुपए कर्ज हो गया है, जिसका ब्याज दिनों दिन बढ़ रहा है. उसके जाने के बाद 100-50 रुपए रोज उधार लेकर घर में खाना पकता है.”
सुरेश ने द क्विंट को बताया,
“कंपनी और सरकार की तरफ से आश्वासन मिला था कि जल्द मुआवजा मिल जाएगा. डेढ़ महीने पहले अधिकारी भी मेरे घर आये थे और कुछ दस्तावेज मुजफ्फरपुर के कांटी ब्लॉक में जाकर जमा करने को कहा था, लेकिन अभी तक मुआवजा नहीं मिला है,”
नेमधारी प्रसाद के तीनों बच्चे प्राइवेट ट्यूशन करते थे. सुरेश प्रसाद कहते हैं कि उनके पास आय का कोई जरिया नहीं है, इसलिए उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि किस तरह तीनों बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवा पायेंगे.
अपने बुढ़ापे की लाठी गंवा देने वाले सुरेश प्रसाद की तरह बिहार के और भी बुजुर्ग हैं, जो मुआवजे की उम्मीद लगाए बैठे हैं, लेकिन उन्हें भी लंबा इंतजार करना पड़ रहा है.
परिवार ने सोनू को माना मृत, फूस का पुतला बनाकर किया अंतिम संस्कार
सोनू कुमार के बुजुर्ग पिता रामदास यादव भी मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन अभी तक मुआवजे की प्रक्रिया में संतोषजनक प्रगति नहीं हुई है. 22 साल के सोनू कुमार उत्तराखंड के चमोली जिले में पिछले साल दिसम्बर से काम कर रहे थे. चमोली में आई बाढ़ के बाद से वह लापता हैं.
सारण जिले के अफजलपुर निवासी सोनू उत्तराखंड से पहले बंगलुरू में काम करता था. पिछले साल कोविड-19 की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन लगा, तो सोनू काम छोड़कर घर लौट आया था. इसके बाद दिसंबर में उत्तराखंड चला गया था. सोनू की शादी जून में होने वाली थी.
रामदास यादव ने द क्विंट को बताया,
“हादसे के बाद दो हफ्ते तक उसकी कोई खबर नहीं आई, तो हमने उसे मृत मान लिया और फूस का पुतला बनाकर अंतिम संस्कार कर दिया.”
रामदास के दो बेटे हैं. सोनू सबसे छोटा था. “सोनू हमारा सबसे काबिल बेटा था. उसकी कमाई से मैं और मेरी पत्नी गुजारा कर लेते थे. लेकिन, अब जिंदगी चलाने के लिए बुढ़ापे में मुझे मजदूरी करनी होगी क्योंकि हमारे पास खेती लायक जमीन भी नहीं है,”
रामदास कहते हैं. उन्होंने कहा,
“सरकार से हम यही मांग करते हैं कि ऐसी व्यवस्था कर दे कि हमारी जिंदगी किसी तरह कट जाए.”
त्रासदी में मारे गये लोगों व जिनके घर टूट गये थे, उन्हें मुआवजा देने को लेकर दाखिल एक जनहित याचिका पर 7 जून को उत्तराखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हुई.
इसमें सरकार की तरफ से बताया गया कि इस आपदा में 204 लोगों को लापता माना गया है, जिनमें से 50 लोगों की मृत्यु की पुष्टि हुई है. बाद में लापता लोगों को सरकार ने मृत घोषित कर दिया था.
एनटीपीएस ने मारे गये मजदूरों के परिजनों को 20 लाख रुपए बतौर मुआवजा देने की घोषणा की थी. इसके अलावा उत्तराखंड सरकार ने चार लाख रुपए और केंद्र सरकार ने दो लाख रुपए मुआवजा देने का ऐलान किया था.
दो बच्चों के सर से उठ गया बाप का साया
बिहार के पटना, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज और सारण के आधा दर्जन लोग इस बाढ़ में लापता हो गये थे. लेकिन, किसी को भी अब तक मुआवजा नहीं मिला है. इन आधा दर्जन लोगों में शामिल मुजफ्फरपुर के गायघाट निवासी रितेश ठाकुर के परिजन भी मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं. 34 वर्षीय रितेश शादीशुदा थे और उनके दो बच्चे हैं.
उसके भाई रमेश ठाकुर ने द क्विंट से कहा,
“उनक पत्नी को अब तक यकीन नहीं हो रहा है कि वह अब इस दुनिया में नहीं हैं.”
रमेश ने बताया कि हादसे के बाद वह खुद उत्तराखंड गये थे और वहां सारा दस्तावेज जमा किया था. यही नहीं, यहां लौटकर मुजफ्फरपुर जिला कार्यालय में भी कागजात सौंपा, लेकिन मुआवजे को लेकर अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है.
रितेश दिल्ली में गाड़ी चलाते थे. बाद में उत्तराखंड के चमोली में हाइड्रो प्रोजेक्ट स्थल पर गाड़ी चलाने लगे थे. वह आखिरी बार पिछले साल छठ में घर आये थे. रमेश बताते हैं,
“मैंने उत्तराखंड जाकर डीएनए सैंपल भी दिया कि अगर शव मिल जाए, तो पहचान करने में आसानी हो जाए, लेकिन उनका शव नहीं मिला.”
कागजी प्रक्रिया में देरी
चमोली के जोशीमठ थाने के एक पुलिस अधिकारी ने फोन पर द क्विंट को बताया, “लापता लोग जिन जिलों के थे, उन जिलों के अधिकारियों को घटना की जानकारी तत्काल दे दी गई थी.”
सूत्रों के मुताबिक, चमोली के डीएम की तरफ से जरूरी कागजात के लिए संबंधित जिलों के डीएम को 31 मई को ही चिट्ठी भेज दी गई थी. ये चिट्ठी जिला कार्यालयों से जिला आपदा विभागों को हस्तांतरित की गई . लेकिन, आपदा विभाग ने 11 जून को ब्लॉक के सर्किल अफसरों को पत्र भेजा. कई सर्किल अफसरों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर द क्विंट को इसकी पुष्टि की. ऐसे में सवाल उठता है कि जो पत्र 31 मई को ही डीएम के पास आ गया था, उसे सर्किल अफसर तक पहुंचने में 11 दिन कैसे लग गये.
गौरतलब हो कि आपदा से प्रभावित परिवारों से सभी जरूरी दस्तावेज संग्रह करने की जिम्मेवारी सर्किल अफसरों को दी गई है.
मुआवजे में देरी को लेकर द क्विंट ने बिहार आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों व उत्तराखंड के चमोली जिले की की डीएम स्वाति एस भदौरिया को फोन किया, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया. जवाब आने पर स्टोरी अपडेट कर दी जाएगी.
एक जिलास्तरीय अधिकारी ने मुआवजे में देरी की वजह स्पष्ट करते हुए नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि सभी आवेदनों को एक साथ ही भेजा जाएगा और सभी का मुआवजा एकसाथ ही जारी होगा. ऐसे में एक भी पीड़िक के दस्तावेज में कमी होने पर सभी का मुआवजा अटक जाता है.
मुजफ्फरपुर के गायघाट के सर्किल अफसर ज्ञानानंद ने द क्विंट को बताया,
“चमोली डीएम ने दो-तीन दस्तावेज मांगे हैं, जिनमें से एक एफिडेविट भी शामिल है. रितेश के मामले में एफिडेविट लेने में दिक्कत आ रही है क्योंकि उसकी पत्नी अभी भी ये मानने को तैयार नहीं है कि उसके पति का देहांत हो गया है. हमलोग कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह उसकी पत्नी को मनाया जाय.”
कागजी कार्रवाइयों व सरकारी नियम-कानून की पेंचीदगियों के बीच मुआवजे के इंतजार में पीड़ित परिवारों के लिए एक-एक दिन पहाड़ की तरह गुजर रहा है.
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