उत्तराखंड (Uttrakhand) से पिछले कुछ दिनों से जो तस्वीरें सामने आई हैं, उसे देखकर ये यकीन करना मुश्किल होता है कि ये भारत की तस्वीर है. उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में एक बीमार बुजुर्ग महिला को डोली में बैठाकर इलाज के लिए जाते हुए देखा गया तो वहीं एक गर्भवती महिला को 5 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा.
उत्तराखंड में बारिश का मौसम हर साल आफत लेकर आता है, सबसे ज्यादा परेशानी उन महिलाओं को होती है जो गर्भवती हैं और पहाड़ी इलाकों में रहती हैं. कई बार इलाज की कमी में वो दम तोड़ देती हैं.
उत्तराखंड को बने 21 साल बीत चुके हैं, लेकिन स्वास्थ्य सुविधा के मामले में हालात कुछ खास नहीं हैं. दूर पहाड़ी इलाकों में रहने वाली महिलाओं को इलाज के लिए 100 किलोमीटर से भी ज्यादा का सफर तय करना पड़ता है. सरकारी अस्पतालों में महिला डॉक्टर्स की कमी. अल्ट्रासाउंड की सुविधा न होने की वजह से गर्भवती महिलाओं का प्रसव कराना भी मुश्किल हो जाता है.
अस्पताल के बाहर मोबाइल की रोशनी में डिलिवरी
कुछ दिन पहले ही राज्य के सीएम पुष्कर धामी के क्षेत्र खटीमा में इलाज न होने पर गर्भवती हल्द्वानी महिला अस्पताल पहुंची. यहां उसे भर्ती करने के बजाय भगा दिया. दर्द बढ़ने पर अस्पताल के गेट पर खुले में मोबाइल की रोशनी में उसका प्रसव हुआ.
पिछले महीने उत्तराखंड के धनौल्टी में एक गर्भवती महिला को Labor Pain में 6 किमी तक पैदल चलना पड़ा. महिला को जब आधी रात को दर्द शुरू हुआ तो वो अंधेरे में पैदल चलते हुए सड़क तक पहुंची, जिसके बाद धनौल्टी में उसे टैक्सी मिली और फिर उसे मसूरी के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसने बच्चे को जन्म दिया.
पहाड़ी इलाकों में नहीं हैं अस्पताल
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में कई किलोमीटर तक अस्पताल ही नहीं हैं, लोगों को आम बीमारी के भी डॉक्टर मिलना मुश्किल होता है, ऐसे में गर्भवती महिला डिलिवरी के लिए कहां जाएं ये सबसे मुश्किल सवाल है. ज्यादातर पहाड़ी जिलों में अगर अस्पतालों है भी तो वहां डॉक्टर, स्टाफ, दवा और अन्य जरूरी सुविधाओं की कमी है.
ऊपर से जब बारिश होती है, तो आफत और बढ़ जाती है. लैंडस्लाइड की वजह से सड़क मार्ग भी बंद हो जाता है. जिससे किसी के लिए भी कहीं जाना पहाड़ चढ़ने जैसे ही होता है. चमोली जिले के वाण गांव की अनीता देवी प्रेग्नेंट हैं और वो इस बात को लेकर परेशान हैं कि कैसे अपने इलाज के लिए जाएंगीं.
मैं पहली बार मां बनने जा रही हूं, मैं अपने होने वाले नवजात शिशु के लिए हर पल सपने देख रही हूं, लेकिन मुझे अब चिंता सताने लगी है कि हमारे यहां की सड़क कर्णप्रयाग ग्वालदम बंद है. नर्स दीदी ने मुझे जुलाई अंतिम सप्ताह को बुलाया है. मेरे पति सेना में हैं और इन दिनों सियाचिन में तैनात हैंं, वे छुट्टी पर नही आ सकते है. अब मुझे कर्णप्रयाग सरकारी अस्पताल में एक बार जांच करवानी है और उसके बाद मैं कुछ फैसला लूंगी, क्योंकि ये अस्पताल भी रेफर सेंटर है, ऐसे में मैं अपने होने वाले शिशु के लिए पहले ही बेस अस्पताल श्रीनगर में भर्ती होना चाहूंगीं.
वहीं कर्ण प्रयाग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती तेफना की रहने वाली संगीता ने बताया कि
मैं प्रसव पीड़ा में थी, मेरे परिवार के लोग मुझे नंदप्रयाग अस्पताल आये, लेकिन वहां पर सुविधा नहीं है मुझे यहां भेजा गया, लेकिन यहां पर भी स्थिति बेहद खराब है. हम बड़े अस्पताल जाने की सोच रहे हैं, लेकिन सड़क बंद है.
ये दर्द सिर्फ इन दो महिलाओं का नहीं बल्कि उत्तराखंड की सैकड़ों महिलाओं का है, जो मां बनने की खुशी के साथ-साथ इस डर में जीती हैं कि इमरजेंंसी में वो सही वक्त पर अस्तताल में जा पाएंगीं या नहीं.
(इनपुट- मधुसूदन)
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