उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता उत्तराखंड 2024 विधेयक पास हो गया है. विधानसभा में यूसीसी बिल पास होने के बाद उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है.
इस बिल में शादी से लेकर तलाक, जमीन जायदाद के बंटवारे, लिव-इन रिलेशनशिप जैसे मुद्दों को शामिल किया गया है. अब बिल पास हो गया है और राज्यपाल की मुहर के साथ यह कानून बन जायेगा. अब राज्य में शादी ही नहीं लिव-इन रिलेशनशिप के लिए भी कानून है
दरअसल, बिल में लिखा है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले या रहने की योजना बना रहे लोगों को जिला अधिकारियों के साथ खुद को रजिस्टर कराना होगा.
लिव-इन रिलेशनशिप के लिए बिल में क्या लिखा है?
बिल में लिखा है, "लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले पार्टनर चाहे वे उत्तराखंड के निवासी हों या नहीं, धारा 381 की उप-धारा (1) के तहत लिव-इन रिलेशनशिप का स्टेटमेंट रजिस्ट्रार के सामने देना अनिवार्य होगा."
ऐसा करने की प्रक्रिया भी अनिवार्य है, जहां एक साथ रहने वाले पार्टनर को "संबंधित रजिस्ट्रार को लिव-इन रिलेशनशिप का विवरण" जमा करना होगा...
इसके बाद रजिस्ट्रार यह सुनिश्चित करने के लिए "जांच" करेगा कि यह रिश्ता धारा 380 के तहत बने किसी भी श्रेणी के अंतर्गत आता है या नहीं. लिव-इन रिलेशनशिप उन मामलों में रजिस्टर नहीं किए जाएंगे जहां "कम से कम एक व्यक्ति नाबालिग है" और व्यक्ति पहले से विवाहित है या पहले से ही लिव-इन रिलेशनशिप में है.''
अगर कोई पार्टनर एक महीने से ज्यादा वक्त से लिव-इन रिलेशनशिप में हैं और उन्होंने स्टेटमेंट सबमिट नहीं किया है तो उनके लिए सजा का प्रावधान किया गया है- तीन महीने तक की कैद या 10,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों.
साथ ही, रिश्ता खत्म होने की स्थिति में रजिस्ट्रार को अपनी वजहें लिखित रूप में देकर बताना होगा.
NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक एक अधिकारी ने बताया कि लिव-इन रिलेशनशिप की डीटेल्स के लिए एक वेबसाइट तैयार की जा रही है, जिसे जिला रजिस्ट्रार से सत्यापित किया जाएगा. इसके जरिए रिश्ते की वैधता स्थापित करने के लिए जांच की जा सकेगी. इंक्वायरी के लिए पार्टनर्स में से किसी एक या दोनों को बुलाया जा सकता है.
रजिस्टर्ड लिव-इन रिलेशनशिप को खत्म करने के लिए "निर्धारित किए गए फॉर्मेट" में एक लिखित बयान की जरूरत होती है. अगर रजिस्ट्रार को लगता है कि संबंध खत्म करने के वजहें "गलत" या "संदिग्ध" हैं, तो पुलिस इसकी जांच करेगी. साथ में रहने की ख्वाहिश रखने वाले 21 साल से कम उम्र के लोगों के लिए माता-पिता की सहमति भी जरूरी होगी.
ऐसी स्थिति में होगी जेल की सजा...
लिव-इन रिलेशनशिप की सभी जानकारी देने में फेल होने या गलत जानकारी देने पर आरोपी को तीन महीने की जेल और 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा सुनाई जा सकती है. जो कोई भी लिव-इन रिलेशनशिप को रजिस्टर करने में विफल रहता है, उसे अधिकतम छह महीने की जेल और 25 हजार रूपए का जुर्माना या दोनों की सजा सुनाई जा सकती है.
बता दें कि रजिस्ट्रेशन में एक महीने से भी कम की देरी पर तीन महीने तक की जेल और 10 हजार रूपए का जुर्माना या दोनों की सजा सुनाई जा सकती है.
लिव-इन रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चों का क्या होगा?
उत्तराखंड विधानसभा में पेश किए गए समान नागरिक संहिता (UCC) में लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में कहा गया है कि लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को कानूनी मान्यता मिलेगी यानी, वे "दंपति की वैध संतान होंगे."
रिपोर्ट के मुताबिक अधिकारी ने बताया कि इसका मतलब यह है कि "शादी से, लिव-इन रिलेशनशिप में या सेरोगोसी के जरिए पैदा हुए सभी बच्चों के अधिकार समान होंगे. किसी भी बच्चे को 'नाजायज' नहीं माना जा सकता है. सभी बच्चों को विरासत (माता-पिता की संपत्ति सहित) में समान अधिकार होगा.
अगर महिला पार्टनर को छोड़ा तो देना होगा मेंटेनेंस
अगर किसी महिला को उसका लिव-इन पार्टनर छोड़ देता है, तो वो मेंटेनेंस का दावा कर सकती है. पीड़ित महिला उस इलाके के कोर्ट में जा सकती है, जहां लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले आखिरी बार साथ रहे थे.
उत्तराखंड के UCC में क्या है?
समान नागरिक संहिता (UCC) सभी नागरिकों पर लागू कानूनों के एक सेट को संदर्भित करता है और अन्य व्यक्तिगत मामलों के बीच विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने से निपटने के दौरान यह धर्म पर आधारित नहीं है.
उत्तराखंड के लिए समान नागरिक संहिता पिछले साल के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी द्वारा किए गए प्रमुख चुनावी वादों में से एक था.
सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जस्टिस के नेतृत्व में राज्य द्वारा नियुक्त पैनल ने 2.33 लाख लिखित फीडबैक और 60 हजार लोगों की भागीदारी के आधार पर 749 पन्नों का एक डॉक्यूमेंट तैयार किया है.
कुछ प्रस्तावों में बहुविवाह और बाल विवाह पर पूरी तरह बैन, सभी धर्मों की लड़कियों के लिए शादी की एक उम्र और तलाक के लिए एक समान प्रोसेस शामिल है.
उत्तराखंड का UCC 'हलाला' और 'इद्दत' जैसी प्रथाओं पर बैन लगाने की वकालत करता है.
उत्तराखंड सिर्फ एक ऐसा राज्य नहीं है, जो समान नागरिक संहिता पर जोर दे रहा है. बीजेपी शासित राज्य असम ने इस साल के आखिरी में इसी तरह के नियमों को लागू करने की योजना का ऐलान किया है. हालांकि, दोनों ही मामलों में, आदिवासी समुदाय को छूट दी जाएगी.
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