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मलेशिया से लौट रहे भारतीयों के लिए फ्लाइट किराया दोगुना किया गया

कोरोना वायरस से पहले इस फ्लाइट का किराया औसतन 10,000-14,000 रुपये के बीच था

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जब मलेशिया में फंसे भारतीय नागरिकों के पास इंडियन हाई कमीशन के अधिकारी सबसे पहले पहुंचे थे, तो उन्हें बताया गया था कि बेंगलुरु पहुंचने के लिए उन्हें 19,000-22,000 रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं.

कोरोना वायरस से पहले इस फ्लाइट का किराया औसतन 600-800 Malaysian Ringgit (MYR) या 10,000-14,000 रुपये के बीच था. लौटने को बैचैन लोगों ने किराये में बढ़ोतरी को स्वीकार कर लिया.

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हालांकि 19 मई को कुआलालंपुर से बेंगलुरु जाने वाली पहली फ्लाइट से कुछ दिन पहले यात्रियों को मैसेज आया कि उन्हें 1890 MYR या 32,000 रुपये देने होंगे. दुनियाभर में फ्लाइट्स बंद होने से पहले ही नौकरी से निकाले गए और इस्तीफा दे चुके लोगों के लिए इतनी बड़ी रकम देना मुश्किल था.

लोगों ने शिकायत की, कि पैसेंजर लिस्ट किस तरह बनाई गई है, इस पर कुछ साफ नहीं है. लोगों ने दावा किया कि 'जिन लोगों ने ज्यादा रकम दी है, उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी."

लगभग 20,000 रुपये देकर 14 मई को कुआलालंपुर से दिल्ली पहुंचे मनोज सिंह ने कहा, "वो हमें राजा समझते हैं, लेकिन हम वहां तंगी में जी रहे थे. सिर्फ एक ही फ्लाइट थी तो हम किराये को लेकर भी कुछ नहीं कह सकते थे."

'हाई कमीशन या एयर इंडिया की तरह से साफ जानकारी नहीं थी'

यात्रियों ने कहा कि एविएशन कंपनी और भारतीय अधिकारियों से बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला. टिकट के पैसे एयर इंडिया पोर्टल या एयरपोर्ट काउंटर पर देने की बजाय फ्लाइट्स के सेकंड फेज में यात्रियों को एक निर्धारित ट्रेवल एजेंट के पास जाने को कहा गया.

19 मई को बेंगलुरु लौटे राधेश्याम और उनके परिवार ने कहा कि वो बदला हुआ टिकट किराया देखकर चौंक गए थे. राधेश्याम ने कहा, "एक आदमी के लिए किराया 32,000 हो गया था. मुझे अपने परिवार को वापस लाने के लिए लगभग 1 लाख खर्च करने पड़े. हमने इस मामले को एयर इंडिया और हाई कमीशन के सामने उठाया, लेकिन ऐसा लगा कि उन्होंने इससे पल्ला झाड़ लिया हो."

वहीं, यात्रियों ने देखा कि बेंगलुरु की फ्लाइट में ही अहमदाबाद के लिए भी सीट रिजर्व की गई थीं. दोनों शहरों के बीच दूरी करीब 1500 किमी है. एक यात्री ने कहा कि दोनों जगहों के लिए एक ही किराया कैसे हो सकता है. 
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'घर लौटने के लिए कम से कम 50-60,000 की जरूरत'

पिछले तीन महीनों से कुआलालंपुर में बिना नौकरी के रह रहे दीपायन अपनी पत्नी और बच्चे के साथ लौटने वाले हैं. दीपायन का कहना है कि उनके पास पैसे लगभग खत्म हो चुके हैं.

सॉफ्टवेयर इंजीनियर दीपायन ने कहा, "वो एक सीट भी नहीं छोड़ रहे हैं. लिस्ट बनने के बाद भी लोगों को वेटलिस्ट में रख रहे हैं. बिना किसी नोटिस के किराया बढ़ा दिया गया. हम रेंट भी दे रहे थे और अब डबल किराया भी दिया. हम बहुत दिक्कत में हैं."

कुआलालंपुर में रहने वाले लोगों का कहना है कि वहां फंसे कुल लोगों में से कुछ ही को वापस लाया गया है. कोरोना वायरस लॉकडाउन से पहले कई लोगों ने नौकरी छोड़ दी थी और वो वापस आने की उम्मीद में थे.  

कर्नाटक के हुब्बली की मूल निवासी शीतल ने कहा, "मेरे जानने में 300 लोग हैं जो लिस्ट में अपना नाम आने का इंतजार कर रहे हैं. फ्लाइट से 2 घंटा पहले उम्मीद होती है कि टिकट मिल जाएगा. मैंने मार्च से काम नहीं किया है. ज्यादा से ज्यादा मैं एक महीना और काट पाऊंगी अगर मुझे वापस जाने को नहीं मिला."

'कोई सोशल डिस्टेंसिंग नहीं लेकिन PPE मिले'

कुआलालंपुर से लौट रहे लोगों ने बताया कि फ्लाइट्स में कोई सोशल डिस्टेंसिंग नहीं रखी गई, हर सीट पर एक शख्स था. हालांकि यात्रियों को PPE और खाना दिया गया था. मनोज सिंह ने बताया, "हर यात्री को पर्याप्त खाना दिया गया. एक फेस शील्ड, ग्लव्स और मास्क भी मिला था.

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