मशहूर पत्रकार एस निहाल सिंह नहीं रहे. सोमवार को नई दिल्ली में उनका निधन हो गया. पिछले कुछ दिनों से वह किडनी से जुड़ी बीमारी से जूझ रहे थे. 89 साल निहाल सिंह ने नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट में सोमवार शाम आखिरी सांस ली. उनके परिवार में पांच बहनें हैं.
उनकी रिश्तेदार इंदु निहाल सिंह ने बताया कि मंगलवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. एस निहाल सिंह इंडियन एक्सप्रेस के एडिटर रह चुके थे . इसके अलावा वह द स्टे्ट्समैन के चीफ एडिटर और खलीज टाइम्स के भी एडिटर के तौर पर भी काम कर चुके थे. 1987 में उन्होंने इंडियन पोस्ट की नींव रखी थी.इमरजेंसी लगाने पर इंदिरा गांधी का विरोध करने के लिए उन्हें अमेरिका में प्रतिष्ठित इंटरनेशनल एडिटर ऑफ द ईयर के अवार्ड से नवाजा गया था. वह मास्को, लंदन, अमेरिका और इंडोनेशिया में विदेश संवाददाता के तौर पर काम कर चुके थे.
2013 में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया था कि 1965 की लड़ाई के बाद किसी भारतीय अखबार के प्रतिनिधि के तौर पर पाकिस्तान जाने वाले पहले पत्रकार थे. जाने से पहले उन्होंने इंदिरा गांधी से मुलाकात की थी. लेकिन इस मुलाकात में उन्होंने महसूस किया था कि वह पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारने के प्रति निराशावादी थीं. निहाल सिंह ने जब कश्मीर के बारे में बात की तो इंदिरा का जवाब था कि पाकिस्तान के रवैये को देखते हुए इसके समाधान की क्या उम्मीद की जा सकती है?
विदेश मामलों के विशेषज्ञ पत्रकार
एस. निहाल सिंह खलीज टाइम्स के एडिटर के तौर पर घरेलू और विदेशी मामलों पर जम कर लिखा. उन्होंने कई किताबें लिखी हैं. उनमें द रॉकी रोड टु इंडियन डेमोक्रेसी : नेहरू टु नरसिम्हा राव, द योगी एंड द बीयर : स्टोरी ऑफ इंडो-सोवियत रिलेशन्स और द गैंग एंड द 900 मिलियन : अ चाइना डायरी खासे चर्चित रहे.
एस निहाल सिंह ने पत्रकारिता के पेशे की भी समीक्षा की. योर स्लिप इज शोइंग : इंडियन प्रेस टुडे इसी विषय पर लिखी किताब थी. जर्नलिज्म में बिताए दिनों की यादों को उन्होंने अपनी किताब इंक इन माई विन्स में समेटा. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एस निहाल सिंह को महान पत्रकार करार दिया और कहा कि उनमें प्रतिबद्धता और पत्रकारीय नैतिकता कूट-कूट कर भरी थी. मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता का उन्होंने नया मानक स्थापित किया.
इनपुट - पीटीआई
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