हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष और नामचीन कवि विष्णु खरे का बुधवार को निधन हो गया. बीते 12 सितंबर को ब्रेन हेमरेज के बाद उन्हें दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल में भर्ती कराया गया था. इसके बाद से ही उनकी हालत लगातार गंभीर बनी हुई थी. विष्णु खरे ने बीते 30 जून को हिंदी अकादमी का कार्यभार संभाला था.
विष्णु खरे का जन्म 9 फरवरी 1940 को मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में हुआ था. इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में एमए करने के बाद उन्होंने पत्रकारिता से अपने करियर की शुरुआत की थी.
पत्रकारिता से हुई थी साहित्यिक सफर की शुरुआत
शुरुआती दौर में खरे दैनिक अखबार ‘इंदौर समाचार’ में उप-संपादक के तौर पर दो साल रहे. इसके बाद उन्होंने गुजराती कॉलेज, इंदौर, रतलाम, रामपुरा और महू के राजकीय महाविद्यालयों में शिक्षण कार्य भी किया.
साल 1968 के बाद इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटैंट्स ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में अंग्रेजी के एजुकेशन अफसर बने. इसके बाद साल 1976-84 के दौरान केन्द्रीय साहित्य अकादमी के उप-सचिव (कार्यक्रम) रहे. साल 1985 में उन्होंने नवभारत टाइम्स जॉइन किया. वह एनबीटी लखनऊ एडिशन के संपादक भी रहे.
विष्णु खरे को ‘नाइट ऑफ द व्हाइट रोज सम्मान’, हिंदी अकादमी साहित्य सम्मान, शिखर सम्मान, रघुवीर सहाय सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान से नवाजा जा चुका है.
साहित्य जगत में दौड़ी शोक की लहर
विष्णु खरे के निधन की खबर से साहित्य जगत में शोक है. खरे हिंदी साहित्य की प्रतिनिधि कविताओं की सबसे अलग आवाज थे. उन्हें हिंदी साहित्य में विश्व प्रसिद्ध रचनाओं के अनुवादक के रूप में भी याद किया जाता है.
कहो तो डरो कि हाय यह क्यों कह दिया
न कहो तो डरो कि पूछेंगे चुप क्यों हो
सुनो तो डरो कि अपना कान क्यों दिया
न सुनो तो डरो कि सुनना लाजिमी तो नहीं था
देखो तो डरो कि एक दिन तुम पर भी यह न हो
न देखो तो डरो कि गवाही में बयान क्या दोगे
सोचो तो डरो कि वह चेहरे पर न झलक आया हो
न सोचो तो डरो कि सोचने को कुछ दे न दें
पढ़ो तो डरो कि पीछे से झाँकने वाला कौन है
न पढ़ो तो डरो कि तलाशेंगे क्या पढ़ते हो
लिखो तो डरो कि उसके कई मतलब लग सकते हैं
न लिखो तो डरो कि नई इबारत सिखाई जाएगी
डरो तो डरो कि कहेंगे डर किस बात का है
न डरो तो डरो कि हुक़्म होगा कि डर
-----विष्णु खरे
विष्णु खरे की कृतियां
साल 1960 में विष्णु खरे का पहला प्रकाशन टी.एस. इलिअट का अनुवाद ‘मरु प्रदेश और अन्य कविताएं’ हुआ. लघु पत्रिका ‘वयम्’ के संपादक रहे. ‘एक गैर रूमानी समय में’ उनका पहला काव्य संकलन था, जिसकी अधिकांश कविताएं पहचान सीरीज की पहली पुस्तिका ‘विष्णु खरे की कविताएं’ में प्रकाशित हुई.
‘खुद अपनी आंख से’, ‘सबकी आवाज के पर्दे में’, ‘आलोचना की पहली किताब’ उनकी अन्य पुस्तकें हैं.
विष्णु खरे ने दुनिया के महत्वपूर्ण कवियों की कविताओं के चयन और अनुवाद का विशिष्ट कार्य भी किया है, जिसके जरिए अन्तर्राष्टीय परिदृश्य में प्रतिष्ठित विशिष्ट कवियों की रचनाओं का स्वर और मर्म पाठकों तक सुलभ हुआ है.
‘द पीपुल्स एंड द सेल्फ’ खरे के समसामयिक हिन्दी कविता के अंग्रेजी अनुवादों का निजी संग्रह है.
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