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दादरी का सच: आपसी रंजिश पर चढ़ाया गया सांप्रदायिक रंग

चश्मदीद गवाह ने बताया, भीड़ के पहुंचने से पहले ही ली जा चुकी थी अखलाक की जान.

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बीते 28 सितंबर को गोमांस खाने की अफवाह के चलते उत्तर प्रदेश के दादरी में कथित तौर पर मोहम्मद अखलाक की हत्या कर दी थी. अब डेढ महीने बाद इस घटना के पीछे की दूसरी ही कहानी सामने आ रही है - एक ऐसी कहानी जिसमें हत्या के पीछे की वजह कुछ और ही नजर आती है.

दिवाली से एक दिन पहले द क्विंट ने रमेश (बदला हुआ नाम) से मुलाकात की. हालांकि पुलिस ने उन्हें सरकारी गवाह नहीं बनाया है और ना ही उनका बयान दर्ज किया है पर रमेश इस घटना के चश्मदीद गवाह है.

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सच सामने जरूर आएगा : चश्मदीद गवाह

अभी हमें रमेश के घर पहुंचे कुछ सेकेंड्स भी नहीं बीते थे कि पुलिस वहां आ पहुंची, यह जानने के लिए कि हम बिसाड़ा गांव में क्या करने आए हैं. पुलिसकर्मी ने यह बताने में जरा भी देर नहीं की कि उन्होंने मामले को बहुत अच्छी तरह संभालते हुए 72 घंटे के भीतर गिरफ्तारियां कर ली थीं.

करीब आधे घंटे बाद पुलिसकर्मी तो चला गया पर तब तक यह साफ हो चुका था कि चश्मदीद गवाह पर कड़ी नजर रखी जा रही है.

बाहर से शांत नजर आता रमेश अंदर से काफी परेशान था. “पुलिस चाहे कितनी भी कोशिश कर ले सच को दबाने की पर, एक न एक दिन तो सच सामने आएगा ही,” रमेश ने कहा.

उसने यह भी कहा कि 80 फीसदी गांव वालों को पता है कि उस रात अखलाक के घर पर क्या हुआ था.

खास बात यह है कि पुलिस ने अब तक अखलाक के बेटे दानिश का भी बयान दर्ज नहीं किया है. उस रात अखलाक के साथ दानिश पर भी हमला हुआ था और उसे गंभीर चोटें आई थीं. इस समय वह अस्पताल से बाहर है और इस मामले का मुख्य गवाह भी है. पर सवाल यह है कि यूपी की पुलिस ने आखिर उससे इतनी दूरी क्यों बनाई हुई है?

तो आखिर हुआ क्या था?

रमेश ने क्विंट को बताया कि 28 सितंबर की रात 10 बजे के आसपास अखलाक ने उसे फोन कर उससे मदद मांगी थी. बहुत थोड़ी देर के लिए हुई उस बातचीत में अखलाक ने उसे बताया था कि कुछ लोग जबरदस्ती उसके घर में घुस आए हैं और उसे जान से मारने की धमकी दे रहे हैं.

मैंने तुरंत पुलिस को फोन किया और अखलाक के घर के लिए निकल पड़ा. रास्ते में मैंने मंदिर के पुजारी का एलान सुना कि अखलाक और उसके परिवार ने गोमांस खाया है. पुजारी, लोगों को अखलाक के घर के बाहर इकट्ठा होने के लिए कह रहा था. मैं हैरान था. मैंने पिछले 40 सालों में ऐसा कोई एलान पहले कभी नहीं सुना था.
चश्मदीद गवाह रमेश ने क्विंट को बताया

रमेश ने, अखलाक के घर से करीब 50 मीटर दूर किसी जानवर के हिस्से पड़े हुए देखे. बाद में उसने सोचा भी कि आखिर कोई गाय का मांस खाने के बाद बचे हुए हिस्से को अपने घर से इतनी दूर क्यों डालने जाएगा.

जब वह अखलाक के घर पहुंचा तो उसने देखा कि वहां 8-10 लोग खड़े थे. उन लोगों ने उसे बीच में न पड़ने को कहा. अखलाक ने अपने बेटे और बेटी के साथ खुद को ऊपर वाले कमरे में बंद कर लिया था और उसकी पत्नी नीचे के ही एक कमरे में बंद थी.

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उन्होंने अखलाक के कमरे का दरवाजा तोड़ दिया. उसकी जान लेने में उन लोगों को बस 5-10 मिनट लगे थे. भीड़ के अखलाक के घर तक पहुंचने से पहले ही यह सब हो चुका था. मैं उसकी मदद करना चाहता था पर मैं अकेला था. उन्होंने मुझे धमकी दी थी कि अगर मैं बीच में पड़ा तो वे मेरा भी वही हाल करेंगे. यह एक सोची समझी साजिश के तहत की गई हत्या थी. 
चश्मदीद गवाह रमेश ने क्विंट को बताया

आपसी रंजिश?

रमेश की मानें तो अखलाक की हत्या की असली वजह गोमांस खाना या गोहत्या नहीं थी बल्कि गांव के ही संजय सिंह से उसकी आपसी दुश्मनी उसकी मौत की वजह बनी. पुजारी और बाकी लोग भी अखलाक के खिलाफ इस साजिश में शामिल थे.

अखलाक ने मुझे एक-दो बार संजय के बारे में बताया भी था कि वह उसे परेशान कर रहा है. पर मुझे यह नहीं पता कि घटना से ठीक पहले उनके बीच क्या हुआ था. 
चश्मदीद गवाह रमेश ने क्विंट को बताया
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रमेश ने बताया कि स्थानीय नेताओं के साथ अपने संबंधों के चलते संजय पुलिस से बचने में कामयाब रहा था.

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अखलाक के परिवार की गवाही पर अब तक 10 लोगपकड़े जा चुके हैं. रमेश ने बताया कि पकड़े गए 10 लोगों में से 3 बेगुनाह हैं और बाकी 7 लोग और संजय असली दोषी हैं.

पुलिस का इन्वेस्टिगेशन बकवास था. यह जानते हुए भी कि मैं घटनास्थल पर मौजूद था, पुलिस ने मेरी गवाही नहीं ली. उन्होंने मुझे धमकी दी कि अगर मैंने किसी को सच बताया तो मुझ पर झूठे आरोप लगा कर जेल में डाल दिया जाएगा.
चश्मदीद गवाह रमेश ने क्विंट को बताया

रमेश ने कहा कि यूपी पुलिस ने ही अखलाक की हत्या को सांप्रदायिक घटना की तरह पेश किया था.

पुलिस ने ही अपराधियों को पुजारी को छिपाने में भी मदद की. किसी को नहीम पता कि वह कहां है. पुजारी को सच्चाई पता है और इन लोगों को डर है कि वह सब को असली कहानी बता देगा. 
चश्मदीद गवाह रमेश ने क्विंट को बताया
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गौरतलब है कि बिसाड़ा के चौकी प्रभारी सुबोध सिंह को नवंबर की शुरुआत में वाराणसी ट्रांसफर कर दिया गया था. जब द क्विंट ने उनसे बात की तो उन्होंने दावा किया कि सभी गिरफ्तारियां अखलाक की गवाही पर ही हुई हैं. उनहोंने कहा कि इन्वेस्टेगेशन पूरी ईमानदारी से की गई है.

सद्भावना दिवस या तमाशा इत्तफाक से हम उस दिन बिसाड़ा पहुंचे जब पुलिस और प्रशासन ने वहां सद्भावना दिवस आयोजित किया था.

गांव के बिगड़े माहौल को ठीक करने और शांति लाने के लिए सद्भावना दिवस मनाया जा रहा था. जब हम आयोजन में पहुंचे तो देखा कि 100 के लगभग ग्रामीण कबड्डी का खेल देख रहे थे. दस मिनट में रमेश भी वहां पहुंच गया.

बिसाड़ा गांव में 18 मुस्लिम परिवार हैं और उनमें से कोई भी यहां नहीं आया है. मैडम, हमारा गांव ऐसा नहीं था.
चश्मदीद गवाह रमेश ने क्विंट को बताया

हमें अपने घर ले जाते हुए रास्ते में उसने कहा कि यह आयोजन एक बस एक तमाशा है, और कुछ नहीं.

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