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Video: देखिए कैसे बनता है गन्ने से गुड़

चीनी मिलें तो गन्ने से शक्कर बनाती हैं लेकिन देश में बड़े पैमाने पर गन्ने से गुड़ भी बनाया जाता है.

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भारत
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चीनी मिलें तो गन्ने से शक्कर बनाती हैं लेकिन देश में बड़े पैमाने पर गन्ने से गुड़ भी बनाया जाता है.

गुड़ तो हम सब खाते हैं लेकिन गुड़ को बनते हुए देखना भी बहुत खास होता है. खेतों में कई महीने तक फसल लगने के बाद किसान गन्ना काटते हैं, उसकी कोल्हू में पेराई करते हैं और फिर गन्ने के रस को उबालने के बाद गुड़ बनता है.

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चीनी मिलें तो गन्ने से शक्कर बनाती हैं लेकिन देश में बड़े पैमाने पर गन्ने से गुड़ भी बनाया जाता है. जो आज भी पारंपरिक तरीकों से ही बनता है. पश्चिमी यूपी में मेरठ से लेकर बहराइच और पूर्वांचल तक में कई जगहों पर बैलों से कोल्हू चलाकर गन्ना पेरा जाता है फिर बड़ी-बड़ी कढ़ाइयों में उबालकर उसे ठंडा कर गुड़ बनाया जाता है.

खेत से गन्ना काटने के बाद उसके पत्ते अलग कर देते हैं फिर कोल्हू में पेरने से जो रस निकलता है, उसे बड़ी सी कढ़ाई में कई घंटों तक गर्म कर देते हैं, जब वो गाढ़ा हो जाता है तो किसी बड़े बर्तन में निकाल लेते हैं. फिर छोटे-छोटे लड्डू, (जिन्हें भेली कहते हैं) तैयार करते हैं.
तेजन, जमका गांव, सूरतगंज, बाराबंकी
चीनी मिलें तो गन्ने से शक्कर बनाती हैं लेकिन देश में बड़े पैमाने पर गन्ने से गुड़ भी बनाया जाता है.
लोहे के कोल्हू में होती है गन्नों की पेराई
(फोटो: गांव कनेक्शन)
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बाराबंकी के सूरतगंज ब्लॉक का जमका समेत दर्जनों गांवों में आप को दूर से गर्मागर्म गुड़ की खुशबू आने लगेगी. सरसंडा ग्राम पंचायत के जमका गांव में कई कोल्हू लगे हैं. ये गांव बहराइच और बाराबंकी के बार्डर पर घाघरा के बीच में बसा है. जमका गांव के तेजन के पास दो जोड़ी बैल हैं और वो बारी-बारी से पेराई करते हैं.

तेजन अपना तरीका बताते हैं, ''खेत से गन्ना काटने के बाद उसके पत्ते अलग कर देते हैं फिर कोल्हू में पेरने से जो रस निकलता है. उसे बड़ी सी कढ़ाई में कई घंटों तक गर्म कर देते हैं, जब वो गाढ़ा हो जाता है तो किसी बड़े बर्तन में निकाल लेते हैं, उसके बाद गुड को बाल्टी सा नांद आदि में भर कर रखते हैं या फिर छोटे-छोटे लड्डू, (जिन्हें भेली कहते हैं) तैयार करते हैं.''

तेजन तैयार गुड़ को अपने गांव के पास बहराइच के कैसरगंज या बाराबंकी के सूरतगंज में बेचते हैं. यही उनकी जीविका का आधार है.

कोल्हू में गन्ना लगा रहा रुखमीना देवी (35 साल) बताती हैं, “पूरा परिवार मिलकर हम लोग ये काम करते हैं. मैं गन्ना पेर रही हूं तो बेटा कोल्हू के बल हांक रहे हैं. पति ने आग जला रखी है, रस को गर्म करने के लिए इस तरह शाम तक एक दो चढ़ाव (एक कढ़ाई गन्ने के रस का गुड़) उतर जाएगा.”

बैलों से कोल्हू चलाने में समय तो लगता है लेकिन इंजन वाला कोल्हू लगवाने में खर्च काफी आता है ऐसे छोटे किसान बैलों का ही इस्तेमाल करते हैं.

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चीनी मिलें तो गन्ने से शक्कर बनाती हैं लेकिन देश में बड़े पैमाने पर गन्ने से गुड़ भी बनाया जाता है.
गन्ने के रस को गर्म करती बाराबंकी की रुखमीना देवी
(फोटो: गांव कनेक्शन)

उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा गुड़ पश्चिमी यूपी में बनाया जाता है. मेरठ, बिजनौर और मुज्फ्फरपुर में सबसे ज्यादा कोल्हू जिन्हें क्रेशर कहते हैं लगे हुए हैं. एक अनुमान के मुताबिक पश्चिमी यूपी में करीब 3500 क्रेशर हैं. इस बार तो गुड़ चीनी से महंगा बिक रहा है.

(ये स्‍टोरी गांव कनेक्‍शन वेबसाइट से ली गई है)

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