22 साल की रेणुका कोटंबकार शादी के बाद जब नई दुल्हन के रूप में वर्ध से 30 किलोमीटर दूर अपने ससुराल कोटमवाडी आईं तो देखा कि पूरे गांव मे पानी सप्लाई की कोई व्यवस्था नहीं है. पानी की कमी का खामियाजा गांव की छोटी बच्चियों और महिलाओं को भुगतना पड़ता है. कोटमवाडी महाराष्ट्र में सबसे अधिक सूखाग्रस्त क्षेत्रों में से एक है.
1,200 लोगों की आबादी वाले गांव में पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए सिर्फ एक नदी और एक कुआं था. महिलाएं अपने पूरे परिवार के लिए पानी लाने के लिए हर सुबह गांव से लगभग 1.5 किलोमीटर दूर निकटतम नदी तक जाती थीं.
"जब मेरी शादी हुई और मैं गांव आई, तो मुझे एहसास हुआ कि गांव में पानी का कोई स्रोत नहीं है. गांव के बाहर एक नदी थी. मैं अपनी सास और भाभी के साथ पानी लेने जाती थी. नदी 1.5 किलोमीटर दूर थी. मैं सोचती थी कि इसे ठीक करने के लिए कुछ किया जा सकता है़."रेणुका कोटंबकार
महिलाएं हर रोज सुबह जल्दी उठती थीं, पानी लेने के लिए नदी पर जातीं, घर का काम करतीं और नदी से पानी लाने के लिए फिर लौट जाती थीं. बार-बार ऐसा करना पड़ता था. महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान पानी लाने के लिए संघर्ष करना पड़ता था वो भी उस समय जब पूरा गांव सोया रहता था. एक दशक से भी अधिक समय तक रेणुका ने भी सबके साथ-साथ ऐसा ही किया.
लेकिन 15 साल पहले पर्यावरण-योद्धा सरपंच रेणुका ताई(गांव के लोग उन्हें प्यार से बुलाते हैं) ने कोटमवाडी की पहचान बदल दी. जो कोटमवाडी पहले जल संकट के लिए जाना जाता था अब वहां जल की कोई समस्या नहीं है.
रेणुका से रेणुका ताई कैसी बनीं ?
रेणुका ने जब पहली बार जल संपर्क के मुद्दों पर चर्चा के लिए महिलाओं की एक बैठक बुलाई, तो बैठक में कोई महिला नहीं बोली.
मैंने अपने कॉलेज के प्रोफेसर को फोन किया और उनसे पूछा कि मुझे क्या करना चाहिए. बच्चियां और वृद्ध महिलाएं ऐसा कर रही थीं, जैसे कि यह एक आदर्श बन गया हो. अन्य गांवों में ऐसा नहीं था लेकिन जब किसी ने अपना दर्द साझा नहीं किया, तो मैंने उनसे कहा इधर-उधर से पानी लाने में हमें कितना कष्ट हुआ है? फिर सबकी कहानियां सामने आईं
जब हम इकट्ठे होते थे, तो महिलाएं इस बारे में बात करती थीं कि मासिक धर्म के दौरान कैसे उन्हें सबसे पहले जागना पड़ता था, पानी लाने के लिए दो-तीन बार जाना पड़ता था. इससे उन्हें अपमानित महसूस होता था. इतना ही नहीं, छोटी लड़कियों को स्कूल जाने के बजाय पानी में मदद करने के लिए कहा जाता था. मैं सोचता थी मैं क्या करूँ?"रेणुका कोटंबकार
रेणुका ने आगे बताया जब हम इकट्ठे होते थे, तो महिलाएं इस बारे में बात करती थीं कि मासिक धर्म के दौरान कैसे उन्हें सबसे पहले जागना पड़ता था, पानी लाने के लिए दो-तीन बार जाना पड़ता था. इससे उन्हें अपमानित महसूस होता था. इतना ही नहीं, छोटी लड़कियों को स्कूल जाने के बजाय पानी में मदद करने के लिए कहा जाता था. मैं सोचता थी मैं क्या करूं?"
रेणुका पानी के लिए लड़ना चाहती थीं लेकिन उनके पास ना धन था और ना कोई पावर.
मुझे लगा कि मुझे चुनाव में खड़ा होना चाहिए, मैं इसके बारे में बात कर सकती हूं और दूसरों के साथ चीजें साझा कर सकती हूं, लेकिन कुछ करने के लिए, पैसा बहुत महत्वपूर्ण है. प्रभाव बनाने के लिए, वित्त बहुत महत्वपूर्ण है. मैं शिक्षित हो सकती हूं, लेकिन मुझे पैसे कहाँ से मिलते हैं?रेणुका कोटंबकार
गांव की पानी की समस्या का समाधान
पहले दो वर्षों में, उसने अपना अधिकांश समय गांव में छह हैंडपम्प लगाने के लिए संघर्ष करने में बिताया. लेकिन इससे महिलाओं को कोई फर्क नहीं पड़ा.
फिर भी, महिलाएं अपना आधा समय पानी लाने में लगाती थीं. धीरे-धीरे हैंडपंपों से, हमने नल कनेक्शन के लिए धन की मांग की. हम हर घर में नल कनेक्शन चाहते थे. यदि प्रत्येक घर में पानी का कनेक्शन होगा, तो इससे महिलाओं पर बोझ कम होगा.रेणुका कोटंबकार
आज, गांव के हर घर में नल के पानी का कनेक्शन है, जिसे सरकार, विभिन्न गैर सरकारी संगठनों और कुछ कॉरपोरेट्स से मिले धन की मदद से स्थापित किया गया है.
बाद में, उन्होंने NWCYD और वाटर ऐड के साथ महिला जल योजना में सहयोग किया, जहां उन्होंने पानी की गुणवत्ता को समझने के महत्व को सीखा क्योंकि गांव में उसी नल के पानी का उपयोग उपभोग के लिए भी किया जाता था.
गांव में एक बांध भी था जो काम नहीं कर रहा था. रेणुका के नेतृत्व में ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन किया ताकि सरकार नोटिस ले सके और बांध की सफाई के लिए धन जारी कर सके. अब वह काम रहा है.
पानी की उपलब्धता, उनके घरों में ही, महिलाओं के जीवन को बदल दिया, कई और अवसरों के द्वार खोल दिए और उन्हें जीवन में एक नया अवसर दिया - चाहे वह कृषि गतिविधियों में रोजगार हो, या आगे की शिक्षा.
"महिलाएं और बच्चियां अपना आधा दिन पानी लाने में बिताती थीं, इसलिए वे स्कूल नहीं जा सकती थीं. अब पानी है, बच्चे स्कूल जाते हैं, लड़कियों को भी अधिक पढ़ने का समय मिलता है, सिलाई मशीन जैसे कौशल सीखते हैं. उन्हें खेत में काम करने का समय भी मिलता है, वे बड़े शहरों में पढ़ने के लिए जाने लगे हैं. यह सब पानी के कारण संभव हो पाया है"रेणुका कोटंबकार
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