केरल (Kerala) के वायनाड (Wayanad Landslide) में मेप्पाडी के पास मंगलवार, 30 जुलाई को भूस्खलन हुआ, मरने वालों की संख्या (Death Toll) बढ़कर 300 के पार हो गई है और कई लोग गायब हैं, सैंकड़ों के करीब लोग घायल हैं और हजारों लोग इससे प्रभावित हुए हैं. मेप्पाडी, वाइथिरी तालुक में है, जहां मुंडक्कई, चूरलमाला, अट्टामाला और नूलपुझा गांव हैं, ये चारों गांव भूस्खलन का खामियाजा भुगत रहे हैं.
भूस्खलन (Landslide) ने तबाही के भारी निशान छोड़े हैं, इस बीच 13 साल पुरानी माधव गाडगिल (Madhav Gadgil) की रिपोर्ट एक बार फिर चर्चा में आई है जिसने केरल में होने वाली बाढ़, भूस्खलन और बाकी आपदाओं की भविष्यवाणी 2011 में ही कर ली थी. रिपोर्ट ने सिफारिशें भी दी थीं लेकिन उनपर कितना अमल हुआ नतीजा सामने हैं. इस रिपोर्ट में क्या था ये जानते हैं.
"एक नदी दो हिस्सों में बंट गई - इसलिए स्थिति गंभीर है"
माधव गाडगिल की रिपोर्ट पर आने से पहले केरल राज्य आपदा प्रबंधन द्वारा दिए गए ताजा अपडेट पर नजर डालते हैं जिन्होंने बताया कि तबाही का रूप कैसा था? केरल राज्य आपदा प्रबंधन के सदस्य सचिव डॉ शेखर लुकोस कुरियाकोस ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, "फिलहाल मौके पर एनडीआरएफ की टीम, रक्षा दल, नेवी का एक दल, हमने सेना से इंजीनियरिंग टास्क फोर्स असिस्टेंस को भेजने की भी गुजारिश की है. हमारे पास एयरक्राफ्ट भी तैयार हैं और भी तैयारियां पहले से की गई हैं."
उन्होंने बताया कि मलबा इतना ज्यादा था कि उसकी वजह से एक नदी दो हिस्सों में बंट गई:
"जहां पहले से ही रेस्क्यू हो गया वहां किसी की मौत नहीं हुई, हां घरों को नुकसान हुआ है. भूस्खलन जंगल में हुआ है जहां कोई नहीं रहता है लेकिन उसका मलबा नदी में बह कर जमा हो गया और वो वहां जमा हुआ जहां किसी ने सोचा भी नहीं था. नदी भी काफी चौड़ी है तो जहां से नदी मोड़ लेती है वहां से वो दो हिस्सों में बंट गई, तो एक तरह से दो नदियां बहने लगी और इसी वजह से स्थिति इतनी ज्यादा गंभीर बनी हुई है."डॉ शेखर लुकोस कुरियाकोस, केरल राज्य आपदा प्रबंधन के सदस्य सचिव
गाडगिल आयोग की चेतावनी को सरकार ने किया था इनकार
13 साल पहले वेस्टर्न घाट इकॉलजी एक्सपर्ट पैनल (WGEEP) गठित किया गया था जिसकी अध्यक्षता इकॉलजिस्ट माधव गाडगिल ने की थी इसीलिए इसका नाम गाडगिल आयोग भी पड़ा. इस आयोग ने 2011 में केंद्र सरकार को सिफारिशों से भरी 500 पन्नों की एक रिपोर्ट सौंपी थीं. इसमें पारिस्थितिक (Ecologically) रूप से संवेदनशील (Sensitive) क्षेत्रों में अंधाधुंध उत्खनन (खुदाई) और निर्माण के खिलाफ विशेष रूप से चेतावनी दी गई थी.
इसमें पश्चिमी घाट (Western Ghats) के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए कई सिफारिशें दी गई थीं. वेस्टर्न घाट एक पर्वत श्रृंखला है जो केरल सहित छह भारतीय राज्यों में तट के समानांतर चलती है, ये 1600 किमी लंबी है.
रिपोर्ट में जोन के आधार पर कुछ इलाकों को चिन्हित किया गया था जिन्हें सेंसेटिव बताया गया और इन इलाकों में खुदाई और निर्माण गतिविधियों को रोकने की सिफारिश दी. गाडगिल को इसमें कोई संदेह नहीं था कि यदि उनकी रिपोर्ट लागू की गई, तो लोगों को कम से कम हानि और संपत्ति को कम से कम नुकसान होने की संभावना है.
गाडगिल आयोग ने किन इलाकों को बताया था संवेदनशील
गाडगिल आयोग के अनुसार वर्तमान में केरल का प्रभावित इलाका मेप्पाडी संवेदनशील इलाकों की सूची में शामिल हैं, इसके अलावा:
मंडाकोल
पनाथाडी
पैथालमाला
बृह्मगिरी - तिरुनेल्ली
वायनाड
बनासुरा सागर - कुट्टीयाडी
निलांबुर - मेप्पाडी
साइलेंट वेली - न्यू अमरांबलम
सिरुवानी
नेलियमपथी
पीची - वाझानी
अथिराप्पिल्ली - वाझाचल
पूयमकुट्टी - मुन्नार
कर्डामोम हिल्स
पेरियार
कुलाथुपुझा
अगस्त्य माला
2018 में जब केरल में भारी बाढ़ ने तबाही मचाई थी उस दौरान द क्विंट पर छपी रिपोर्ट के अनुसार माधव गाडगिल ने कहा था कि, अवैध तरीके से पत्थर की खुदाई एक और कारण है जिससे केरल में इतनी ज्यादा तबाही हुई. गाडगिल ने कहा कि बड़े पैमाने पर खुदाई से ज्यादा भूस्खलन और मलबा जमा हुआ, जिससे नदियां भी ब्लॉक हुईं. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि आपके पास बहुत बड़ा आपराधिक आर्थिक एनटरप्राइस है. यह केरल में फल-फूल रहा है और इसके कारण विशेष रूप से इडुक्की में भूस्खलन हुआ है.
लेकिन गाडगिल आयोग की रिपोर्ट को सरकार ने कई राजनीतिक कारण देकर खारिज कर दिया था. तब ये भी कहा गया कि इस रिपोर्ट को लागू करने से अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा. दरअसल रिपोर्ट ने सिफारिश की थी कि पश्चिमी घाट का 90 प्रतिशत हिस्सा "नो-गो एरिया" होना चाहिए.
इसके बाद इसी रिपोर्ट पर नए सिरे से काम करने के लिए डॉ के कस्तूरीरंगन आयोग गठित किया गया था. पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार इस रिपोर्ट ने बताया कि पश्चिमी घाट का मोटा-मोटा 37% हिस्सा ही संवेदनशील है. आपको ये भी बता दें कि इतने बड़े बदलाव होने के बावजूद 2021 में कर्नाटक सरकार ने कहा था कि वो डॉ के कस्तूरीरंगन आयोग की सिफारिशों को नहीं मानती और इसके खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे.
हालांकि, 2018 में गाडगिल ने द क्विंट से बातचीत में कहा था कि, "मैं इससे सहमत नहीं हूं कि अर्थव्यवस्था और पर्यावरण दोनों के बीच कोई झगड़ा है. अगर समस्या है तो आपराधिक तरीकों से मुनाफा कमाने का लालच है."
गाडगिल आयोग ने क्या सिफारिशें दी थीं?
मुख्य रूप से गाडगिल आयोग की सिफारिशों में ये शामिल था:
पश्चिमी तट की पूरी पहाड़ी श्रंखला को संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जाना चाहिए.
संवेदनशील क्षेत्र 1 में पानी जमा करने के लिए कोई बांध बनाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
स्थानीय प्रशासन को ज्यादा शक्ति देनी चाहिए
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पश्चिमी घाट को लेकर एक अलग ऑथोरिटी बनाई जानी चाहिए.
खनन: कोई नए लाइसेंस जारी नहीं किए जाने चाहिए, इकोलॉजिकली सेंसेटिव जोन 3 में किए जा सकते हैं लेकिन सख्त जांच करने के बाद.
खदान और रेत खनन: इन दोनों के लिए कोई नए लाइसेंस नहीं दिए जाना चाहिए.
वेस्टर्न घाट में एक रिवर बेसिन से दूसरे रिवर बेसिन में पानी नहीं पहुंचाया जाना चाहिए.
कोई स्पेशल इकोनॉमिक जोन नहीं बनना चाहिए, कोई हिल स्टेशन नहीं बनाया जाना चाहिए और कोई सरकारी जमीन का नीजिकरण नहीं होना चाहिए.
हालांकि सरकार मानती हैं कि इन्हें लागू करने से स्थानीय अर्थव्यवस्था को झटका लग सकता है वहीं गाडगिल इससे इनकार करते हैं. लेकिन एक बात तो साफ है कि केरल की स्थिति साल दर साल बिगड़ती जा रही है, क्योंकि यहां पहले भी भूस्खलन और बाढ़ की स्थिति ने राज्य को हिला दिया था.
गाडगिल आयोग की सिफारिशों को किन आलोचनाओं का सामना करना पड़ा?
विकास से ज्यादा पर्यावरण की चिंता करने के कारण माधव गाडगिल समिति को बड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा. उनकी सिफारिशों को लागू करना प्रैक्टिकल नहीं माना गया.
पूरे पश्चिमी घाट को संवेदनशील बताया गया ऐसे में सवाल उठाए गए कि जिन राज्यों में पश्चिमी घाट हैं उनका विकास कैसे होगा, वहां एनर्जी के क्षेत्र में जो काम हो सकता है वह भी रुक जाएगा.
एक नई ऑथोरिटी की स्थापना का सुझाव देने के लिए भी आलोचना की गई, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि पर्यावरण को मौजूदा कानूनों के तहत भी संरक्षित किया जा सकता है.
अगर सिफारिशों को लागू किया जाए तो राजस्व का काफी नुकसान होगा. लेकिन आयोग ने इसके लिए कोई समाधान नहीं दिया है.
रिपोर्ट में पश्चिमी घाट में बांधों के निर्माण के खिलाफ सिफारिश की गई है. लकिन यह देश की बढ़ती एनर्जी जरूरतों के बीच बिजली क्षेत्र के लिए एक बड़ा झटका होगा.
रिपोर्टों के खिलाफ सबसे ज्यादा आलोचना और विरोध मुख्य रूप से रेत खनन और खुदाई करने वाली इंडस्ट्री की और से आया. केरल के किसानों में यह डर पैदा किया गया कि रिपोर्ट उनके खिलाफ है कि इन सिफारिशों के लागू होने से उनकी आजीविका खत्म हो जाएगी.
कस्तूरीरंगन आयोग की सिफारिशें और उसकी आलोचनाएं
जब केंद्र सरकार गाडगिल रिपोर्ट से सहमत नहीं हुई तो इसकी समीक्षा और बदलाव करने के लिए 10 सदस्यों की समिति बनाई गई जिसकी अध्यक्षता डॉ के कस्तूरीरंगन ने की, बाद में इन्हीं की रिपोर्ट को सरकार ने लागू किया.
सिफारिशें:
पश्चिमी घाट का 37% हिस्सा (60000 sq. km) को ही संवेदनशील क्षेत्र में शामिल किया गया.
इस क्षेत्र में खनन, खुदाई, रेत खनन पूरी तरह से प्रतिबंधित होना चाहिए.
संवेदनशील क्षेत्र में जो भी खनन गतिविधियां जारी हैं वो लीज खत्म होने के साथ बंद हो जानी चाहिए या तो 5 साल बाद उसे बंद कर दिया जाना चाहिए (जो भी पहले हो).
डीटेल स्टडी के बिना, किसी भी थर्मल पावर प्रोजेक्ट या हाईड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट को आगे बढ़ने की मंजूरी नहीं दी जाएगी.
ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाली इंडस्ट्री संवेदनशील क्षेत्र में प्रतिबंधित रहेंगी.
123 गावों को संवेदनशील क्षेत्र में शामिल किया गया.
आलोचनाएं:
संवेदनशील इलाकों को चिन्हित करने के लिए एरियल सर्वे और रिमोट सेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल किया. जमीनी हकीकत की जांच किए बिना इन तकनीकों का इस्तेमाल करने से रिपोर्ट में कई एरर हैं.
ग्राम सभाओं के बजाय अधिकारियों (नौकरशाहों) और वन अधिकारियों के पास ज्यादा शक्तियां हैं.
आशंका जताई गई कि अगर कस्तूरीरंगन रिपोर्ट लागू हुई तो किसान बेदखल हो जाएंगे.
यह रिपोर्ट खनन और खुदाई को बढ़ावा देती है, जो पर्यावरण के लिए नुकसान है. इससे पानी की कमी होगी, प्रदूषण बढ़ेगा.
रिपोर्ट में गलत मेथड का इस्तेमाल किया गया, जिसकी वजह से संवेदनशील इलाकों में कई गांव शामिल हो गए जबकि वे केवल रबर के बागान हैं और वन भूमि नहीं.
रिपोर्ट इस आधार पर भी गलत है कि कई ऐसे इलाकों को संवेदनशील बता दिया जो वास्तव में संवेदनशील नहीं हैं और उन्हें शामिल नहीं किया गया जो वास्तव में संवेदनशील इलाकें हैं.
दोनों रिपोर्ट को बैलेंस करना आसान नहीं दिखता, बीच का रास्ता तो निकलना चाहिए था क्योंकि जिस कस्तूरिरंगन की रिपोर्ट को लागू किया गया उसे एंटी एनवायर्मेंट और एंटी डेवेलपमेंट - दोनों बता दिया गया.
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