वैसे तो ममता बनर्जी के मिजाज से सभी वाकिफ हैं कि वो किसी नतीजे की परवाह नहीं करती हैं. अगर करतीं, तो शायद बंगाल का सियासी रंग 'लाल' से 'हरा' नहीं हो पाता. दीदी ने एक बार फिर वही तेवर दिखाया है. इस बार तो उन्होंने केंद्र सरकार के उस 'अश्वमेध के घोड़े' को ही पकड़ लिया है, जिसका इस्तेमाल विपक्षी पार्टियों को काबू में रखने के लिए किए जाने का आरोप लगता रहा है.
अब 'घोड़े' (CBI) को बांधने का मतलब तो साफ है कि लड़ाई आर-पार की होगी. लेकिन ये अचानक की कोई घटना नहीं है, बल्कि इस मौके का इंतजार तो पहले से था.
इस आंदोलन का क्या होगा अंजाम
3 फरवरी की रात पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में वो सियासी घटनाक्रम हुआ, जिसके बारे में सोचना भी राजनीतिक पार्टियां के लिए बड़ी बात होगी. जिस सीबीआई के नाम पर बड़े-बड़े राजनीतिक दिग्गजों की घिग्घी बंध जाती है, अफसरों के हाथ-पांव फूलने लगते हैं, उसी सीबीआई को ममता की पुलिस ने लॉकअप में डाल दिया.
सीबीआई की टीम सारदा चिटफंड घोटाले मामले की जांच के लिए कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के यहां पहुंची थी. लेकिन सीबीआई के इस कदम ने दीदी को नाराज कर दिया. नाराज भी कुछ इस कदर कि वो इस घटना को लेकर धरने पर बैठ गईं.
सीबीआई के लिए ममता बनर्जी ने पहले ही पश्चिम बंगाल के दरवाजे बंद कर दिए थे. ममता ने बता दिया था कि वो देश के दूसरे नेताओं की तरह सीबीआई से डरने वाली नहीं है. उन्होंने अब इसे जता भी दिया है.
लोकसभा चुनाव के ठीक पहले ममता बनर्जी के आक्रामक धरने ने सियासी बवंडर खड़ा कर दिया. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि केंद्र सरकार के खिलाफ दीदी के इस कदम का अंजाम क्या होगा? वो भी तब, जब सीबीआई के साथ सुप्रीम कोर्ट भी ममता के खिलाफ हो सकता है.
दरअसल सारदा चिटफंड घोटाले में सीबीआई की ये जांच सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हो रही है. बावजूद इसके, ममता ने सीबीआई अफसरों को डिटेन करने की हिम्मत दिखाई. जानकार बताते हैं कि ममता बनर्जी का ये कदम उनके लिए जोखिम भरा साबित हो सकता है. इस कदम के बड़े फायदे और बड़े नुकसान हो सकते हैं.
पूरी हो सकती है महागठबंधन की धुरी बनने की चाहत
पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 34 सीटें अकेले टीएमसी के पास हैं. बीजेपी, कांग्रेस और AIADMK के बाद ममता बनर्जी की टीएमसी देश की चौथे नंबर की सबसे बड़ी पार्टी है. सीबीआई के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार कर ममता बनर्जी ने एक तीर से दो निशाने लगाए हैं.
ममता ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोलकर गोलबंद हो रहे गठबंधन की धुरी बनने की कोशिश भी की है. यह भी कह सकते हैं कि ममता ने नरेंद्र मोदी के मुकाबले खुद को खड़ा करने की कोशिश की है.
जानकार बताते हैं कि सियासी बिसात पर ममता अपने हर मोहरे बेहद सोच-समझकर चल रही हैं. आर-पार की इस लड़ाई में अगर पश्चिम बंगाल की सरकार गिर भी जाती है, तो ममता के लिए ये एक बड़ा मौका होगा. मौका बंगाल की जनता के सामने खुद की 'शहादत' साबित करने का.
आगामी लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी केंद्र सरकार के खिलाफ बंगाल में इमोशनल कार्ड खेल सकती हैं. साथ ही जनता के बीच वे ये जताने की कोशिश करेंगी कि बंगाल की एक चुनी हुई सरकार के खिलाफ बीजेपी ने साजिश की.
ममता को चुकानी पड़ सकती है आंदोलन की कीमत
ममता बनर्जी के लिए ये आंदोलन आत्मघाती भी साबित हो सकता है. अगर पहले से ताक में बैठी बीजेपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट का जरा भी साथ मिला, तो केंद्र सरकार पश्चिम बंगाल में धारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन भी लगा सकती है. इसके पूरे चांस हैं, राजनीति के जानकर इससे इनकार नहीं कर रहे हैं.
टीएमसी से सांसद और पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी का कहना है, "बीजेपी श्रीराम की बात करती है और उसी की राजनीति. सब जानते हैं कि राम को 'मर्यादा पुरुषोत्तम' कहा जाता है. लेकिन बीजेपी में कौन-सी मर्यादा बची है? इसे सिर्फ तो यही कहेंगे, 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि.”
अब टीएमसी इस लड़ाई को मर्यादा के चश्मे से देख रही है, तो बंगाल पर 35 सालों तक राज करने वाला लेफ्ट इसे सिर्फ एक 'पॉलिटिकल ड्रामा' मान रहा है. सीपीएम सांसद मोहम्मद सलीम का कहना है:
ये पॉलिटिकल रियलिटी शो है, जिसमें सब कुछ है, टीवी चैनलों को भी फ्री में फुटेज मिल रहा है. इस आंदोलन ने कुछ भी नहीं निकलने वाला है.मोहम्मद सलीम, सीपीएम सांसद
बंगाल में सीबीआई को लेकर जिस तरह का सियासी हड़कंप मचा है, उससे राष्ट्रपति शासन की संभावना कोई बड़ी बात नहीं है. बीजेपी भी इस मौके को छोड़ना नहीं चाहेगी, क्योंकि हिंदी पट्टी में बीजेपी का परफॉर्मेंस खराब होता जा रहा है.
एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मिली हार यूपी में एसपी-बीएसपी के गठबंधन, प्रियंका गांधी की इंट्री ने बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है. ऐसे में 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल से बीजेपी ने बड़ी उम्मीदें पाल रखी हैं.
2014 लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में बीजेपी का ग्राफ बढ़ा है. यहां बीजेपी ने 17 फीसदी वोटों के साथ लोकसभा की 2 सीटें हासिल की थीं. हालांकि विधानसभा चुनाव में बीजेपी कुछ खास नहीं कर पाई. बीजेपी को सिर्फ 10 फीसदी वोट ही मिले.
लेकिन इसके बाद बीजेपी ने निकाय और पंचायत चुनाव में टीएमसी कार्यकर्ताओं की दबंगई के बाद भी बेहतर प्रदर्शन किया. मौजूदा सियासी तस्वीर को देखें, तो बीजेपी ने वामदल और कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टियों को भी पीछे छोड़ दिया है. बंगाल में पांव जमाने की कोशिश में लगी बीजेपी हर दांव आजमा रही है.
आलम ये है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित तमाम बड़े नेता यहां पर आए दिन डेरा डाले रहते हैं. हाल के दिनों में नरेंद्र मोदी ने भी ताबड़तोड़ रैलियां कीं. दीदी ने बीजेपी की रैलियों पर अंकुश लगाने के लिए कुछ जगहों पर हेलिकॉप्टर लैंडिग पर रोक लगा दी थी.
3 फरवरी को भी पश्चिम बंगाल के बालूरघाट रैली के लिए योगी आदित्यनाथ के हेलिकॉप्टर को एनओसी नहीं मिला था. योगी ने फोन से ही सभा की. इस घटना को कुछ घंटे भी नहीं बीते थे कि सीबीआई ने दीदी के खास कहे जाने वाले पुलिस कमिश्नर के यहां धावा बोल दिया. अभी ये अंदाजा लगाना मुश्किल है कि ये बवंडर कहां जाकर थमेगा.
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