"हर बार जब मेरा फोन बजता है तो मेरा दिल बैठ-सा जाता है और फोन इसी उम्मीद से उठाती हूं कि कोई बुरी खबर न हो. यह दूसरी बार है जब मेरे पति ने भारत सरकार को SOS भेजा है. क्या सरकार को अपने नागरिकों की परवाह नहीं है? सरकार उन्हें कब बचाएगी?"
ये सवाल पश्चिम बंगाल (West Bengal) के कलिम्पोंग जिले के चिबो-पुरबंग की निवासी अंबिका तमांग पूछ रही हैं.
पिछले पांच महीनों से अंबिका के पति उरगेन तमांग रूसी सेना (Russian Army) में फंसे हुए हैं और यूक्रेन के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं. 45 साल की अंबिका हाउसवाइफ हैं और अपनी दो बच्चियों के साथ चिबो-पुरबंग में रहती हैं. बच्चियां स्कूल में पढ़ती हैं. अंबिका के पति घर के अकेले रोजी-रोटी कमाने वाले शख्स है.
अंबिका कहती हैं, "हमारी दो बेटियां डरी हुई हैं कि वह (बच्चियों के पिता) विदेश में फंसे हुए हैं. वे मुझसे पूछती रहती हैं कि वे अपने पिता से कब मिल सकेंगी लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं है."
'वह जंग नहीं लड़ना चाहते हैं'
अंबिका ने द क्विंट को बताया कि 40 वर्षीय उरगेन तमांग 2018 तक भारतीय सेना में सेवारत थे. उसके बाद वह पिछले साल तक गुजरात में एक निजी कंपनी में सुरक्षा गार्ड की नौकरी कर रहे थे.
अंबिका ने कहा कि वह अपने पति की रूस जाने बारे में बहुत कम जानती थीं. वह कहती हैं, "उन्होंने मुझे सिर्फ इतना बताया कि वह काम करने के लिए विदेश जाना चाहता है और उन्हें देश से बाहर ले जाने के लिए सिलीगुड़ी में एक एजेंट ने 6 लाख रुपये लिए थे."
अंबिका कहती हैं,
"वह दिसंबर [2023] में एक बार गुजरात से घर आए थे लेकिन शायद ही उन्होंने हमारे साथ समय बिताया क्योंकि वह अपने डाक्यूमेंट्स के लिए इधर-उधर भाग-दौड़ कर रहे थे. उन्होंने एजेंट की ओर से मांगे गए पैसे की व्यवस्था की और फिर उन्होंने बताया कि वह रूस जा रहे हैं. उन्होंने इस साल 19 जनवरी को दिल्ली और फिर रूस के लिए उड़ान भरी."
अंबिका ने कहा कि तमांग ने उन्हें बताया था कि सुरक्षा गार्ड के रूप में वह जो पैसा कमाते हैं और सेना से मिलने वाली पेंशन उनके परिवार के लिए काफी नहीं हैं.
वह अपनी बेटियों के लिए ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाना चाहते हैं.अंबिका तमांग
तमांग भी इस क्षेत्र के कई अन्य लोगों की तरह ही साल 2000 के बाद की सरकार की शॉर्ट सर्विस कमीशन योजना के तहत भारतीय सेना में शामिल हुए थे.
इस योजना के तहत योग्य पुरुष और महिलाएं कम से कम 10 साल तक सेना में सेवा दे सकते थे और उन्हें या तो नौकरी छोड़ने, स्थायी तौर पर शामिल होने या चार साल की सेवा अवधि बढ़ाने का विकल्प मिलने की गुंजाइश रहती थी. अंबिका ने कहा कि उनके पति ने स्थायी तौर पर सेना में शामिल होने के लिए आवेदन नहीं किया था.
अंबिका बताती हैं कि तमांग के रूस जाने के बाद 22 मार्च को वीडियो-कॉल पर उनसे बात हुई और तब तमांग ने बताया था कि वह अगले दिन जंग के मोर्च पर होंगे.
उन्होंने कहा था कि वह जंग के मोर्चे पर नहीं जाना चाहते हैं और वापस घर आना चाहती है. उन्होंने अधिकारियों से वापस देश लौटने में मदद करने की गुहार भी लगाई है.अंबिका तमांग
आखिरी बार अंबिका ने तमांग से 12 मई को बात की थी. अंबिका कहती हैं, "आजकल वह बहुत कम देर के लिए फोन करते हैं. वह कॉल बस ये बताने के लिए करते हैं कि वह सुरक्षित हैं."
भर्ती कराने वाले एजेंटों ने ठगा
तमांग ने सरकार को भेजे पहले एसओएस मैसेज में दावा किया कि भर्ती एजेंटों ने उनके साथ धोखा किया है. 23 मार्च को दार्जिलिंग के सांसद राजू बिस्टा ने उनके मैसेज को साझा किया था. तमांग ने आरोप लगाया कि जनवरी के करीब सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल में) से एक एजेंट ने उन्हें दिल्ली भेजा जहां एक अन्य एजेंट उनसे मिला और मास्को जाने के लिए टिकट और वीजा दिया.
मैं जनवरी में मास्को पहुंचा, एक नेपाली/गोरखा एजेंट ने मेरी अगवानी की और एक होटल में रखा. अगले दिन तमिलनाडु का एक और एजेंट मुझसे मिला और मुझे आठ से नौ दिनों तक एक होटल में रखा. फिर मुझे सेना के एक शिविर में भेज दिया गया और वहां 17-18 दिनों तक रखा गया और एक बॉन्ड पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया.उरगेन तमांग
तमांग ने आरोप लगाया कि उन्हें एक 'जंगल कैंप' में ले जाया गया जहां उन्हें लगभग 10-12 दिनों तक गोला-बारूद की ट्रेनिंग मिली.
अपने वीडियो में उरगेन तमांग ने कहा, "मुझे तब बताया गया था कि मुझे जंग के मोर्चे पर भेजा जा रहा है, मैं भारत सरकार से अपील करता हूं कि मुझे यहां से बाहर निकाला जाए."
तमांग की पत्नी ने सांसद राजू बिस्ता ने संपर्क किया. इसके बाद उन्होंने स्थानीय मीडिया को बताया कि उन्होंने तमांग को बचाने में मदद के लिए विदेश मंत्रालय और रूस में भारतीय दूतावास सहित संबंधित अधिकारियों से संपर्क किया है.
विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?
अंबिका ने कहा कि अप्रैल के पहले सप्ताह में उनके पति ने उन्हें फोन किया और अधिकारियों से उन्हें बचाने की अपील करने का अनुरोध किया. अंबिका कहती हैं, "वह फिर से अपनी बेटियों के साथ रहना चाहते हैं."
20 मार्च को उन्होंने अपनी पत्नी को मैसेज भेजा जिसमें केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करने और उन्हें बचाने का अनुरोध किया गया था.
भारत सरकार की ओर से यूरेशिया डिवीजन के अतिरिक्त सचिव चरणजीत सिंह ने तब कहा था कि सरकार उनके मामले को आगे बढ़ा रही है.
अतिरिक्त सचिव चरणजीत सिंह ने 12 अप्रैल को सासंद राजू बिस्ता को भेजे एक ईमेल में कहा था, "मॉस्को स्थित भारतीय दूतावास ने उनकी (तमांग) जल्द वापसी सुनिश्चित करने के लिए संबंधित रूसी अधिकारियों के समक्ष यह मामला उठाया है."
पिछले हफ्ते, तमांग ने एक और संदेश भेजा क्योंकि भारतीय अधिकारी अब तक उन्हें रूस से छुड़ाने में असमर्थ रहे हैं. अपनी पत्नी को भेजे गए एक वॉयस मैसेज में उन्होंने कहा,
"मैंने अपने रूसी मित्र से यह संदेश भेजने का अनुरोध किया है. मैं अभी रूसी सेना की 144वीं ब्रिगेड की दूसरी बटालियन में तैनात हूं."
विदेश मंत्रालय ने पहले कहा था कि मॉस्को में भारतीय दूतावास के ध्यान में लाए गए हर मामले को रूसी अधिकारियों के साथ-साथ दिल्ली में रूसी दूतावास के साथ उठाया गया था. इस बीच, विदेश मंत्रालय ने तमांग को बचाने के उनके प्रयासों पर क्विंट के सवालों का जवाब नहीं दिया है. प्रतिक्रिया मिलने पर इस स्टोरी को अपडेट किया जाएगा.
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