ADVERTISEMENTREMOVE AD

WB: मुर्शिदाबाद में 14 नवजात की मौत पर कोई जवाब क्यों नहीं दे रहा मेडिकल कॉलेज?

Murshidabad Medical College प्रशासन ने तमाम वॉर्ड्स में पत्रकारों की एंट्री पर रोक लगा दी है.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

पश्चिम बंगाल (West Bengal) का 'मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज' इन दिनों देशभर में अपनी लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए चर्चा में है. 6 से 8 दिसंबर के बीच 14 नवजात शिशुओं की मौत के मामले में अब तक मेडिकल कॉलेज प्रशासन की तरफ से कोई साफ जवाब नहीं आया है. हालांकि एक्सपर्ट डॉक्टरों की तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई गई है. वहीं अस्पताल प्रशासन ने तमाम वॉर्ड्स में पत्रकारों की एंट्री पर रोक लगा दी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मेडिकल कॉलेज के अधिकारी नवजात शिशुओं की मौत के मामले में प्रतिक्रिया देने से भी परहेज कर रहे हैं. बता दें मृत शिशुओं में से 3 का जन्म मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ही हुआ था. वहीं, अन्य बच्चों को दो अलग-अलग अस्पतालों से मुर्शिदाबाद मेडिकल में रेफर किया गया था.

परिजनों ने क्या कहा?

मृतक शिशु के नाना सुदिप्तो मंडल अपनी भीगी पलकों के साथ कहते हैं कि हमने काफी मिन्नतें की थीं, तब जाकर ऊपर वाले ने सुनी और मेरी बेटी को एक बच्चे से नवाजा. मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज की खराब स्वास्थ्य व्यवस्था ने ना सिर्फ हमारे घर की खुशियां छीन लीं, बल्कि मेरी बेटी को भी सदमे में डाल दिया.

जन्म के बाद छठे दिन मेरे नाती की मौत हो गई. अगर यह कोई आम अस्पताल होता तो अलग बात थी लेकिन इतने बड़े मेडिकल कॉलेज में ऐसी घटना होना डॉक्टरों की लापरवाही का ही नतीजा है. अगर मैं इस घटना को हत्या कहूं, तो गलत नहीं होगा.

मृत बच्चे की नानी पुर्णिमा मंडल अपने घर के आंगन में बैठकर सब्जियां काटते हुए कहती हैं कि हमें कोई जानकारी ही नहीं मिल रही थी. यहां तक कि हमें वॉर्ड के अंदर भी नहीं जाने दिया जाता था. कर्मचारियों से कुछ भी पूछने पर वे हमें डांट देते थे, पूरी तरह से यह अस्पताल प्रशासन की लापरवाही है.

"जांच बेहद जरूरी"

मृत बच्चे के पिता उत्पल मंडल बताते हैं कि यह बेहद जरूरी है कि मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज की जांच होनी चाहिए, यहां रिश्वतखोरी बढ़ गई है. अस्पताल में जो दवाईयां फ्री में मिलनी चाहिए, उसके लिए कर्मचारियों को पैसे देने पड़ते हैं, फिर हमें दवाईयां मिलती हैं. मेरा बच्चा आज डॉक्टरों की लापरवाही की वजह से इस दुनिया में नहीं है. अगर हमने अपनी आवाज नहीं बुलंद की तो वह दिन दूर नहीं है, जब ऐसी घटनाएं फिर से होंगी.

रिमी मंडल अपने बच्चे की मौत के बाद से कुछ कहने की स्थिति में नही हैं, वो सदमें में जा चुकी हैं. इस बारे में उनसे पूछने पर वो खामोश थीं, उनके पिता ने बताया कि बेटी को सदमा लग गया है. वह कुछ दिनों से चुपचाप रहती है.

मेडिकल कॉलेज प्रशासन का क्या कहना है?

मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज के वॉइस प्रिंसिपल और मेडिकल सुप्रीटेंडेंट अमित दाऊ कहते हैं कि प्राथमिक जांच के लिए कमेटी का गठन किया गया है. प्रारंभिक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि इनमें से ज्यादातर बच्चे कुपोषित थे. एक बच्चे को दिल से जुड़ी गंभीर बीमारी थी.

जंगीपुर हॉस्पिटल से रेफर किए गए मामलों पर सवाल पूछे जाने पर अमित बताते हैं कि जंगीपुर के हॉस्पिटल में रिनोवेशन का काम हो रहा है, इस वजह से वहां के सारे मामले यहां रेफर किए जाते हैं. हमने उन्हें बचाने की पूरी कोशिश की लेकिन ज्यादातर बच्चे या तो कुपोषित या फिर अंडरवेट थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
मृतक शिशुओं के परिजनों को मुआवजा मिलने वाले सवाल पर अमित दाऊ ने कहा कि यह राज्य की टीम तय करेगी. गौरतलब है कि स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रभार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पास है.

एक मृतक शिशु के नाना सुदिप्तो मंडल के मुताबिक वॉर्ड में 54 बच्चों को रखने की क्षमता थी लेकिन 100 बच्चों को एडमिट किया गया था.

परिजन कर रहे मुआवजे की मांग

जंगीपुर के अलीमुद्दीन कहते हैं कि जिस वॉर्ड में हमारा बच्चा एडमिट था, वहां इतनी गंदगी थी कि मत पूछिए. हमें वॉर्ड में प्रवेश नहीं करने दिया जाता था. हमें इसकी जानकारी ही नहीं मिल रही थी कि हमारे बच्चे के साथ क्या हो रहा है. कम-से-कम हमें मुआवजा तो मिलना चाहिए था मगर ना तो मेडिकल कॉलेज प्रसासन ने और ना ही सरकार के किसी प्रतिनिधि ने इस बारे में हमसे बात की.

"प्रेग्नेंसी के वक्त कहां जाएं?"

अलीमुद्दीन की पत्नी मुनमुन कहतीं हैं कि हमें फोन कर बताया गया कि 'आपका बच्चा नहीं रहा.' मौत का कारण पूछने पर अस्पताल प्रशासन फोन डिस्कनेक्ट कर देते थे. आज भी हमें विश्वास नहीं हो रहा है कि हमारा बच्चा हमारे बीच नहीं है.

स्वास्थ्य व्यवस्था पर चिंता जाहिर करते हुए अलीमुद्दीन कहते हैं कि

आने वाले वक्त में मेरी पत्नी की प्रेग्नेंसी के वक्त हम कहां जाएं? यह मेडिकल कॉलेज हमारे इलाके में सबसे बड़ा है. जब जान की रक्षा करने वाले ही भक्षक बन जाएं तो क्या कहना.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

"हेल्प डेस्क है मगर मदद नहीं मिलती"

मेडिकल कॉलेज कैंपस में प्रवेश करने पर एक आम चीज दिखी वो यह कि भारी संख्या में मरीज मदद मांगने के लिए इधर-उधर जा रहे थे मगर सही जानकारी देने वाला कोई नहीं था. मदद के लिए उनके सवाल थे- इमरजेंसी वॉर्ड किधर है? अपॉइंटमेंट कहां होता है? दवाईयां किधर मिलती हैं? जब हमने हेल्प डेस्क ढूंढना शुरू किया तो हेल्प डेस्क के पास मरीजों को नहीं आने दिया जा रहा था.

एक स्थानीय पत्रकार ने बताया कि जब से मेडिकल कॉलेज में नवजात शिशुओं की मौत हुई है, तब से कुछ जगहों पर लोगों को नहीं जाने दिया जा रहा है. सबसे गौर करने वाली बात ये है कि इन्होंने पत्रकारों की एंट्री पर रोक लगाई है.

"लोग फूट-फूटकर रो रहे थे"

मेडिकल कॉलेज परिसर में एक चीज और आम दिखी, वो यह कि लोग फूट-फूटकर रो रहे थे. जनरल वॉर्ड के बाहर कुछ महिलाएं फूट-फूटकर रो रही थीं. उनसे पूछने पर पता चला कि उनकी बेटी की मौत हो गई है. माहौल गमगीन था, तो कुछ पूछना उचित नहीं लगा मगर मृतक के ही एक परिजन ने बताया कि बिटिया को कुछ भी तो नहीं हुआ था, जान ले ली इन लोगों ने.

झारखंड से आए एक मरीज मुकेश झा बेहद परेशान नजर आ रहे थे. पूछने पर उन्होंने बताया कि बंगाल के तारापीठ में स्थित मां तारा के मंदिर में एक रिवायत है. वो यह कि जब तक शमशान में एक लाश नहीं जलेगा, तब तक मां की पूजा नहीं होगी. तारापीठ में हर दिन कहीं-ना-कहीं से लाश आ ही जाता है. ठीक वैसे ही मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज में शायद ही कोई ऐसा दिन हो जब हम लाश नहीं देखते हैं. यह कोई दिल्ली का सफदरजंग अस्पताल या AIIMS नहीं है कि देशभर से मरीज आते हैं, तो मरना आम बात है.

यहां मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज में मुर्शिदाबाद के अलावा बंगाल के आसपास के इलाकों से मरीज आते हैं और सथ ही झारखंड से भी कुछ मरीज आ जाते हैं. ऐसे में इतनी छोटी आबादी की जान ना बचा पाना अस्पताल प्रशासन की नाकामी है.
मुकेश झा, मरीज

बता दें कि 14 नवजात शिशुओं की मौत के मामले के बाद से मेडिकल कॉलेज प्रशासन सतर्क हो गया है. सिक्यॉरिटी गार्ड्स तक को निर्देश दे दिए गए हैं कि मीडिया के किसी भी व्यक्ति को अंदर प्रवेश नहीं करने देना है. हर अधिकारी दूसरे अधिकारी के बारे में पूछे जाने पर यह कहकर टालते हुए नजर आए कि सर मीटिंग में गए हैं. कब आएंगे कोई पता नहीं है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

"यह बिल्कुल तानाशाही है"

एक स्थानीय पत्रकार तरुन मंडल कहते हैं कि मेडिकल कॉलेज में वर्षों से अनियमितता पाई जा रही है लेकिन संज्ञान लेने वाला कोई नहीं है. 5-8 दिसंबर के बीच जब यह घटना हुई थी तब हमने अस्पताल प्रशान से बात की थी लेकिन बाद में हमारे अदंर प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी है. यह बिल्कुल तानाशाही है.

UNICEF आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर साल लगभग 2.50 करोड़ शिशु जन्म लेते हैं जबकि हर मिनट इन शिशुओं में से एक की मौत हो जाती है. बहरहाल, अब देखना यह है कि पश्चिम बंगाल सरकार मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज में मृत 14 शिशुओं के मामले में क्या एक्शन लेती हैं, या फिर यूं ही कुव्यवस्था सर चढ़कर बोलता रहेगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×