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बांग्लादेश से आए हिंदुओं को खतरे के तौर पर देखते हैं ये मुसलमान

टीएमसी पर आरोप है कि उसकी ढील की वजह से बांग्लादेश से खासतौर पर मुस्लिम और हिंदू शरणार्थियों यहां आ रहे हैं. 

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मौलाना मोहम्मद यासीन मंडल 5 जुलाई की शाम की भयावह घटनाओं को याद करते हुए कभी-कभी अपनी आंखें बंद कर लेते हैं और गंभीर सोच में डूब जाते हैं. उस रोज पश्चिम बंगाल के नॉर्थ 24 परगना जिले के बादूरिया ब्लॉक के मागुरखली गांव में दूसरे समुदाय के लोगों ने एक हिंदू परिवार के घर में आग लगा दी थी.

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आंखें बंद करके कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने कहा कि हमारे अल्लाह, हमारे नबी, हमारे रसूल के खिलाफ घृणित पोस्ट के पीछे अकेले 17 साल के लड़के का हाथ नहीं हो सकता. इसके पीछे जरूर कुछ और लोग रहे होंगे.

क्या सहनशीलता का दौर खत्म हो गया है?

मागुरखली गांव की घटना के बाद पश्चिम बंगाल में बशीरहाट और आसपास के साथ दूरदराज के जिलों में दंगे हुए. मौलाना ने कहा कि सांप्रदायिक सौहार्द का दौर खत्म हो गया है. उन्होंने कहा कि पहले जो भाईचारा दोनों समुदाय के बीच था, उसे ‘स्थाई चोट’ पहुंची है.

हाई स्कूल में पढ़ने वाले 17 साल के जिस लड़के ने वह पोस्ट डाली थी, मंडल उसके घर के सामने बनी मस्जिद के इमाम हैं. वह लड़का अभी पुलिस हिरासत में है.

पश्चिम बंगाल के दूसरे इमामों की तरह मंडल को भी सरकार से 2,500 रुपये की सैलरी मिलती है. 51 साल के इस इमाम ने बताया,

5 जुलाई और उसके बाद हुई घटनाओं की वजह से दोनों समुदायों के बीच दूरी बढ़ गई है.

उन्होंने कहा कि बांग्लादेश से आने वाले हिंदू शरणार्थियों बांग्लादेश सीमा से लगे नॉर्थ 24 परगना जिले के छोटे शहरों और घनी आबादी वाले गांवों में बस रहे हैं. यह बात सभी को मालूम है, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल कुछ नहीं कह रहा. भारतीय हिंदुओं में बांग्लादेश से आने वाले मुस्लिम शरणार्थियों को लेकर ऐसा ही डर रहता है.

राजनीति और धर्म का घालमेल

मागुरखली और पास के रूद्रपुर गांव के लोग हाल में आने वाले ‘बांग्लादेशी हिंदुओं’ को सांप्रदायिक सौहार्द के लिए खतरा मानते हैं. बादूरिया म्यूनिसिपैलिटी के पूर्व उपाध्यक्ष अमीरुल इस्लाम ने कहा:

ऐसे 40-50 परिवारों ने यहां जमीन खरीदी, नागरिकता के दस्तावेज हासिल किए और मागुरखली और रूद्रपुर गांव में पक्के घर बनाए.

पिछले दो निकाय चुनावों में बादूरिया म्यूनिसिपैलिटी के वार्ड नंबर 17 में आने वाले मागुरखली गांव ने बीजेपी की मनीषा घोष को पार्षद चुना है. इस्लाम कुछ साल पहले कांग्रेस से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में आ गए थे.

टीएमसी पर आरोप है कि उसकी ढील की वजह से बांग्लादेश से खासतौर पर मुस्लिम और हिंदू शरणार्थियों यहां आ रहे हैं. हालांकि, यह सिलसिला 25 साल से चल रहा है.

इस बीच, बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थी स्वरूपनगर, बशीरहाट, मछलंदपुर, गोबोरडांगा और तेतुलिया जैसे शहरों में आकर बसे हैं. वहीं, नरेंद्र मोदी सरकार ने ऐलान किया है कि 1955 के नागरिकता कानून में बदलाव किया जाएगा. इससे इन लोगों को भारत की नागरिकता मिलने की संभावना बढ़ गई है.

कोलकाता की आलिया यूनिवर्सिटी में सेकेंड ईयर के स्टूडेंट और दक्षिण शिमला गांव के निवासी हफीजुल इस्लाम ने कहा,

17 साल के लड़के के घर के करीब सोनाली संघ क्लब है, जिसमें मागुरखली में आकर बसे कई बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थी जाते रहते हैं. उस लड़के के इन लोगों के साथ दोस्ताना ताल्लुकात थे. ऐसा हो सकता है कि वह फेसबुक पोस्ट उन्हीं लोगों ने उस लड़के के साथ शेयर की होगी.
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हिंदुओं के लिए रोज का संघर्ष

यहां के प्राइमरी स्कूल के सामने सोनाली क्लब के सदस्य हालिया हिंसा की घटनाओं के बारे में बात नहीं करना चाहते. एक कमरे के क्लब में 8-9 हिंदू युवा बैठकर हिंदी में डब की हुई एक दक्षिण भारतीय फिल्म देख रहे थे.

जैसे ही मैंने अपने पत्रकार होने का परिचय दिया, वे वहां से उठकर जाने लगे. लेकिन उनमें से एक ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘हम लोगों के लिए यह रोज की लड़ाई है.’ उसका इशारा गांव के हिंदुओं पर पड़ने वाले दबाव की तरफ था.

अमीरुल ने मागुरखली की घटना के बाद दोनों समुदायों के बीच खाई पाटने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली. उन्होंने बताया कि जो बांग्लादेशी हिंदू यहां आए हैं, उनके साथ उनके देश में भेदभाव हुआ होगा. वह शायद उस नफरत के साथ यहां रह रहे हैं. मागुरखली में जो हुआ, वह शायद उन लोगों की सांप्रदायिक भावनाओं की प्रतिक्रिया थी.

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हिंदू-मुस्लिम एकता का क्या होगा?

मागुरखली में मौलाना यासीन मंडल की बेटी हलीमा खातून स्कूल यूनिफॉर्म का दुपट्टा सिर पर डाले हुए सामान्य से बने घर के बाहर चप्पल उतारती है.

हलीमा ने बताया, ‘हमारे क्लास में 150 स्टूडेंट्स हैं, जिनमें से ज्यादातर मुस्लिम लड़कियां हैं.’ वो को-एजुकेशनल रूद्रपुर राधा बल्लभ हाई स्कूल में 9वीं क्लास की स्टूडेंट हैं. मंडल, हलीमा से हमारे लिए चाय बनाने के लिए कहकर मेरी तरफ मुखातिब होकर कहते हैं,

हिंदुओं और मुसलमानों के रिश्ते इतने बिगड़ चुके हैं कि अब इसके सामान्य होने की उम्मीद नहीं है.

अब उन्हें हिंदू परिवारों से झाड़-फूंक के लिए नहीं बुलाया जाता, जबकि पहले यह आम बात थी. उन्होंने बताया, ‘हम बस इतनी दुआ कर रहे हैं कि बीजेपी इसका सियासी फायदा उठाने की कोशिश ना करे. नहीं तो कौन जाने, अगले साल पंचायत चुनाव से पहले क्या हो जाए.’

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